बिहार में हुई एनडीए की जीत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि आखिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को क्यों प्रभावशाली शख्सियतों में गिना जाता है। उन्होंने इन चुनावों में जिस तरह बिहार की जनता को अभिभूत किया, वह उल्लेखनीय है।
योगी आदित्यनाथ के हर एक भाषण ने जनता पर इस तरह जादू के जैसा काम किया, इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि मतदान के तीन चरणों मे उन्होंने जिन 18 सीटों के लिए कैंपेनिंग की, उसमें से 12 कैंडिडेट या तो जीते या फिर लीड करते रहे। यानी सीएम योगी का स्ट्राइक रेट इस बिहार चुनाव में कुल मिलाकर 67% रहा।
उन्होंने बख्तियारपुर, बिस्फी, कटिहार, केवटी, सीतामढ़ी, रक्सौल, वाल्मिकी नगर, झंझारपुर, लालगंज, दरौंदा, जमुई, कराकट, गरिया कोठी, सिवान, अरवल, पालिगंज, तरारी और रामगढ़ में अपनी रैलियाँ की थीं।
इनमें से कराकाट, अरवल, पालिगंज, तरारी और रामगढ़ जैसे क्षेत्रों को यदि छोड़ दिया जाए तो एनडीए के प्रत्याशियों ने सभी सीटों पर अपनी जीत दर्ज की। जबकि बाकी बची 4 सीट सीपीआई (एमएल) के खाते में गई और रामगढ़ में भी अंत तक भाजपा ने राजद प्रत्याशी को काँटे की टक्कर दी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार भाजपा सूत्रों ने योगी आदित्यनाथ के प्रचार पर कहा कि स्टार प्रचारक के तौर पर योगी आदित्यनाथ के प्रचार में वोटों को अपनी ओर करने की क्षमता थी। भाजपा नेता स्वतंत्र देव सिंह ने सीएम योगी के लिए कहा कि वह न केवल एक सक्षम प्रशासक हैं, बल्कि उन प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं, जो जातिगत रेखाओं के बावजूद मतदाताओं को अपने साथ लाने की क्षमता रखते हैं।
जानकारों का ऐसा मानना है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने भाषणों में ‘सीता का मायका’ जैसे प्रभावशाली शब्दों का इस्तेमाल करके जनता का दिल जीता। इसके बाद उन्होंने मोदी सरकार के जिन कार्यों का उल्लेख किया, उसने भी जनता पर प्रभाव छोड़ा।
अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे पर केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता हो या फिर राम जानकी पुल के निर्माण का ऐलान, योगी आदित्यनाथ ने अपनी हर बात को प्रभावशाली ढंग से रख कर मतदाताओं को एनडीए की ओर आकर्षित किया।
समय-समय पर राजद और कॉन्ग्रेस पर निशाना साधने के कारण भी जनता का ध्यान एनडीए की ओर अधिक गया। मतदाताओं ने इन इलाकों में एनडीए प्रत्याशियों को वोट देकर यह साबित भी किया कि उन्हें राजद के वादे खोखले लग रहे थे।
अपने प्रचार के दौरान योगी आदित्यनाथ ने मतदाताओं को राजद के 15 साल का कार्यकाल भी याद दिलाया था। उन्होंने सवाल खड़ा किया था कि आखिर यदि राजद की मंशा युवाओं को जॉब देने की थी तो 15 साल के कार्यकाल में ऐसा क्यों नहीं हुआ?