संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में पाकिस्तान द्वारा पेश इस्लामोफोबिया से संबंधित एक मसौदे के दौरान भारत अनुपस्थित रहा। इस मसौदे को चीन का समर्थन हासिल था। मसौदे में कहा गया था कि हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म और अन्य धर्मों द्वारा दूसरे मतों के खिलाफ फैलाए जा रहे ‘धार्मिक भय’ की व्यापकता को भी स्वीकार किया जाना चाहिए, ना कि सिर्फ एक धर्म की बात की जाए।
पाकिस्तान द्वारा शुक्रवार (15 मार्च 2024) को 193 सदस्यीय महासभा में पेश किए गए प्रस्ताव ‘इस्लामोफोबिया से निपटने के उपाय’ को स्वीकार कर लिया। इस प्रस्ताव के पक्ष में 115 देशों ने मतदान किया, जबकि इसका विरोध किसी ने नहीं किया। मतदान के दौरान भारत, ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूक्रेन और यूके सहित 44 देश अनुपस्थित रहे।
इस्लामोफोबिया पर संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रतिनिधि मुनीर अकरम ने पेश किया था। इस दौरान उन्होंने कहा था कि दुनिया भर के मुस्लिमों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है और इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए साहसिक और निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता है। इस दौरान अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह और नागरिकता संशोधन कानून (CAA) की भी बात की।
वहीं, संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने यहूदीफोबिया, ईसाईफोबिया और इस्लामोफोबिया से प्रेरित सभी कृत्यों की निंदा की। हालाँकि, इस दौरान उन्होंने जोर देकर कहा कि इसे स्वीकार करना चाहिए कि इस तरह का फोबिया ‘इब्राहिम धर्मों’ (यहूदी, ईसाई और इस्लाम) से परे भी फैला हुआ है।
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— India at UN, NY (@IndiaUNNewYork) March 15, 2024
PR delivers the explanation of India's position during the adoption of the resolution on 'Measures to combat Islamophobia' at the United Nations General Assembly today. pic.twitter.com/AheU8UvpYM
उन्होंने कहा, “स्पष्ट साक्ष्यों से पता चलता है कि दशकों से गैर-इब्राहिम धर्मों के अनुयायी भी धार्मिक भय से प्रभावित हुए हैं। इससे धार्मिक भय के कई रूपों का उदय हुआ है, विशेष रूप से हिंदू विरोधी, बौद्ध विरोधी और सिख विरोधी भावनाएँ प्रमुख हैं। धार्मिक भय के ये समकालीन रूप गुरुद्वारों, मठों और मंदिरों जैसे धार्मिक स्थानों पर बढ़ते हमलों में स्पष्ट हैं।”
उन्होंने कहा, “बामियान में बुद्ध प्रतिमा का खंडन, गुरुद्वारा परिसरों में उल्लंघन, गुरुद्वारों में सिख तीर्थयात्रियों का नरसंहार, मंदिरों पर हमले और मंदिरों में मूर्तियों को तोड़ने का महिमामंडन, ये सभी गैर-अब्राहम धर्मों के खिलाफ धार्मिक भय हैं। बता दें कि मार्च 2001 में तालिबान ने अफगानिस्तान के बामियान में भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया था, जिसकी दुनिया भर में निंदा हुई थी।
कंबोज ने कहा कि ऐसी मिसाल कायम नहीं होनी चाहिए, जिसके परिणामस्वरूप अलग-अलग धर्मों से अलग-अलग प्रस्ताव आएँ। उन्होंने कहा कि इससे संयुक्त राष्ट्र को धार्मिक शिविरों में विभाजित करने का प्रयास किया जा सकता है। रुचिरा कंबोज ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र अपना ऐसा रुख बनाए रखे, जो दुनिया को एक वैश्विक परिवार के रूप में गले लगाते हुए शांति और सद्भाव के तहत एकजुट करती हो।”
भारत की तरफ से बात रखते हुए रुचिरा ने आगे कहा, “इस्लामोफोबिया का मुद्दा निस्संदेह महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि अन्य धर्म भी भेदभाव और हिंसा का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “अन्य धर्मों की चुनौतियों की उपेक्षा करते हुए सिर्फ इस्लामोफोबिया से निपटने के लिए संसाधनों का आवंटन करना, अनाजने में बहिष्कार और असमानता की भावना कायम कर सकता है।”
कंबोज ने कहा कि यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि 1.2 अरब से अधिक अनुयायियों वाला हिंदू धर्म, 53.5 करोड़ से अधिक अनुयायियों वाला बौद्ध धर्म और दुनिया भर में 3 करोड़ से अधिक अनुयायियों वाला सिख धर्म के भी ‘धार्मिक भय’ से पीड़ित हैं। उन्होंने कहा, “अब समय आ गया है कि हम धार्मिक भय की व्यापकता को स्वीकार करें, न कि केवल एक को उजागर करें।”
उन्होंने कहा कि भारत सैद्धांतिक तौर पर एक ही धर्म के आधार पर विशेष दूत का पद सृजित करने का विरोध करता है। भारतीय समाज को समावेशी और सभी धर्मों का सम्मान करने वाला बताते हुए उन्होंने कहा, “पारसी, बौद्ध, यहूदी या किसी अन्य धर्म के अनुयायियों ने भारत में उत्पीड़न या भेदभाव से मुक्त आश्रय पाया है।”
इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से पहले महासभा ने यूरोपीय संघ की ओर से बेल्जियम द्वारा मसौदे में पेश किए गए दो संशोधनों को खारिज कर दिया। वहीं, भारत ने इन दोनों संशोधनों के पक्ष में मतदान किया। एक संशोधन में कुरान के अपमान के संदर्भों को हटाने के लिए प्रस्ताव की भाषा में बदलाव का प्रस्ताव रखा गया। दूसरे संशोधन में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत के बजाय ‘मुस्लिम विरोधी भेदभाव से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र केंद्र बिंदु’ कहे जाने की माँग गई थी।
दरअसल, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने साल 2022 में एक प्रस्ताव अपनाया था, जिसमें 15 मार्च को इस्लामोफोबिया से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया गया था। यह प्रस्ताव न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में स्थित दो मस्जिदों में साल 2019 में हुई गोलीबारी के मद्देनजर पेश किया गया था। इस हमले में 50 से अधिक लोग मारे गए थे।