ची फबाओ (QI Fabao) – यह नाम है एक चीनी रेजिमेंट कमांडर का। बीजिंग विंटर ओलंपिक का इसे मशालधारक (torchbearer of Beijing Winter Olympics) बनाया गया है। इस शख्स को लेकर भारत के विदेश मंत्रालय ने चीन को स्पष्ट संकेत दिया है – बीजिंग में होने वाले विंटर ओलंपिक के उद्घाटन/समापन समारोह में भारत के राजनयिक शामिल नहीं होंगे।
Big Breaking: MEA says India's top diplomat in Beijing will not attend Beijing Winter Olympics opening/ closing; calls PLA regiment commander Qi Fabao being the torchbearer as regretable https://t.co/cFPEjAyFy2 pic.twitter.com/iOgUdTAoeY
— Sidhant Sibal (@sidhant) February 3, 2022
बीजिंग विंटर ओलंपिक (Beijing Winter Olympics) का उद्घाटन समारोह 4 फरवरी 2022 को होना है। मात्र एक दिन पहले ही भारत के राजनयिकों का बायकॉट चीन के लिए शर्मिंदगी की विषय है। यह भी जानना जरूरी है कि बीजिंग विंटर ओलंपिक का बायकॉट सिर्फ भारत के राजनयिक नहीं कर रहे। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने पहले से ही चीनियों का बायकॉट कर रखा है।
ची फबाओ (QI Fabao) पर बवाल क्यों?
ची फबाओ अगर आम शख्स होता तो शायद चर्चा भी नहीं होती। यह शख्स खास है क्योंकि यह भारतीय सैनिकों पर गलवान घाटी में हमला करने वाले चीनियों का कमांडर था। इसको चोट भी लगी थी और भारतीय सैनिकों के आक्रामक रूप को देख कर यह भागा भी था।
युद्ध में जो सैनिक दुम दबा कर भागता है, वो देशद्रोही कहलाता है। अगर सेना का नायक ही भाग जाए तो क्या होगा? वही जो चीनी सैनिकों का हुआ। कायर अफसर ची फबाओ (QI Fabao) के भाग जाने और निर्णय की कमी के कारण 38 मारे गए।
बीजिंग विंटर ओलंपिक का मशालधारक (QI Fabao, torchbearer of Beijing Winter Olympics) ची फबाओ ही क्यों?
गलवान घाटी में जो भी हुआ, उसके बाद चीन की सोशल मीडिया साइट वीबो पर भी ये खुलासा हुआ था कि उस रात चीन के 38 सैनिक मारे गए। चीनी सरकार ने इससे जुड़ी हर पोस्ट हटवा दी थी। सोचा होगा बात दब जाएगी। ऐसा लेकिन हुआ नहीं। ऑस्ट्रेलिया की न्यूज साइट ‘द क्लैक्सन’ ने अब फिर से 38 चीनी सैनिकों के मारे जाने का खुलासा किया है।
बात सिर्फ विदेशी मीडिया के खुलासे की नहीं है। चीनी लोग भी अपने सैनिकों के मारे जाने से दुखी थे और उससे ज्यादा दुखी थे वहाँ की सरकार द्वारा उन्हें उचित वीरता सम्मान नहीं दिए जाने से। यह बात गलवान घाटी वाली घटना के बाद से समय-समय पर लोगों के सामने आती रही है। चीनी सोशल मीडिया साइट पर कम ही समय के लिए लेकिन दिखती रही है।
चीन की सरकार ने अपने लोगों में पनप रहे गुस्से और अंतरराष्ट्रीय शर्म से बचने के लिए ची फबाओ (QI Fabao) की चाल चली। ऐसा करके चीन की वामपंथी सरकार अपने लोगों में संदेश देना चाहती है कि वो अपने सैनिकों को भूली नहीं है। दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश दे रही है कि उसके सैनिक वीर हैं और गलवान झटके से ऊबर कर फिर से अपना दम-खम दिखा रहे हैं।
प्रोपेगेंडा कर रहे चीनियों की समस्या खत्म होती दिख नहीं रही। पहले प्रोपेगेंडा किया कि उसके सैनिकों को नुकसान हुआ ही नहीं। फिर अपने ही नागरिकों के सोशल मीडिया पोस्ट को हटाया। अब उन्हीं सैनिकों को सम्मान देने का नाटक… काठ की हांडी बार-बार आग पर नहीं चढ़ती, इस कहावत से शायद वाकिफ नहीं है चीनी वामपंथी सरकार।