शिवसेना की एक महिला पार्षद ने अपना पद बचाने के लिए अपने ही बच्चे को पराया बता दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (12 जुलाई, 2021) को इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए इस तरह की हरकतें नहीं की जानी चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना की उक्त महिला नेता की चुनावी अयोग्यता को बरक़रार रखा। वो सोलापुर नगर निगम से पार्षद चुनी गई थीं।
दो से अधिक बच्चे होने के कारण उनका चुनाव रद्द कर दिया गया था और पार्षदी से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट से निराशा हाथ लगने के बाद वो सुप्रीम कोर्ट पहुँची थीं। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने शिवसेना की अनीता मागर से पूछा कि आपने सिर्फ पार्षदी बचाने के लिए अपने बच्चे को नकार दिया? साथ ही नसीहत दी कि चुनाव जीत कर एक पद पाने के लिए अपने बच्चे को अस्वीकार न करें।
इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना था कि इसके पर्याप्त सुबूत हैं कि नामांकन पत्र दाखिल करने की तारीख को मागर और उनके पति के तीन बच्चे थे, इसलिए सार्वजनिक कार्यालय चलाने के लिए राज्य सरकार के दो बच्चों वाले नियम के तहत उन्हें अयोग्य करार दिया गया था। मागर ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट में उनके वकील ने दावा किया कि तीसरा बच्चा उनके पति के भाई का है, ऐसे में उनके दो ही जैविक बच्चे हैं।
वकील ने ये दलील भी दी कि उस बच्चे के अधिकार के लिए सुप्रीम कोर्ट को अनीता मागर के पक्ष में फैसला सुनाना चाहिए, क्योंकि उसके माता-पिता को लेकर सवाल पैदा हो गया है। साथ ही ये दलील भी दी कि जन्म प्रमाण पत्र में बच्चे के माता-पिता का नाम अलग है। सुप्रीम कोर्ट ने इन दावों से असंतुष्ट होकर स्पष्ट कहा कि चुनाव जीतने के लिए ये कहानी बनाई गई है। स्कूल के रिकॉर्ड में कोर्ट ने पाया कि अनीता मागर ही उस बच्चे की माँ हैं।
The Bombay High Court has upheld a 2018 order of a civil court that set aside the election of Shiv Sena leader Anita Magar as corporator of the Solapur Municipal Corporation in Maharashtra, after it came to light that she had more than two children.https://t.co/FChNmgPzS5
— Economic Times (@EconomicTimes) May 26, 2021
जन्म प्रमाण-पत्र को बाद में कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बदल दिया गया, ऐसा कोर्ट ने भी माना। सुप्रीम कोर्ट ने अनीता मागर को अपने बच्चे के बारे में सोचने की सलाह देते हुए कहा कि हम आपकी मदद नहीं कर सकते। 2018 में निचली अदालत ने भी ऐसा ही फैसला सुनाया था। सोलापुर के उक्त वार्ड में दूसरे स्थान पर रहीं प्रत्याशी ने उनके चुने जाने को कोर्ट में चुनौती दी थी। 3 वर्ष से ये मामला अदालतों में चल रहा था।
इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट में अनीता मागर ने दलील दी थी कि अस्पताल की तरफ से ये गलती हुई कि तीसरे बच्चे को उनका बता दिया गया और रिकॉर्ड में यही दर्ज किया गया। जबकि हाईकोर्ट ने पाया कि नया जन्म प्रमाण-पत्र तब बनवाया गया, जब 2012 में महिला के पति पार्षदी का चुनाव लड़ने वाले थे। सोलापुर के वार्ड संख्या 11 से जीततीं अनीता मगर के खिलाफ दूसरे स्थान पर रहीं भाग्यलक्ष्मी महंता ने उनके खिलाफ सिविल कोर्ट में याचिका दायर की थी।