बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार व हिंसक हमलों की सरकार से लेकर मीडिया तक ने निंदा की है। वहीं, मुस्लिमों द्वारा हिंदू मंदिरों और उनके घरों में आग लगाने की खबर ने आध्यात्मिक नेताओं तक को व्यथित कर दिया है। हालाँकि, बांग्लादेश के हिंदुओं के बेघर होने से ठीक पहले ढाका में ‘बांग्लादेश शिल्पकला अकादमी’ ने ‘गंगा-जमुना सांस्कृतिक महोत्सव 2021’ का समापन किया था।
गंगा-जमुना सांस्कृतिक महोत्सव क्या है?
बांग्लादेश और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के जरिए दोनों देशों के रिश्ते को मजबूत करने के उद्देश्य से गंगा-जमुना सांस्कृतिक उत्सव परिषद की भारतीय और बांग्लादेश समिति संयुक्त रूप से हर साल 10-दिवसीय उत्सव का आयोजन करती है। गंगा-जमुना सांस्कृतिक महोत्सव पर 2019 की एक रिपोर्ट पढ़ें।
कोरोना महामारी के कारण एक साल के बाद यानी 2021 में यह उत्सव 1 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक आयोजित किया गया था। ‘भारतीय सांस्कृतिक संगठन’ इस साल कोविड-19 यात्रा प्रतिबंधों के कारण भाग नहीं ले सका, लेकिन 140 स्थानीय सांस्कृतिक संगठनों के 3,500 से अधिक कलाकारों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया था।
गंगा-जमुना सांस्कृतिक उत्सव परिषद के संयोजक गुलाम कुद्दुस (Ghulam Quddus) ने भी यही कहा, “हमने बांग्लादेश और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए आठ साल के लिए सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन किया है।”
दिलचस्प बात यह है कि इस साल गंगा-जमुना उत्सव की थीम ‘बांग्लादेश की स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती और देश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की जयंती’ पर आधारित थी। इस दौरान दिवंगत रंगमंच से जुड़े अमलेश चक्रवर्ती को भी श्रद्धांजलि दी गई, जिन्होंने कोलकाता में गंगा-जमुना सांस्कृतिक महोत्सव की नींव रखी थी।
सांस्कृतिक मामलों के राज्य मंत्री केएम खालिद ने उद्घाटन समारोह के दौरान कहा था, “हमारे सांस्कृतिक मामलों के मंत्रालय से हम इन सांस्कृतिक संगठनों को प्रायोजित करना चाहते हैं। इन संगठनों को पर्याप्त समर्थन सुनिश्चित करने के लिए हम एक सूची तैयार करेंगे और उचित मूल्यांकन के बाद इसे सांस्कृतिक प्रतीकों को सौंपेंगे।”
’13 अक्टूबर को हिंसा’
गौरतलब है कि 13 अक्टूबर को बांग्लादेश के कॉमिला जिले ननुआ दिघी में दुर्गा पूजा के पंडाल में मुस्लिम भीड़ द्वारा जम कर तोड़फोड़ मचाई गई थी। देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। किसी असामाजिक तत्व ने वहाँ चल रही दुर्गा पूजा को बदनाम करने के लिए कुरान के अपमान की अफवाह फैला दी, जिसके बाद मुस्लिमों द्वारा वहाँ हिंसा की घटना को अंजाम दिया गया था। लेखिका तस्लीमा नसरीन ने बताया था कि किसी हिन्दू विरोधी ने माँ दुर्गा के चरणों में चुपचाप कुरान रखकर इस तस्वीर को वायरल कर दिया था।
जिले के एक अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की थी। उसने कहा था, ”बदमाशों ने इसकी कुछ तस्वीरें खींच लीं और भाग गए। कुछ ही घंटों में इसे फेसबुक पर शेयर कर दिया गया, जिससे यह तस्वीरें वायरल हो गई थीं।”
मालूम हो कि मुस्लिम भीड़ ने 101 हिंदू मंदिरों, पंडालों, 181 से ज्यादा घरों और दुकानों में आग लगा दी थी। यह हिंसा 10 दिनों तक चली, जिसमें कई लोग मारे गए थे। हिंसा को फेसबुक पर एक झूठी पोस्ट के आधार पर अंजाम दिया गया और उचित ठहराया गया था।
अब पता चला है कि दुर्गा पूजा के मंडप में कुरान रखने वाला कोई हिन्दू नहीं, बल्कि इक़बाल हुसैन था। 35 साल का इक़बाल हुसैन कॉमिला के सुजनगर क्षेत्र का रहने वाला है। उसके अब्बा का नाम नूर मोहम्मद आलम है। उसने ही ननुआ दीघिर पर दुर्गा पूजा के पंडाल में कुरान रख दिया, जिसके बाद उसकी तस्वीर को कुरान का अपमान बता कर फैलाया गया और हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसा शुरू हो गई