रमजान के बाद ईद-उल-फितर की तारीख तय करना अक्सर इस्लामी देशों में बहस का विषय रहा है। आमतौर पर यह तारीख लूनर कैलेंडर से तय की जाती है। लेकिन इसे पक्का तभी माना जाता है जब ईद से एक दिन पहले चाँद नजर आ जाए। कुछ देश इसके लिए अपने कुछ स्थानीय चाँद देखने वालों पर यकीन कर लेते हैं और कुछ सऊदी अरब पर छोड़ देते हैं कि जब वो ईद मनाएँगे तभी ईद होगी।
इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ। लोग सऊदी अरब पर भरोसा करके बैठे थे और सऊदी ने ईद का दिन शुक्रवार बता दिया। सऊदी के ऐलान के बाद ही ये बहस गरमा गई कि क्या वाकई ईद शुक्रवार को होनी चाहिए। कुछ खगोलविद निकलकर आए जिन्होंने चुनौती दी कि ईद शुक्रवार को नहीं हो सकती क्योंकि गुरुवार को चाँद दिख ही नहीं सकता। एक कुवैती खगोलविद ने तो कहा अगर ऐसा है कि गुरुवार को चाँद दिखा तो उसकी फोटो सबूत के तौर पर पेश की जाए।
बावजूद इस चुनौती के सऊदी ने 13 में से 2 क्षेत्रों में चाँद नजर आने पर पर ईद शुक्रवार को मनाई। जबकि मोरक्को, पाकिस्तान, ओमान, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, भारत और जापान में शनिवार को ईद मनाई गई। साथ ही कुवैती खगोलविद की चुनौती पर सऊदी अरब से चाँद की फोटो दिखाने को कहा गया। इस पर एक सऊदी के खगोलविद मुलहम-अल-हिंद ने धुंधली चांद की फोटो खींचकर दिखाई और कहा कि ये चार्ज कपल्ड डिवाइस इन्फ्रारेड कैमरे का प्रयोग करके खींची गई है।
उल्लेखनीय है कि इस तरह ईद की तारीखों में हेर-फेर के बाद कई इस्लामी देश और मुस्लिम लोग सऊदी अरब से नाराज हैं। उनका मत यही है कि गुरुवार को किसी कीमत पर चाँद का दिखना संभव नहीं था तो सऊदी ने ईद कैसे मनाई। ईराक के शिया मौलवी अली-अल-सिस्तानी ने भी ईद शनिवार को बताई।
इसी तरह लेबनान में भी शिया इस्लामिक काउंसिल ने ईद शनिवार की बताई। इसके अलावा ब्रिटिश सरकार ने भी माह की शुरुआत में यही अनुमान लगाया था कि गुरुवार को यूरोप, अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया के बड़े-बड़े क्षेत्र में चंद्रमा नहीं दिखाई देंगे जिसके बाद कई मुस्लिमों ने सऊदी के पल्ला झाड़ते हुए ईद शनिवार की मानी।