चुनावी माहौल में विकास और व्यापक सुधार के कार्यक्रम भूलकर अक्सर नेता लोकलुभावन वादों तक ही सीमित हो जाते हैं और इसका चुनावी फायदा भी होता है। हाल ही में, उत्तर भारत के तीन हिंदी भाषी राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कॉन्ग्रेस ने सत्ता में वापसी के लिए इसी तरह के लोकलुभावन वायदे किए थे और चुनाव में जीत हासिल करने के तुरंत बाद कृषि ऋण माफ़ी की घोषणा करते हुए किसानों से किए गए वादे को निभाया भी। इसको देखते हुए दबाव में बीजेपी शासित राज्य गुजरात और असम ने भी इसको अपनाया। इसी दबाव में बिना व्यापक सोच विचार किए, आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए कई राज्य सरकारों के कृषि ऋण माफ़ी की घोषणा करने की संभावना है।
इसके विपरीत, न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय मूल की मशहूर अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा, “मेरा मानना है कि कृषि क्षेत्र पर भारी संकट है फिर भी कृषि ऋण माफ़ी स्थाई समाधान नहीं है।” यह बात उन्होंने दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम के मौके पर कही गोपीनाथ द्वारा इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF) की चीफ इकोनॉमिस्ट का पद संभालने के बाद वैश्विक विकास की यह पहली रिपोर्ट थी।
उन्होंने यह सुझाव दिया कि ‘कैश सब्सिडी’ ऋण माफ़ी के मुकाबले बेहतर होगा। उन्होंने कृषि ऋण माफ़ी को लेकर कहा, “ऐसे लोकलुभावन उपायों से किसानों की समस्याओं का स्थाई समाधान नहीं होगा। इसके बजाय कैश सब्सिडी बेहतर रहेगा। सरकार को किसानों को पैदावार बढ़ाने के लिए बेहतर तकनीक और बीज जैसी सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए।”
बता दें कि इससे पहले कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने कहा था कि उनकी पार्टी और अन्य लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तब तक आराम नहीं करने देंगे, जब तक पूरे भारत में ‘किसान ऋण माफ़ी’ योजना लागू नहीं हो जाती है।
वहीं अपने एक वक़्तव्य में आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी कृषि ऋण माफ़ी योजना पर विरोध जताया था। साथ ही चुनाव आयोग से राजनीतिक दलों को इसे चुनावी मुद्दा बनाने से रोकने की माँग की थी।
रिपोर्ट के अनुसार, गोपीनाथ ने कहा, “कृषि क्षेत्र और रोज़गार सृजन एनडीए सरकार के लिए प्रमुख मुद्दा है। यह इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए प्रमुख चिंता का विषय भी रहेगा। लेकिन यह विकास दर के मदृेनजर सकारात्मक भी रहेगा।” बता दें कि वर्ल्ड इकोनॅामिक आउटलुक अपडेट में 2019-20 के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था के सबसे तेजी से आगे बढ़ने की सम्भावना व्यक्त की गई है।
उन्होंने वैश्विक इकॉनमी से तुलना करते हुए कहा, “वैश्विक स्तर पर मंदी रहने के आसार हैं। जबकि भारत की अर्थव्यवस्था का 7.5% की विकास दर से आगे बढ़ने की संभावना है। 2020-21 के दौरान भारत का विकास दर 7.7% तक पहुँचने की उम्मीद है। इस दौरान चीन का विकास दर 6.2% रहने का अनुमान है।”