महाराष्ट्र सरकार में वित्त मंत्री रह चुके भाजपा नेता सुधीर मुनगंटीवार पर शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के माध्यम से निशाना साधा था। जबकि मुनगंटीवार ने सीएम पद के लिए शिवसेना द्वारा 50-50 फॉर्मूले पर अड़ जाने को लेकर महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग सकने की सबसे बड़ी वजह बताया था। इसके बाद शिवसेना ने अपने मुखपत्र के ज़रिए उन पर निशाना साधा था। दरअसल सुधीर ने अपने एक बयान में कहा था कि यदि सात नवम्बर तक राज्य में किसी पार्टी की सरकार नहीं बनती है तो महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाएगा। उनके इस बयान पर शिवसेना ने कटाक्ष करते हुए सामना में पूछ लिया कि क्या राष्ट्रपति की मुहर उनके महाराष्ट्र वाले दफ्तर में रखी है? और इस लेख का शीर्षक क्या दिया? – ‘राष्ट्रपति तुम्हारी जेब में हैं क्या? महाराष्ट्र का अपमान’
यह लेख सिर्फ सामना का नहीं है। यह लेख है शिवसेना की मानसिकता का। वही राय जिसके कारण महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दोनों दलों के एक साथ लड़ने के बावजूद भाजपा-शिवसेना में एक राय नहीं बन पाई। इस पर बोलते हुए मुनगंटीवार ने कहा था कि दोनों के मिलकर सरकार बनाने में सबसे बड़ा रोड़ा मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना की जिद है। अपने बयान में भाजपा नेता सुधीर ने कहा था, “तय समय सीमा के भीतर सरकार न नियुक्त होने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाएगा।” बता दें कि 8 नवम्बर को महाराष्ट्र सरकार का कार्यकाल पूरा हो गया, जिसके बावजूद सूबे में नई सरकार का गठन नहीं किया जा सका।
शिवसेना चाहती तो इसे राजनीतिक सलाह के तौर पर ले सकती थी, राज्य के नागरिकों को एक और चुनाव की ओर झोंकने से बच सकती थी लेकिन नहीं! सामना के जरिए आरोप लगाया कि भाजपा के नेता ने राष्ट्रपति शासन थोपने की धमकी दी है ठीक वैसे ही जैसे वह अन्य एजेंसियों का इस्तेमाल करती है। अपने मुखपत्र सामना में सम्पादकीय के ज़रिए हमला बोलकर शिवसेना ने इसे महाराष्ट्र का अपमान कहा है। सम्पादकीय में मुंगंटीवार के बयान के ज़रिए फडणवीस पर निशाना साधते हुए लिखा गया है – “विदा होती सरकार के बुझे हुए जुगनू रोज नए मजाक करके महाराष्ट्र को कठिनाई में डाल रहे हैं।”
अपने मुखपत्र में भाजपा से सवाल करते हुए शिवसेना ने कहा कि क्या राष्ट्रपति की सील भाजपा के महाराष्ट्र दफ्तर में रखी है। सामना ने अपने सम्पादकीय के अंत में लिखा, “राष्ट्रपति संविधान की सर्वोच्च संस्था हैं। वे व्यक्ति नहीं बल्कि देश हैं। देश किसी की जेब में नहीं है।”
दरअसल महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा को 105 सीटें मिलीं जबकि शिवसेना को 56 सीट। मगर देवेन्द्र फडणवीस की सरकार में साथ होने के बावजूद भी इस चुनाव के नतीजे आते-आते शिवसेना और भाजपा के बीच कड़वाहट बढ़ गई। और यह हुई शिवसेना के अड़ियल रवैये (राजनीति पर पुत्रमोह भारी पड़ी) के कारण।
2014 के मुकाबले इस चुनाव में 17 सीटें कम जीतने वाली भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के बावजूद सरकार बनाने के लिए ज़रूरी 145 के आँकड़े से दूर रही। शिवसेना ने नतीजों के एलान के बाद 50-50 प्लान की बात कही थी। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक शिवसेना ने आधे-टर्म (ढाई साल) के लिए उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की शर्त रखी थी मगर दोनों पार्टियों की इस मुद्दे पर एक राय नहीं बनी।