चीन को उसकी ‘विस्तारवादी नीति’ के लिए लताड़ लगाने के बाद अब केंद्रीय तिब्बत प्रशासन (CTA) ने रविवार (जून 28, 2020) को उस पर तिब्बत में ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ का आरोप लगाते हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) से अनुरोध किया कि वह चीन द्वारा तिब्बत और उसके तहत आने वाले अन्य क्षेत्रों में किए जा रहे ‘मानवाधिकार उल्लंघनों’ (Human rights violations) पर एक विशेष सत्र बुलाए।
धर्मशाला स्थित केंद्रीय तिब्बत प्रशासन को तिब्बत की निर्वासित सरकार के तौर पर भी जाना जाता है। सीटीए ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी “एकजुट होने और बहुत देर हो जाने से पहले यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया कि चीन मानवाधिकार संबंधी जवाबदेहियों समेत अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत आने वाले दायित्वों का निर्वहन करे।”
सीटीए के अध्यक्ष लोबसांग सांगय ने एक बयान में कहा, “हम यूएनएचआरसी और सदस्य राष्ट्रों से चीन द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघनों के आकलन के लिए विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध करते हैं।”
तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री सांगेय ने कहा, “सीटीओ और तिब्बत के अंदर और बाहर रहने वाले तिब्बती यूएनएचआरसी के तहत संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का आह्वान करते हैं कि वे चीन द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघनों के खिलाफ तत्काल कदम उठाएँ।”
सांगेय ने चीन पर तिब्बत और उसके तहत आने वाले अन्य क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर मानवाधिकार उल्लंघन का भी आरोप लगाया।
तिब्बत के लोगों को मानव होने की अंतर्निहित गरिमा से भी कर दिया वंचित
उन्होंने कहा, “बीते छह दशक और उससे भी ज्यादा समय से तिब्बत के अंदर तिब्बती लोग चीन की सरकार के सत्तावादी शासन के तहत पीड़ा का सामना कर रहे हैं। चीनी सरकार ने तिब्बतियों से उनके मौलिक मानवाधिकार भी छीन लिए हैं। जिनकी गारंटी मानवाधिकार के वैश्विक घोषणा-पत्र के तहत भी मिलती है, तिब्बत के लोगों की विशिष्ट पहचान को खत्म कर दिया और उन्हें मानव होने की अंतर्निहित गरिमा से भी वंचित कर दिया।”
उन्होंने कहा, “चीन की सरकार द्वारा तिब्बतियों को दी जाने वाली यातनाएँ, लोगों को गायब कर देना, मठों में तोड़फोड़ मानवता के खिलाफ अपराध है और इसे ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ से कम नहीं ठहराया जा सकता।”