पाकिस्तान के पुरातत्वविदों को 93 साल बाद मोहनजोदड़ो में बड़ी खोज करने में कामयाबी मिली है। पुरातत्वविदों विशेषज्ञों की एक टीम ने गुरुवार (17 नवंबर, 2023) को मोहनजोदड़ो स्तूप के पश्चिमी किनारे पर डिवाइनिटी स्ट्रीट से तांबा के सिक्कों से भरे एक बर्तन मिलने का ऐलान किया।
ये 5000 साल पुराने इस शहर के अवशेषों में कलाकृतियों को खोजने की दिशा में 93 साल बाद पहली अहम खोज है। मोहनजोदड़ो के पुरातत्व निदेशक डॉ सैयद शाकिर शाह ने उस जगह पर खुदाई फिर से शुरू की थी।
एक महीने बाद पता चलेगा किस काल के हैं सिक्के
पुरातत्व निदेशक शाकिर शाह की इस खोज टीम में पुरातत्व संरक्षक गुलाम शब्बीर जोयो, सहायक संरक्षक इम्तियाज़ डोमकी, प्रयोगशाला सहायक रुस्तम अली भुट्टो और शोध विद्वान शेख जावेद सिंधी शामिल हैं। जानकारी के मुताबिक, जब कर्मचारी इस इलाके में संरक्षण का काम करने में मशरूफ थे।
तो इसी दौरान बुधवार (16 नवंबर, 2023) को उन्हें ताबों के सिक्कों से भरा ये घड़ा मिला था। उन्होंने इसे दोबारा से वहीं दबा दिया जहाँ से ये मिला था। इसके बाद पुरातत्व निदेशक शाह की खोज टीम ने लगातार वहाँ काम जारी रखा। लगभग तीन घंटे तक की मशक्कत के बाद मलबे में दबे तांबे के सिक्के वाले इस घड़े को सुरक्षित बाहर निकाला गया। सिक्कों को देखने से ऐसा लगता था कि उनमें मोटी जंग लग गई है और वे एक-दूसरे से चिपक गए हैं।
शाह के मुताबिक, लगभग साढ़े पाँच किलोग्राम वजन वाले सिक्कों के घड़े को बाद में साइट पर मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला में भेज दिया गया। शाकिर शाह ने मीडिया से कहा संभवतः ये सिक्के कुषाण काल के हो सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि सिक्कों पर शोध तभी शुरू होगा जब उन्हें प्रयोगशाला में खास प्रक्रिया से अलग और साफ कर लिया जाएगा। शोध पूरा होने के बाद इन सिक्कों को आगंतुकों के लिए मोहनजोदड़ो संग्रहालय में रखा जाएगा।
पुरातत्व निदेशक शाह ने आगे, “हालाँकि हमने फिलहाल सिक्कों को प्रयोगशाला में भेजा है। ये सिक्के किस काल और कितने पुराने है ये पता करने के लिए विशेषज्ञों को नियुक्त करेंगे जो सिक्कों पर अंकित शिलालेखों से ये पता करेंगे। हमें यह देखना होगा कि ये सिक्के कुषाण काल के किस राजवंश के हैं।”
उन्होंने कहा कि यह सभी के लिए अच्छी खबर है क्योंकि लगभग 100 साल के बाद साइट से इतनी बड़ी मात्रा में सिक्के मिले हैं। उन्होंने बताया कि जिस घड़े में सिक्के रखे गए थे वह टूटा हुआ था, लेकिन सिक्के सही सलामत थे। शाकिर शाह ने मीडिया से कहा कि संभवतः ये सिक्के कुषाण काल के हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि सिक्कों पर शोध तभी शुरू होगा जब उन्हें प्रयोगशाला में खास प्रक्रिया से अलग और साफ कर लिया जाएगा। शोध पूरा होने के बाद इन सिक्कों को आगंतुकों के लिए मोहनजोदड़ो संग्रहालय में रखा जाएगा।
उन्होंने आगे कहा, “हालाँकि हमने फिलहाल सिक्कों को प्रयोगशाला में भेजा है। ये सिक्के किस काल और कितने पुराने है ये पता करने के लिए विशेषज्ञों को नियुक्त करेंगे जो सिक्कों पर अंकित शिलालेखों से ये पता करेंगे। हमें यह देखना होगा कि ये सिक्के कुषाण काल के किस राजवंश के हैं।”
उन्होंने बताया कि जिस घड़े में सिक्के रखे गए थे वह टूटा हुआ था, लेकिन सिक्के सही सलामत थे। ये इसलिए सुरक्षित बच गए क्योंकि वो सड़क से 15 फीट की ऊँचाई पर कच्ची ईंटों से बनी दीवारों के बीच दबे थे। उन्होंने आगे कहा, “93 साल बाद हुई मौजूदा खोज उल्लेखनीय है और इसका श्रेय मोहनजोदड़ो टीम को जाता है।” उन्होंने कहा कि यह सभी के लिए अच्छी खबर है क्योंकि लगभग 100 साल के बाद साइट से इतनी बड़े पैमाने पर सिक्के मिले हैं।
वहीं इस खोजी टीम के मिट्टी और जल परीक्षण प्रयोगशाला के प्रभारी रुस्तम भुट्टो ने कहा कि बुरी तरह से आपस में चिपके इन सिक्कों को अलग करने की प्रक्रिया में कम से कम एक महीने का समय लगेगा। इसके बाद ही इन सिक्कों पर लिखी भाषा और बनी आकृतियों को समझा और पढ़ा जा सकेगा।
पहले 1922 में मिले थे यहाँ ताँबे के सिक्के
साइट पर शोध में लगे शेख जावेद सिंधी ने डॉन अखबार को बताया, “1922 से 1931 तक RD बनर्जी, सर जॉन मार्शल और मैके ने मोहनजोदड़ो में खुदाई की थी। इस दौरान खुदाई में उन्हें 4348 तांबों के सिक्के खुदाई में मिले थे। ये सिक्के 2 से 5 शताब्दी ईस्वी तक के कुषाण काल के थे।”
वरिष्ठ संरक्षणवादी अली हैदर गाधी ने बताया, “1921-22 में मठ की खुदाई के दौरान बनर्जी की पहली नजर उन पर पड़ी। वो जब सबसे पुराने बौद्ध फुटपाथ पर एक जगह सबसे नीचे पहुँचे तो उन्हें 40 फीट नीचे दबे सिक्कों की सात अलग-अलग परतें दिखीं। ये सभी ताम्रपाषाण काल से जुड़ी थीं।”
अली हैदर गाधी ने आगे बताया कि यहाँ से बनर्जी ने लगभग 2000 सिक्के खोजे थे। इनमें से 338 कुषाण शासक वासुदेव-1 के काल के थे। इनके आगे के भाग पर पर खड़ी पोजिशन में शाही आकृति और पीछे भगवान शिव अंकित थे। तो वहीं 1,823 सिक्के बगैर कुछ लिखे मिले थे। इसके अलावा नौ सिक्के ऐसे थे जिनके आगे के भाग पर अग्नि वेदी और पीछे के भाग पर एक अनगढ़ी आकृति थी। उन्होंने आगे कहा, “हालाँकि बाद की जाँच में यहाँ सिंधु आधिपत्य और कुषाण काल होने के सुबूत नहीं मिले थे। लेकिन यह संभावना नहीं है कि इस ऊँची समतल और बाढ़ से बचाने वाली जगह को कभी भी पूरी तरह से छोड़ दिया गया हो।”