केंद्र सरकार द्वारा छुट्टी पर भेजे गए आलोक वर्मा को उच्चतम न्यायलय ने फिर से सीबीआई डायरेक्टर के रूप में बहाल कर दिया है। बता दें कि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और उनके डिप्टी राकेश अस्थाना के बीच हुए विवाद के बाद दोनों को ही उनके पद से हटा दिया गया था। बता दें कि 23 अक्टूबर की आधी रात को केंद्र सरकार ने सीबीआई के भीतर बढ़ते विवाद को लेकर आलोक वर्मा को उनके पद से मुक्त कर लम्बी छुट्टी पर भेज दिया था। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार के इस फैसले के लगभग ढाई महीने बाद इसे पलट दिया है।
हलाँकि अदालत ने ये भी साफ़ किया कि आलोक वर्मा अभी कोई बड़ा नीतिगत फैसला नहीं ले पाएंगे और उनके मामले को एक कमिटी देखेगी। अदालत ने कहा की जब तक केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा वर्मा के खिलाफ की जा रही जाँच पूरी नहीं हो जाती तब तक वो कोई बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं ले सकते। बता दें की वर्मा के खिलाफ भ्रस्टाचार के आरोप हैं जिनकी जाँच चल रही है। अदालत ने कहा कि इस मामले में आगे का फैसला चयन समिति करेगी। चयन समिति में प्रधानमंत्री के अलावे नेता प्रतिपक्ष और मुख़्य न्यायाधीश शामिल हैं। साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि हर हफ़्ते समिति की बैठक हो।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा लिखे गए निर्णय को पढ़ते हुए न्यायमूर्ति संजीव किशन कॉल और केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि बिना चयन समिति की इजाजत के सरकर द्वारा सीबीआई निदेशक को पद से हटाना ग़ैर कानूनी है। बता दें की मुख़्य न्यायाधीश रंजन गोगोई आज छुट्टी पर थे जिसके कारण ये फ़ैसला उनकी अनुपस्थिति में पढ़ा गया। अदालत ने 6 दिसंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इसके अलावे अदालत ने केंद्र सरकार द्वारा एम नागेश्वर राय को सीबीआई का कार्यकारी निदेशक बनाने के फ़ैसले को भी निरस्त कर दिया। अदालत ने कहा कि कार्यकाल ख़त्म होने से पहले आलोक वर्मा को पद से नहीं हटाया जाना चाहिए थे। आलोक वर्मा 31 जनवरी को सीबीआई निदेशक के पद से सेवा-निवृत्त हो रहे हैं।
इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा;
“हम किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। यह सरकार के लिए सबक है। आज आप कुछ लोगों पर दबाव बनाने के लिए इन एजेंसियों का इस्तेमाल करते हैं, कल कोई और करेगा, ऐसे में लोकतंत्र का क्या होगा?”
ज्ञात हो की इस मामले में आलोक वर्मा के अलावा एक एनजीओ कॉमन कॉज द्वारा भी सर्कार के फैसले के खिलाफ केस दर्ज किया गया था जिसकी तरफ से वकील प्रशांत भूषण जिरह कर रहे थे। इस फैसले के बाद भूषण ने कहा की कोर्ट ने आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने और उनकी शक्तियों छीनने वाले केंद्र सरकार के फैसले को अवैध ठहरा दिया। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि इसे राजनितिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि भ्रष्टाचार के मामलों में सीवीसी ऐसे फैसले ले सकती है और सरकार को दोनों अधिकारीयों को छुट्टी पर भेजने का सलाह भी उसने ही दिया था।
उधर कॉन्ग्रेस पार्टी ने भी ट्वीट कर अदालत के इस निर्णय का स्वागत किया।
Alok Verma was investigating the #RafaleScam, so he was illegally & undemocratically removed from his position. Today the SC has proven to PM Modi that democracy will always fight back.
— Congress (@INCIndia) January 8, 2019
Where will NoMo hide, now that all his skeletons are falling out of the closet.
कॉन्ग्रेस पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से लिखा;
“हम केंद्र सरकार की आलोचना करने वाले शीर्ष अदालत के इस निर्णय का स्वागत करते हैं।आलोक वर्मा राफेल स्कैम की जाँच कर रहे थे इसीलिए उन्हें अवैध रूप से और अलोकतांत्रिक रूप से उनके पद से हटा दिया गया। नरेंद्र मोदी अब कहाँ छिपेंगे क्योंकि अब उनका सारा सच सामने आ रहा है।”