सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस कम्युनिकेशन्स (RCOM) के चेयरमैन अनिल अम्बानी सहित 2 अन्य अधिकारियों को अवमानना का दोषी करार दिया है। उनके ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रोहिंटन एफ. नरीमन और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने अम्बानी व उनकी कम्पनी को 4 सप्ताह के भीतर एरिक्सन के बकाया ₹453 करोड़ भुगतान करने को कहा है। इतना ही नहीं, अगर उन्होंने तय समय-सीमा के भीतर ये रक़म नहीं चुकाई तो उन्हें 3 महीने की जेल होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी दोषियों को ज़ुर्माने के तौर पर अदालत में एक-एक करोड़ रुपए जमा करने के भी निर्देश दिए। इसके लिए 4 महीने की समय-सीमा तय की गई है। अगर वो ज़ुर्माने की रक़म भरने में असमर्थ साबित होते हैं तो उन्हें 1 महीने जेल में गुज़ारने पड़ेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषियों ने जान-बूझ कर सुप्रीम कोर्ट में दी गई अंडरटेकिंग का उल्लंघन किया। कोर्ट ने इस 13 फरवरी को ही फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।
Anil Ambani ordered to pay 453 crores or face 3 months jail. Here is what the Supreme Court ordered. #AnilAmbani @RelianceMobile #reliance @ericsson @EricssonIndia #SupremeCourt pic.twitter.com/8YBqsH1EuO
— Bar & Bench (@barandbench) February 20, 2019
हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि कैसे कपिल सिब्बल एक ही दिन में दो बार रूप बदलते हुए सार्वजनिक तौर पर रिलायंस के ख़िलाफ़ प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं तो दूसरी तरफ अदालत के भीतर रिलायंस की पैरवी करते हैं। अव्वल तो यह कि यही नेतागण मोदी पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि उन्होंने फ्रांस सरकार और दसॉ पर दबाव बना कर अनिल अम्बानी की कम्पनी ‘रिलायंस डिफेंस’ को ऑफसेट पार्टनर चुनने को मजबूर किया।
कॉन्ग्रेस नेताओं का हाल यह है कि दसॉ द्वारा बार-बार सारी चीजें साफ़ करने के बावजूद वो एक ही रट लगाए बैठे हैं। दसॉ बार-बार दुहरा चुकी है कि उसने रिलायंस ग्रुप को अपनी मर्जी से ऑफसेट पार्टनर चुना था। कम्पनी यह भी बता चुकी है कि उसने भारतीय नियमों (डिफेंस प्रॉक्यूरमेंट प्रोसीजर) और ऐसे सौदों की परंपरा के अनुसार यह निर्णय लिया था। लेकिन, तब भी यह प्रचारित किया जाता रहा कि पीएम मोदी अनिल अम्बानी की ज़ेब में हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अनिल अंबानी को अवमानना का दोषी करार दिया, चार हफ्ते में एरिक्शन को 453 करोड़ रुपये चुकाने के निर्देश https://t.co/VhcMpD5aIn
— लाइव लॉ हिंदी (@LivelawH) February 20, 2019
इस मामले में एरिक्सन की तरफ से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे पेश हुए जबकि अनिल अम्बानी की तरफ से मुकूल रोहतगी व कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने ज़िरह किया। कोर्ट ने 13 फरवरी को ही फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। लाइव लॉ की वेबसाइट पर प्रकाशित ख़बर के अनुसार, सुनवाई के दौरान दवे ने कोर्ट को बताया:
“कंपनी अपनी परिसंपत्तियों को बेचने के बाद 5,000 करोड़ प्राप्त करने के बावजूद शीर्ष अदालत के समक्ष की गई प्रतिबद्धता का सम्मान करने में विफल रही। यह ट्रिब्यूनल के समक्ष इनसॉल्वेंसी की कार्यवाही का हवाला देते हुए आरकॉम द्वारा की गई प्रतिबद्धता को खत्म करने का प्रयास है। अनिल अंबानी के माध्यम से आरकॉम ने शीर्ष अदालत के 3 अगस्त, 2018 के आदेश का “जानबूझकर और सचेत रूप से” उल्लंघन किया है।”
अब हो सकता है कि अनिल अम्बानी का चरित्र-हनन शुरू हो जाए। ऐसे लोग यह जानने की कोशिश तक नहीं करेंगे कि उन्हें किस मामले में दोषी ठहराया गया है और इसके पीछे क्या कारण हैं। हो सकता है उन्हें माल्या, चौकसी और नीरव जैसे आर्थिक भगोड़ों की श्रेणी में रख कर ‘राफेल कनेक्शन’ की रट लगाई जाए। उन्हें सबसे पहले तो यह पता होना चाहिए कि मामला ‘रिलायंस कम्युनिकेशन्स’ का है, ‘रिलायंस डिफेंस’ का नहीं।
बिना सोचे-समझे चरित्र-हनन पर उतर आने वाले मीडिया के गिरोह विशेष को यह भी समझना पड़ेगा कि इस केस में सरकार कोई पक्ष नहीं है। यह एक कम्पनी द्वारा दूसरी कम्पनी पर बकाए के भुगतान के लिए दर्ज किया गया केस था। इस केस से आम जनता व सरकार के हितों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह दो बड़े कंपनियों के बीच का मामला था। लेकिन अफ़सोस, नरेंद्र मोदी तो अम्बानी की ज़ेब में हैं, फिर भी अम्बानी को ज़ुर्माना और जेल की सज़ा सुनाई जा रही है।