भारत के पड़ोसी देश मालदीव में हुए राष्ट्रपति चुनावों में पीपल्स नेशनल कॉन्ग्रेस पार्टी के उम्मीदवार मुम्मद मुइज़्ज़ु की जीत हुई है। मुइज़्ज़ु ने वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को पराजित किया है। मुइज़्ज़ु अभी तक मालदीव की राजधानी माले के मेयर थे।
मालदीव में प्रत्येक पाँच वर्ष पर राष्ट्रपति चुनाव होते हैं। वर्ष 2018 में इब्राहिम सोलिह, अब्दुल्ला यामीन को हरा कर राष्ट्रपति बने थे। मुइज़्ज़ु, यामीन की ही पार्टी के उम्मीदवार हैं। यामीन को चीन का समर्थक जबकि सोलिह को भारत का समर्थक माना जाता रहा है।
मुइज़्ज़ु की इस जीत के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें बधाई दी है। उन्होंने भारत को मालदीव के साथ रिश्ते मजबूत करने और हिन्द महासागर में दोनों देशों के सहयोग को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध बताया है।
Congratulations and greetings to @MMuizzu on being elected as President of the Maldives.
— Narendra Modi (@narendramodi) October 1, 2023
India remains committed to strengthening the time-tested India-Maldives bilateral relationship and enhancing our overall cooperation in the Indian Ocean Region.
कौन हैं मालदीव के नए राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ु?
मुहम्मद मुइज़्ज़ु 45 वर्ष के हैं। उन्होंने वर्ष 2012 में राजनीति की शुरुआत तब की थी, जब वह मालदीव के पाँचवे राष्ट्रपति मुहम्मद वहीद की सरकार में आवासन मंत्री का कार्यभार संभाला था।
वर्ष 2013 में मालदीव में सरकार बदलने पर वह अब्दुल्ला यामीन सत्ता में आए थे। मुइज़्ज़ु को यामीन की सरकार में भी यही मंत्रिपद दिया गया था। उन्हें 2019 में पीपल्स नेशनल कॉन्ग्रेस पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था। वह पार्टी का चुनाव प्रबन्धन भी देखते थे। यामीन ने इस पार्टी का गठन अपने पुराने दल प्रोग्रेसिव पार्टी से अलग होने के बाद किया था।
އިންޝާ ﷲ އަޅުގަނޑު ދޭ ޔަޤީން ކަމަކީ ރައްޔިތުންގެ އުއްމީދުތައް ޙާސިލްވާ ޢަދުލުވެރި، އިންސާފުވެރި، ދެފުށްފެންނަ، ނަތީޖާ ނެރެދޭ، ހިންގުންތެރި ވެރިކަމެއް ކޮށްދީ، ހުރިހާ ގޮތަކުން މިނިވަންކަން ޔަޤީންވެފައިވާ، އިޤްތިޞާދު ހަރުދަނާ ކުރެވިފައިވާ، ގެދޮރުވެރިކަން ޔަޤީންކޮށްދެވިފައިވާ،… pic.twitter.com/PKTfSeIRCM
— Dr Mohamed Muizzu (@MMuizzu) September 29, 2023
पेशे से सिविल इंजीनियर मुइज़्ज़ु वर्ष 2021 में मालदीव की राजधानी माले के मेयर बने थे। उनकी लोकप्रियता का ग्राफ तबसे बढ़ रहा था। मुइज़्ज़ु को अब्दुल्ला यामीन की अनुपस्थिति के कारण राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था क्योंकि वह भ्रष्टाचार के कारण जेल में हैं।
5 लाख की आबादी वाले देश मालदीव में हुए इन चुनावों में 85% वोट पड़े थे। मुइज़्ज़ु को इन चुनावों में 54% वोट मिले जबकि इब्राहिम सोलिह को 43% वोट मिले। सोलिह ने एक्स (पहले ट्विटर) पर अपनी हार स्वीकार कर ली है और मुइज़्ज़ु को बधाई दी है।
ރިޔާސީއިންތިޚާބު ކާމިޔާބުކުރެއްވި @MMuizzu އަށް މަރްޙަބާ ދަންނަވަން. އިންތިޚާބުގަ ރައްޔިތުން ދެއްކެވި ޑިމޮކްރެޓިކް ރީތި ނަމޫނާއަށްޓަކާ ޝުކުރު ދަންނަވަން. އެކުގަ މަސައްކަތްކުރި އެމް.ޑީ.ޕީ އާއި އޭ.ޕީ ގެ މެމްބަރުން އަދި އަޅުގަޑަށް ވޯޓުދެއްވި ހުރިހާރައްޔިތުންނަށް ޝުކުރު ދަންނަވަން
— Ibrahim Mohamed Solih (@ibusolih) September 30, 2023
भारत और चीन को मुइज़्ज़ु के जीतने से क्या फर्क?
मालदीव में चीन अपना प्रभाव जमाना चाहता है कि जबकि भारत उसे चीन के कर्जे के जाल में नहीं फँसने देना चाहता। भारत मालदीव में लोकतंत्र की बढ़त के लिए काम करता आया है और उसे काफी मदद भी देता है। मुइज़्ज़ु चीन के समर्थक माने जाते हैं।
अभी तक राष्ट्रपति रहे इब्राहिम मोहम्मद सोलिह भारत के समर्थक माने जाते थे। उनके कार्यकाल के दौरान दोनों देशों के संबंध नई ऊँचाई पर पहुँचे थे। इसे पहले अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल के दौरान मालदीव पर चीन का प्रभाव बढ़ गया था।
चीन लगातार प्रयास करता रहा है कि वह मालदीव में अपना प्रभाव बढ़ा कर वहाँ सैन्य अड्डा स्थापित करे। चीन के हिन्द महासागर में सैन्य अड्डा बनाने से भारत की सुरक्षा को खतरा है, इसलिए वह लगातार उसका प्रभाव कम करने के प्रयास करता आया है।
मुइज़्ज़ु लगातार भारत के विरोध में बोलते रहे हैं। मुइज़्ज़ु मालदीव में भारतीय सैनिकों को लेकर मुखर रहे हैं। भारत ने मालदीव को दो हेलीकाप्टर और एक डोर्नियर विमान दिए हैं। इनके रख रखाव और अन्य कार्यों के लिए ही मालदीव में लगभग 75 भारतीय सैनिक उपस्थित हैं।
मुइज़्ज़ु अपनी चुनावी रैलियों में इन भारतीय सैनिकों को देश से बाहर निकालने पर जोर देते रहे हैं। हालाँकि यह सैनिक ना ही किसी सुरक्षा रोल में हैं और ना ही अन्य किसी भी प्रकार की सैन्य गतिविधियों में शामिल हैं परन्तु चीन का समर्थन करने वाले मुइज़्ज़ु तथा अन्य नेताओं को इनसे समस्या है। मुइज़्ज़ु के चुनाव का बड़ा मुद्दा भारत का विरोध रहा है।
मालदीव के नए चुने गए राष्ट्रपति को यह याद करना चाहिए कि भारतीय सेना ने ही वर्ष 1988 में समय पर पहुँच कर मालदीव में सत्ता का तख्तापलट होने से रोका था। भारतीय सेना ऑपरेशन कैक्टस चलाकर मालदीव से लिट्टे और मालदीव के विद्रोहियों को सत्ता पर काबिज होने से रोका था।
मुइज़्ज़ु के सत्ता में आने से मालदीव में भारत के हित अधिक प्रभावित नहीं होंगे लेकिन चीन का प्रभाव बढ़ने की आशंका है।
मालदीव को कर्जे के जाल में फँसाना चाहता है चीन
मालदीव विश्व के सबसे छोटे देशों में से एक है और कुछ द्वीपों को मिलाकर बना हुआ है। 5.2 लाख की आबादी वाला यह देश चारों तरफ से सागर से घिरा हुआ है और पर्यटन ही यहाँ की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है।
मालदीव में विकास संबंधी महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के लिए उसे भारत या चीन जैसे बड़े सहयोगी देशों की आवश्यकता पड़ती है। इसी का फायदा उठा कर अब्दुल्ला यामीन के शासन के दौरान चीन ने मालदीव को कर्जे में फँसाना चालू कर दिया था।
भारत लगातार मालदीव को बड़ी सहायता देता आया है और मालदीव को चीन के कर्जे से जाल में फँसने से बचाता रहा है। भारत ने वर्ष 2023-24 के बजट में भी मालदीव के लिए 400 करोड़ रुपए देने की घोषणा की थी।
बीबीसी की वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट बताती है कि मालदीव को चीन ने लगभग 3.3 बिलियन डॉलर (लगभग 2.7 खरब) का कर्ज दिया था जबकि मालदीव की खुद की पूरी अर्थव्यवस्था ही वर्तमान में लगभग 6.5 बिलियन डॉलर(5.3 खरब) है।
कर्ज ना चुकाने की स्थिति में चीन उन प्रोजेक्ट पर कब्ज़ा कर सकता है, जिनके लिए उसने कर्ज दिया था। श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह में यही हुआ था और अब चीन ने उसे 99 वर्षों के लिए लीज पर ले लिया है, जिससे श्रीलंकाई संप्रुभता खतरे में है। मालदीव के साथ ऐसा होने की आशंका जताई जा रही।
इब्राहीम इब्राहीम सोलिह की सरकार द्वारा चीन से दूरी बनाना और कई प्रोजेक्ट को चीन के हाथों से निकाल कर भारत को देने से यह स्थिति हालाँकि नहीं आई। अब आने वाले समय में देखना होगा कि मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ु भारत और चीन से रिश्तों में कैसा रुख अपनाते हैं।