आज देश 70वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा है। देश के अलग-अलग हिस्से से लहराते हुए तिरंगे की खूबसूरत तस्वीरे हमारे सामने आ रही हैं। लेकिन लद्दाख में ITBP जवानों के द्वारा तिरंगा फरहाने का वीडियो सोशल मीडिया से लेकर विभिन्न मीडिया माध्यमों पर खूब पसंद किया जा रहा है।
हिमवीर के नाम से प्रसिद्ध आईटीबीपी के जवानों ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर 18,000 फीट की ऊँचाई पर तिरंगा फहराकर प्रत्येक भारतीय का सीना चौड़ा कर दिया है। बता दें कि 24 अक्टूबर 1962 को आईटीबीपी की स्थापना की गई थी।
युद्ध क्षेत्र में दुनिया का सबसे मुश्किल इलाक़ा माना जाता है लद्दाख
एक तरफ़ देश में कड़ाके की ठंड पड़ रही है, जहाँ लोग अपने घर से बाहर निकलने को भी तैयार नहीं हैं वहीं दूसरी ओर ITBP के जवानों ने उस पर्वत की चोटी पर भारतीय तिरंगा फहराया, जहाँ चारो तरफ़ सिर्फ़ बर्फ की चादर है और तापमान माइनस-30 डिग्री।
ए वतन तेरे लिए…#RepublicDay2019#RepublicDay#Himveers#ITBP pic.twitter.com/WcJicfOuai
— ITBP (@ITBP_official) January 26, 2019
इतना कम तापमान में हम बामुश्किल अनुमान कर सकते हैं की किस तरह से भारतीय जवान भारत की दुर्गम सीमाओं पर देश वासियों के रक्षार्थ खड़े हैं। लद्दाख के इस इलाके को युद्ध क्षेत्र के लिहाज से दुनिया के सबसे मुश्किल इलाकों में माना जाता है। यहाँ अक़्सर तापमान शून्य से भी काफी नीचे रहता है।
नक्सलियों के माँद में घुसकर शान से फहराया गया तिरंगा
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के पालमअड़गु इलाके में गणतंत्र दिवस के अवसर पर तिरंगा फहराया गया। यह इलाका नक्सलियों का गढ़ माना जाता है। सुरक्षा बलों ने साहस का परिचय देते हुए उन्हें चुनौती देते हुए यहाँ पहली बार तिरंगा फहराया। यहाँ नक्सली हमेशा से काला झंडा फहराते आए हैं। गणतंत्र दिवस के मौके पर सीआरपीएफ 74 वाहिनी के जवानों के साथ ही जिला बल के जवानों ने यहाँ तिरंगा फहराते हुए मिठाई बाँटी।
57 साल बाद गणतंत्र दिवस पर फहराया गया तिरंगा
बिहार के 62 फीट ऊँचे ऐतिहासिक दरभंगा राज किले पर 57 साल बाद गणतंत्र दिवस के अवसर पर तिरंगा फहराया गया। गौरवशाली दरभंगा और मिथिला स्टूडेंट्स यूनियन संगठन ने तिरंगा फहराते हुए भारत माता की जय के नारे लागाए।
गौरवशाली दरभंगा के सदस्य संतोष कुमार चौधरी ने कहा, “57 साल पहले दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह ने 1962 में आखिरी बार यहाँ तिरंगा फहराया था। पिछले साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ये परंपरा शुरू की गई।”