कारगिल के ‘शैतान’ परवेज़ मुशर्रफ़ को फाँसी की सजा: इमरजेंसी थोपने के लिए देशद्रोह का था मामला

मुशर्रफ़ पर लटकी मौत की तलवार?

पेशावर हाई कोर्ट ने गायब चल रहे पूर्व राष्ट्रपति, सैन्य जनरल और मुल्क को कारगिल की शर्मनाक हार में झोंकने वाले पूर्व तानाशाह परवेज़ मुशर्रफ़ को मौत की सज़ा सुनाई है। उन पर 3 नवंबर, 2007 को संविधान को निलंबित कर देश में इमरजेंसी थोपने के मामले में देशद्रोह का मुकदमा चल रहा था।

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मीडिया रिपोर्टों के अनुसार यह पाकिस्तान में पहली बार हो रहा है कि जम्हूरियत और दस्तूर (लोकतंत्र और संविधान) की ‘हत्या’ के आरोप में किसी सैन्य शासक को फाँसी सुनाई जा रही है। गौरतलब है कि पाकिस्तान ने अपने 70 साल के इतिहास में अधिकांश समय सैन्य तख्तापलट और तानाशाही के बीच ही बिताया है।

2013 में दायर इस मुकदमे में उनका केस तीन जजों की पीठ सुन रही थी। बताया जा रहा है कि इस समय वे दुबई में हैं, जहाँ वह 2016 में इलाज के नाम पर गए थे। इसके पहले 2001 से 2008 तक मुशर्रफ़ पाकिस्तान के राष्ट्रपति रह चुके हैं। इसी महीने उन्होंने अस्पताल के बिस्तर से एक वीडियो संदेश जारी कर अपने खिलाफ मुकदमे को बेबुनियाद बताया था।

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रॉयटर्स ने पाकिस्तानी कानून अधिकारी सलमान नदीम के हवाले से दावा किया है कि परवेज़ मुशर्रफ़ को पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 6 के उल्लंघन का दोषी पाया गया है। उन्होंने 1999 में कारगिल युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ का तख्ता-पलट कर सत्ता हासिल की थी।

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मुशर्रफ को जिस कानून के तहत मृत्युदण्ड सुनाया गया है, वह 1973 में लागू हुआ था। इसके तहत राष्ट्रद्रोह के मामले में मौत की सज़ा या उम्रकैद ही मिलती है

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क़ानूनी उपायों की बात करें तो मुशर्रफ़ के पास सुप्रीम कोर्ट में इस निर्णय को चुनौती देने का रास्ता खुला है। अगर वहाँ से उन्हें निराशा हाथ लगती है तो वे राष्ट्रपति आरिफ अल्वी के सामने दया याचिका दायर कर सकते हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया