Saturday, November 16, 2024
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हजार वर्ष पुरानी मस्जिद में PM मोदी का हुआ भव्य स्वागत: इसके पुनर्निर्माण में भारत का भी रहा है योगदान, इजिप्ट में भारतीय जवानों को भी दी श्रद्धांजलि

सन 1914 से 1919 से चले प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने 11 लाख भारतीय जवानों को लड़ने के लिए भेजा था। इनमें से 74,000 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इन भारतीय जवानों को फ्रांस, ग्रीस, उत्तरी अफ्रिका, मिस्र, फिलिस्तीन और ईराक में दफना दिया गया था। इसके अलावा 70,000 भारतीय जवान अपाहिज होकर वापस लौटे थे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार (25 जून 2023) को मिस्र की राजधानी काहिरा (Cairo, Egypt) के अल-हकीम मस्जिद का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने वहां मौजूद बोहरा मुस्लिम समुदाय के लोगों से बातचीत की और उनके गले भी मिले। इसके बाद उन्होंने हेलियोपोलिस वॉर मेमोरियल का भी दौरा किया।

मिस्र की दो दिवसीय यात्रा पर गए प्रधानमंत्री जब अल-हकीम मस्जिद गए तो वहाँ बोहरा समुदाय के लोग पहले से ही उपस्थित है। बोहरा समुदाय के लोग इस मस्जिद का जिर्णोद्धार करा रहे हैं और इसके साथ ही इसके रख-रखाव का जिम्मा भी इन्हीं लोगों पर है। भारत से भी इस मस्जिद के लिए बहुत मदद मिलती है।

11वीं सदी में बने अल-हकीम मस्जिद में लोगों के साथ बातचीत और गले मिलते हुए पीएम मोदी का वीडियो सामने आया है। इसमें प्रधानमंत्री मुस्कुराते नजर आ रहे हैं। इस दौरान बोहरा समुदाय के लोगों ने उन्हें मस्जिद की तस्वीर भी उपहार में दिया।

काहिरा स्थित इस ऐतिहासिक मस्जिद का नाम 16वें फातिमिद खलीफा अल-हकीम (985-1021) के नाम पर रखा गया है। मस्जिद का निर्माण मूल रूप से अल-हकीम के पिता खलीफा अल-अजीज ने 10वीं शताब्दी के अंत में शुरू कराया था, जिसे 1013 में पूरा किया गया था।

काहिरा के बीचों बीच स्थित अल-हकीम मस्जिद शहर की दूसरी सबसे बड़ी और चौथी सबसे पुरानी मस्जिद है। 13,560 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैली इस मस्जिद में चार बड़े हॉल हैं। जहाँ नमाज अता की जाती है, वह सबसे बड़ा हॉल है। यह करीब 4,000 वर्ग मीटर जितना बड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी अल-हकीम मस्जिद में लगभग आधा घंटा बिताएँगे और बोहरा समुदाय के लोगों से मुलाकात करेंगे।

दरअसल, इस्लाम मानने वाले 72 फिरकों में बँटे हैं। इनमें से एक बोहरा समुदाय भी है। दाऊदी बोहरा समुदाय शिया मुस्लिम के सदस्य हैं। ये लोग फातिमी इस्लामी तैय्यबी विचारधारा को मानते हैं। बोहरा मुस्लिम की शुरुआत मिस्र में हुई और फिर यमन होते हुए 11वीं सदी में इस समुदाय के कुछ लोग भारत आकर बस गए। गुजरात और महाराष्ट्र में ज्यादा है। बाद में बोहरा मुस्लिमों ने अपने संप्रदाय की गद्दी को यमन से गुजरात के पाटन जिले में मौजूद सिद्धपुर में स्थानांतरित कर दिया।

इस संप्रदाय का एक धर्मगुरु होता है। पिछले करीब 400 सालों से भारत से ही इसका धर्मगुरु चुना जा रहा है। वर्तमान में इस समुदाय के 53वें धर्मगुरु डॉ. सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन हैं। दाऊदी बोहरा समुदाय मुख्य रूप से इमामों के प्रति अपना अकीदा रखता है। दाऊदी बोहरा समुदाय के 21वें और अंतिम इमाम तैयब अबुल कासिम थे। इनके बाद 1132 से आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा शुरू हो गई, जो दाई अल मुतलक सैयदना कहलाते हैं।

हेलियोपोलिस वॉर मेमोरियल

पीएम नरेंद्र मोदी हेलियोपोलिस वॉर मेमोरियल जाकर वीरगति प्राप्त किए लगभग 4000 भारती जवानों को श्रद्धांजलि दी। हेलियोपोलिस कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव सीमेटरी (पोर्ट ट्वेफिक) उन भारतीय जवानों की याद में बनाया गया है, जिन्होंने पहले विश्व युद्ध के दौरान मिस्र और फिलिस्तीन में मित्र देशों की सेनाओं की तरफ से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

बताते चलें कि 1914 से 1919 से चले प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने 11 लाख भारतीय जवानों को लड़ने के लिए भेजा था। इनमें से 74,000 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इन भारतीय जवानों को फ्रांस, ग्रीस, उत्तरी अफ्रिका, मिस्र, फिलिस्तीन और ईराक में दफना दिया गया था। इसके अलावा 70,000 भारतीय जवान अपाहिज होकर वापस लौटे थे।

इस युद्ध में भारतीय जवानों को 9,200 से अधिक वीरता पुरस्कार मिले थे, जिनमें ब्रिटिश सेना का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस भी शामिल थे। इस युद्ध ने उत्कृष्ट पराक्रम दिखाने के लिए 11 भारतीयों को विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था। इन जवानों को ब्रिटिश सेना की तरफ से महज 15 रुपए महीना वेतन मिलता था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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