‘मेट्रो मैन’ के नाम से मशहूर ई श्रीधरन ने कल (जून 20, 2019) को एक पत्र के माध्यम से कुछ दिनों पहले ही मीडिया में रिलीज़ दिल्ली फ्री मेट्रो सेवा को जायज ठहराने वाले मनीष सिसोदिया के पत्र के जवाब दिया है। जिसमें उन्होंने बहुत ही तार्किक तरीके से सिसोदिया के हर प्रश्न और अपनी आपत्तियों को रखा है।
Metro Man Shreedharan gives it back to Handsome @msisodia in his own inimitable style! pic.twitter.com/dVb7p7vnAi
— Rahul Kaushik (@kaushkrahul) June 21, 2019
चलिए एक निगाह में जान लेते हैं क्या है पूरा मामला- कुछ दिन पहले ही, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए दिल्ली की महिलाओं को लोकलुभावन योजना के दायरे में लाने के लिए दिल्ली की बसों व मेट्रो में महिलाओं की यात्रा मुफ्त करने का निर्णय लिया। इसके पीछे केजरीवाल का तर्क है कि सभी डीटीसी बस, क्लस्टर बस और मेट्रो ट्रेन में महिलाओं को मुफ्त में यात्रा करने की अनुमति दी जाएगी ताकि वे ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।
दिल्ली मेट्रो के पहले प्रबंध निदेशक और ‘मेट्रो मैन’ के नाम से मशहूर ई श्रीधरन ने मेट्रो में महिलाओं को मुफ़्त यात्रा की सुविधा देने की आम आदमी पार्टी सरकार की पहल को मेट्रो के लिए नुकसानदायक बताया था। उन्होंने सुझाव दिया कि छूट की राशि सीधे महिलाओं के खाते में ट्रांसफर की जाए। इस संबंध में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी भी लिखी थी।
दिल्ली मेट्रो के सलाहकार श्रीधरन द्वारा लिखी चिट्ठी पर दिल्ली के उप मुख्यमंत्री ने कड़ी आपत्ति जताते हुए जवाब में लिखा, “मुझे आश्चर्य के साथ-साथ आपकी चिट्ठी पर दुख भी है, जिसमें आपने मेट्रो में महिलाओं को फ्री यात्रा का खर्च दिल्ली सरकार द्वारा उठाने के प्रस्ताव का विरोध किया है।” सिसोदिया के पत्र का इसी लेख में नीचे विवरण दिया गया है। बेशक, उस समय सिसोदिया और AAP सहित, उनके तमाम समर्थक मीडिया को वह सिसोदिया का मास्टर स्ट्रोक नज़र आया हो। लेकिन यह कदम व्यावहारिक तो नहीं ही है, ऐसा कई विशेषज्ञों ने दावा किया है।
सिसोदिया के पत्र का बिंदुवार जवाब श्रीधरन ने दिया है। हालाँकि, उन्होंने कहा कि उन्हें आम आदमी पार्टी या सिसोदिया का भेजा कोई पत्र नहीं मिला है, पर मीडिया के माध्यम से उन्हें सिसोदिया का पत्र हाथ लगा। जिसका जवाब श्रीधरन ने भी 20 जून को अपने एक पत्र के माध्यम से दिया है। हालाँकि, उनके इस पत्र का मीडिया ने शायद उतना संज्ञान नहीं लिया है।
मनीष सिसोदिया के पत्र का इ श्रीधरन द्वारा दिया गया जवाब
आदरणीय महोदय,
विषय- दिल्ली मेट्रो में महिलाओं की मुफ़्त यात्रा
आपका 14 जून 2019 को जारी पत्र मुझे अभी तक नहीं मिला, लेकिन मुझे मीडिया के माध्यम से उसकी एक कॉपी मिली है।
सर, मेरा विरोध इस विचार से ही है कि समाज के किसी भी सेक्शन को ऐसे समय में मुफ्त मेट्रो सेवा नहीं दी जानी चाहिए। अभी भी DMRC पर बचे हुए लोन का बोझ लगभग 35 हज़ार करोड़ रुपए का है। हो सकता है, आपकी सरकार DMRC को हुए नुकसान की भरपाई कर दे, लेकिन आने वाली सरकार शायद ऐसा न करे तो ऐसे समय में DMRC योजना को वापस लेने और फिर से महिलाओं पर टिकट चार्ज लगाने में सक्षम नहीं होगी। आगे यह योजना दूसरे शहरों के मेट्रो सेवाओं के लिए भी मुसीबत बनेगी जो अभी भारी कर्ज के बोझ तले दबे है। अभी के जो हालात हैं, उसमें मेट्रो निर्माण की गति अपने तय लक्ष्य (चीन के 300 किलोमीटर प्रति वर्ष की जगह भारत में मात्र 25 किलोमीटर प्रति वर्ष) से बेहद धीमी गति से चल रही है। इसका मुख्य कारण फंड की कमी है। मेट्रो अभी उधार के जाल में फँसता हुआ नज़र आ रहा है, ऐसे में आने वाले समय में नए मेट्रो के निर्माण के लिए लोन की कोई व्यवस्था नज़र नहीं आ रही।
मैं, दिल्ली सरकार के महिलाओं के मुफ्त यात्रा के ट्रेवल चार्ज वहन करने के प्रस्ताव का विरोध नहीं कर रहा हूँ, बल्कि मेरा विरोध मेट्रो में मुफ्त यात्रा के विचार का विरोध है। यदि हम महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा देने जा रहे हैं तो उन अन्य महत्वपूर्ण वर्गों जैसे छात्रों, दिव्यांग व्यक्तियों और सीनियर सिटीजन आदि का क्या करेंगे? वैसे, पूरे विश्व में कहीं भी कोई मेट्रो सेवा नहीं है जो सिर्फ महिलाओं के लिए मुफ्त हो।
गयदि GNCTD महिलाओं की मुफ्त यात्रा के प्रति इतनी ही चिंतित है तो उन्हें मुफ्त मेट्रो सेवा देने से बेहतर है कि सीधे उनके खाते में उनकी यात्रा का खर्च डाल दे। कृपया याद रखें, किसी भी तरह से यदि दिल्ली सरकार DMRC को पेमेंट करती है तो वह पैसा टैक्स पेयर का है और वे दूसरों को मुफ्त यात्रा सुविधा देने के लिए सवाल कर सकते हैं। लगभग सभी को पता है कि यह आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में महिलाओं का वोट हासिल करने लिए महज एक चुनावी हथकंडा है।
सर, आपका यह कहना कि दिल्ली मेट्रो अभी अपनी सम्पूर्ण क्षमता का केवल 65% उपयोग कर पा रही है, यह सत्य नहीं है।(शायद आप DPR की भविष्यवाणी पर आँख मूँदकर भरोसा कर रहे हैं।) भीड़ वाले समय में पूरा मेट्रो सिस्टम अत्यधिक ओवरलोडेड होता है, जबकि हर 2 मिनट में मेट्रो संचालित हो रहा होता है। तब भी यात्रियों को बमुश्किल खड़े होने की जगह मिलती है। महिलाओं की मुफ्त यात्रा को मंजूरी देने के बाद भीड़ और बुरी तरह से बढ़ेगी जो कि किसी बड़ी दुर्घटना का कारण हो सकती है।
यदि दिल्ली सरकार के पास बहुत ज़्यादा पैसा हो गया है तो नए मेट्रो ट्रेन्स और तेजी से लाइन्स के निर्माण में क्यों न DMRC का सहयोग करे, ताकि अभी की बेतहाशा भीड़ से यात्रियों को आराम मिले। दूसरी तरफ, जहाँ तक मुझे जानकारी है कि दिल्ली सरकार ने चौथे फेज को स्वीकृति देने में भी 2 वर्ष की देरी की। यहाँ तक कि बसों के लिंक कनेक्टिविटी में भी देरी हुई। यह ज़्यादा महत्वपूर्ण काम है जो सरकार कर सकती है जिससे सड़क पर भीड़ कम हो और दिल्ली को काफी हद तक प्रदूषण से मुक्ति भी मिले।
महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा देने से महिलाओं की सुरक्षा में शायद ही कोई सुधार आए, उनकी सुरक्षा का तब क्या होगा जब वह मेट्रो से बाहर आएँगी, जहाँ उनके लिए लिंक बस सुविधाओं की ज़्यादा आवश्यकता है। यह कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ आपकी सरकार ध्यान दे सकती है, न कि मुफ्त मेट्रो सेवा में पैसा लगाकर उन्हें बर्बाद करे।
इसलिए, मेरी आपकी सरकार से निवेदन है कि सिर्फ चुनावी लाभ के लिए दिल्ली की सबसे प्रभावशाली यात्रा सुविधा को बर्बाद मत कीजिए।
आपका
डॉ. ई श्रीधरन
बता दें कि इससे पहले डीएमआरसी ने बताया था कि इस पूरी योजना पर सालाना ₹1566 करोड़ का खर्च आएगा। साथ ही मेट्रो ने योजना के लागू होने के बाद मुसाफिरों की संख्या में 15 से 20% बढ़ोतरी की उम्मीद जताई गई है। डीएमआरसी ने इस योजना को लागू करने के लिए किराया निर्धारण समिति (एफएफसी) से मंजूरी लेना अनिवार्य बताया है। हालाँकि, केजरीवाल का मानना है कि वैसे तो इसकी कोई जरूरत नहीं है, लेकिन अगर जरूरत पड़ी तो वो इसकी मंज़ूरी लेकर आएँगे।
DMRC ने दिल्ली सरकार को सौंपे अपने प्रस्ताव में कहा कि महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा को लागू करने से लगभग ₹1566 करोड़ का वार्षिक ख़र्च होगा, इसमें से ₹11 करोड़ का ख़र्च फीडर बसों पर आएगा।
जिसके बाद, बुधवार (12 जून) को, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि दिल्ली सरकार द्वारा DMRC को इस रकम का भुगतान किया जाएगा। DMRC ने अपनी 8 पेज की रिपोर्ट में, इस बात का भी ज़िक्र किया था कि महिलाओं को मुफ़्त सफर कराने वाली इस योजना का भविष्य में दुरुपयोग भी हो सकता है। DMRC ने क़ानूनी सलाहकार से भी चर्चा की और यह जानने का प्रयास किया था कि क्या इस तरह की वित्तीय सब्सिडी या अनुदान राज्य सरकार द्वारा दिल्ली मेट्रो रेलवे (संचालन और रखरखाव) अधिनियम, 2002 के तहत यात्रियों के एक विशेष वर्ग को दी जा सकती है?
जानकारी के लिए बता दें कि केजरीवाल की इस मुफ्त मेट्रो योजना का जहाँ मीडिया गिरोह और कुछ नेताओं द्वारा क्रांतिकारी बताया गया, वहीं विशेषज्ञों ने इस योजना की कई खामियाँ गिनाते हुए ऐसे अधोगामी प्रस्ताव का विरोध भी किया था। यहाँ तक कि जनता ने भी इस योजना को लेकर विरोध और समर्थन दोनों व्यक्त किया। सोशल मीडिया पर विरोध बढ़ता देख, मनीष सिसोदिया सहित आप की पूरी मशीनरी इस योजना के समर्थन में उतर गई। इसी कड़ी में 14 जून को मनीष सिसोदिया ने एक सार्वजनिक पत्र के माध्यम से विशेषज्ञों और खासतौर से डॉ. ई श्रीधरन के विरोध का जवाब सोशल मीडिया पर जारी एक पत्र के माध्यम से दिया था।
अपनी चिट्ठी में सिसोदिया ने यह तर्क दिया कि मेट्रो की कुल क्षमता प्रतिदिन 40 लाख यात्रियों की है, लेकिन DMRC के अनुसार, फ़िलहाल औसतन राइडरशिप 25 लाख है। सिसोदिया ने इस बात पर भी ज़ोर दिया था कि दिल्ली मेट्रो अपनी कुल क्षमता का 65% पर ही काम कर रही है, जो कि एक कंपनी की गुणवत्ता और परफॉर्मेंस के लिए बहुत ख़राब है।
श्रीधरन जी मेट्रो की कुल क्षमता 40 लाख लोगों को प्रतिदिन यात्रा कराने की जबकि 25 लाख लोग प्रतिदिन यात्रा करते हैं महिलाओं की फ़्री यात्रा से लगभग 3 लाख यात्री बढ़ेंगे मेट्रो की आमदनी बढ़ेगी, महिलाओं को सुरक्षा मिलेगी, ट्राफिक कम होगा प्रदूषण कम होगा फिर ऐसी योजना का विरोध क्यों? pic.twitter.com/U1mwClgJiH
— Sanjay Singh AAP (@SanjayAzadSln) June 14, 2019
खैर, महिलाओं को मुफ्त मेट्रो सुविधा देने पर लगातार बहस जारी है। जहाँ एक तरफ आप और केजरीवाल इस चुनावी स्टंट को सही ठहराने में जुटे हैं तो वहीं विशेषज्ञों द्वारा इसे एक अधोगामी कदम मानते हुए, इसे पूरे मेट्रो तंत्र को बर्बाद करने के रूप में देखा जा रहा है।
चलते-चलते सिर्फ इतना ही कहना है कि केजरीवाल इससे पहले भी कई हवाई योजनाओं की चर्चा कर चुके हैं। जिन पर अभी तक ग्राउंड वर्क की प्रोग्रेस शून्य है। बाद में किसी न किसी वजह से वह योजना फाइलों में फँस जाती है। ऐसे समय में कई विशेषज्ञों का कहना है कि केजरीवाल सरकार जानबूझकर ऐसे काम करती है कि फाइल नियम विरुद्ध हो या इसके लिए आवश्यक तैयारी के अभाव के कारण फाइल उप राज्यपाल के यहाँ फँस जाए, जिससे AAP की पूरी मशीनरी को एक बार फिर से ‘कि हम तो दिल्ली की महिलाओं को मुफ्त योजना देना चाहते थे लेकिन मोदी फाइल ही आगे नहीं बढ़ने दे रहें‘ पर आकर रुक जाती है।
ऐसे में केजरीवाल सरकार दो-तरफा फायदे में होती है। खैर, यह योजना भी है तो चुनावी लॉलीपॉप ही, अब देखना यह है कि क्या इस बार कामयाब होती है या फाइल फिर से अटक जाती है और केजरीवाल अगली बार सरकार आने के बाद कानून में बड़ा बदलाव कर इसे पूरा करने का वादा करते हैं। अंजाम जो भी हो, खेल तो शुरू हो ही चुका है।