पाकिस्तान में हमेशा से इस्लामवादी कट्टरपंथी समूहों और इस्लामिक कट्टरपंथियों का बोलबाला रहा है। हमेशा से पाकिस्तान के एक्सटर्नल और इंटरनल पॉलिसी में इनका दबाव देखने को मिला है। वहीं पाकिस्तान के हर आधिकारिक शासन ने भी हमेशा इन अराजकतावादी समूहों को सराहा और सर्वोच्च स्थान पर रखा है।
हाल ही में पाकिस्तानी सरकार ने कट्टर इस्लामिक संगठन तहरीक-ए-लब्बैक(टीएलपी) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। बता दें टीएलपी ने पैगंबर मुहम्मद के कार्टून दिखाने पर फ्रांस के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया था।
पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री ब्रिगेडियर आर एजाज शाह और धार्मिक मामलों के मंत्री नूर-उल-हक कादरी ने बातचीत की और दोनों पक्षों में हुए समझौते पर हस्ताक्षर किया। समझौते में पाकिस्तान सरकार ने तहरीक-ए-लब्बैक से वादा किया है कि वो 2 महीने के भीतर फ्रांसीसी राजदूत को निष्कासित करेगें। इसके अलावा, पाकिस्तान अपना कोई राजदूत फ्रांस नहीं भेजगा। सरकारी स्तर पर फ्रेंच उत्पादों का बहिष्कार भी किया जाएगा। यहीं नहीं तहरीक-ए-लब्बैक के गिरफ्तार कार्यकर्ताओं की सुरक्षित रिहाई पर भी सरकार सहमत हो गई है।
Islamic Republic of Pakistan. What a shame!
— Zafar Sahito (@widhyarthi) November 18, 2020
This Paper is an agreement signed by interior minister of #Pakistan and leaders of Tahreek Labeek Pakistan (TLP) for ending protest in Rawalpindi. This protest was against #France November 16,2020. This is how Pakistan is governed. 1/3 pic.twitter.com/J22uun758B
हालाँकि, समझौते पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद, पाकिस्तान की सरकार ने यह भी कहा कि यह मुद्दा अभी भी सुलझा नहीं है। सरकार ने इस बात की भी पुष्टि नहीं की कि कैसे फ्रांसीसी उत्पादों का व्यापक बहिष्कार किया जाएगा।
विदेशी कार्यालय के प्रवक्ता ज़ाहिद हाफ़िज़ चौधरी ने बीबीसी उर्दू को बताया, “पाकिस्तान ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है; समय आने पर मीडिया को सूचित किया जाएगा।”
सरकार ने कथित तौर पर टीएलपी के साथ पहले भी एक समझौता किया था, लेकिन सरकार द्वारा किए गए वादों में से किसी भी वादे को पूरा नहीं किया गया था। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह समझौत सरकारी अधिकारियों द्वारा प्रदर्शित उनकी अनिच्छा को स्पष्ट करता है।
इस सप्ताह के रविवार से टीएलपी के समर्थकों ने राजधानी इस्लामाबाद में एक बेहद ही उग्र प्रदर्शन किया था। वहीं सरकार द्वारा उनकी माँगों पर सहमति जताने के बाद टीएलपी ने अपना प्रदर्शन समाप्त किया।
प्रदर्शन कर रहे भीड़ के एक प्रवक्ता एजाज अशरफी ने कहा, “सरकार द्वारा एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद हम अपने विरोध को समाप्त कर रहे हैं जो आधिकारिक रूप से फ्रांसीसी उत्पादों का बहिष्कार करेगा।”
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को कट्टर बताते हुए उन पर इस्लाम पर हमला करने का आरोप लगाया था।
इमरान खान ने अपने ट्वीट में फ्रांसीसी राष्ट्रपति पर निशाना साधते हुए कल लिखा, “एक नेता की पहचान होती है कि वह इंसानों को एकजुट करता है, जैसा कि मंडेला ने लोगों को विभाजित करने की बजाय उन्हें एक करने पर जोर दिया। लेकिन एक आज का समय है, जब राष्ट्रपति मैक्रों देश से रेसिज्म, ध्रुवीकरण हटाने की बजाय अतिवादियों को हीलिंग टच और अस्वीकृत स्थान देने में लगे हैं, जो निश्चित रूप से उनकी कट्टरवादी सोच को दिखाता है।”
इमरान खान ने ट्वीट में यह भी लिखा, “यह दुखद है कि राष्ट्रपति मैक्रों ने विवादित कार्टून को बढ़ावा देते हुए जानबूझकर समुदाय वालों को भड़काने की कोशिश की है।”
पाक पीएम ने कहा कि इस समय फ्रांस राष्ट्रपति को संयम से काम लेते हुए कट्टरपंथियों को दरकिनार करने की रणनीति अपनानी चाहिए थी। लेकिन उन्होंने इस्लाम की जानकारी न होने के बावजूद मजहब पर हमला करते हुए इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देना चुना, जबकि उन्हें आतंक पर हमला करना चाहिए था।
उल्लेखनीय है कि टीएलपी तहरीक-ए-लब्बैक या रसूल अल्लाह (TLYRA) आंदोलन की राजनीतिक शाखा है, जिसने पहले पाकिस्तान में ईश निंदा के विरोध में भारी भीड़ इकट्ठा की थी। खादिम हुसैन रिज़वी की अध्यक्षता वाला यह समूह 2011 में सुर्खियों में आया था, जब पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या करने वाले पुलिसकर्मी मुमताज़ कादरी की फाँसी का इस समूह ने विरोध किया था।
बता दें गवर्नर की हत्या इसलिए की गई थी क्योंकि उसने देश के ईश निंदा कानूनों के प्रति अपनी अस्वीकृति व्यक्त की थी। टीएलपी ने 2017 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कई हफ्तों तक प्रदर्शन भी किया था। संक्षेप में, इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाने के पीछे टीएलपी का बड़ा हाथ है।