Thursday, November 14, 2024
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वो सीक्रेट बैठक, जिससे उड़ी इमरान खान की नींद: तुर्की की गोद में बैठा कंगाल Pak अब चीन के लिए होगा खिलौना

इजरायल और सऊदी अरब के रिश्तो में अगर नजदीकियाँ बढ़ती हैं तो बेहद नाजुक आर्थिक बदहाली के दौर से गुजरता हुआ पाकिस्तान, सऊदी अरब से मिलने वाली सहायता और आमदनी से हाथ धो बैठेगा। इसके बाद चीन के लिए वो एक...

सऊदी अरब के शाहजादे मोहम्मद बिन सुल्तान और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच इस हफ्ते खुफिया मुलाकात की खबरों से कई इस्लामी देशों में हड़कंप है। मक्का-मदीना की स्थिति और अपनी माली हैसियत के कारण सऊदी अरब इस्लामी देशों का स्वाभाविक सिरमौर माना जाता है। लेकिन, पाकिस्तान समेत ज़्यादातर मुस्लिम देश इजरायल को अपना दुश्मन नंबर एक मानते हैं।

इनकी मौजूदा घोषित नीति इजरायल के साथ कोई संबंध नहीं रखने की है। खबर है कि इस रविवार (नवंबर 22, 2020) की देर शाम प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और शाहजादे मोहम्मद बिल सुल्तान करीब 3 घंटे तक सऊदी अरब के नियोम शहर में खुफिया तौर पर मिले। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो भी इस दौरान वहाँ मौजूद थे। संकेत हैं कि इस ख़ुफ़िया मुलाकात में दोनों देशों के बीच राजनयिक सम्बन्ध कायम करने के साथ साथ ईरान और तुर्की के बारे में भी बातचीत हुई।

अगर इनके बीच कोई खिचड़ी पकती है तो इससे पाकिस्तान का मौजूदा सिरदर्द निश्चित ही और बढ़ जाएगा। पाकिस्तान की तुर्की के साथ नजदीकियों को लेकर सऊदी अरब पहले से ही उससे बेहद नाराज है। इजरायल और सऊदी अरब के रिश्तो में अगर नजदीकियाँ बढ़ती हैं तो पाकिस्तान पूरी तरह से तुर्की की गोद में जा बैठेगा। ऐसा होता है तो बेहद नाजुक आर्थिक बदहाली के दौर से गुजरता हुआ पाकिस्तान, सऊदी अरब से मिलने वाली सहायता और आमदनी से हाथ धो बैठेगा।

याद रखने की बात है कि पिछले कुछ महीनों में पश्चिम एशिया के कई इस्लामी देश इजराइल के साथ राजनयिक संबंध कायम कर चुके हैं। इनमें सूडान, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन शामिल है। अमीरात और इजरायल के बीच पहली उड़ान सऊदी अरब से ऊपर उड़ कर गई। इससे पहले ऐसी सोच भी मुमकिन नहीं थी। पिछले महीने ही पहला समुद्री व्यापारिक जहाज़ इजरायल से संयुक्त अरब अमीरात पहुँचा। पश्चिम एशिया का यह नया गठजोड़ दरअसल एक तरफ तुर्की के खिलाफ है तो दूसरी तरफ ईरान के भी खिलाफ है।

तुर्की के महत्वाकांक्षी राष्ट्रपति एर्दोआँ इन दिनों खुद को इस्लामी देशों का नेता बनाने की जोड़तोड़ में लगे हैं। पिछले कुछ समय से एक के बाद एक उन्होंने कई कदम उठाए हैं, जो कि तुर्की को इस्लामी कट्टरपंथ की तरफ ले जाने वाले हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करके इस्लामी जनमानस सऊदी अरब की जगह तुर्की की ओर झुकने लगेगा। इसका ताजातरीन उदाहरण फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के खिलाफ एर्दोआँ के बयान हैं। आइए, सऊदी अरब और इजरायल की सीक्रेट बैठक से पाकिस्तान की नींद क्यों उड़ी है, ये समझते हैं।

स्कूल में चार्ली हेब्दो के कार्टून दिखाए जाने के बाद एक कट्टरपंथी मुस्लिम युवक ने फ़्रांस में उस शिक्षक की हत्या कर दी थी। इसके बाद फ़्रांस ने अपने देश में आतंकवाद और इस्लामी कट्टरपंथ के खिलाफ कई कदम उठाए। एर्दोआँ ने इस आतंकवादी घटना की निंदा करने के बजाय मैक्रों के कदमों को ही पागलपन  करार दिया था। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी इसमें पीछे नहीं रहे। उनकी सरकार ने फ्रांस के खिलाफ कई आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कीं।

पाकिस्तान के एक केंद्रीय मंत्री ने तो ट्वीट करके राष्ट्रपति मैक्रों को नाज़ी घोषित कर दिया। पिछले हफ्ते की इस घटना के बाद फ्रांस ने बाकायदा इस पर अपना आधिकारिक विरोध दर्ज कराया है। सऊदी अरब मानता है कि इस्लामी देशों का नेतृत्व करने का नैसर्गिक अधिकार सिर्फ उसके पास है। उधर तुर्की प्राचीन ऑटोमन साम्राज्य की तर्ज़ पर एक बार फिर अपना दबदबा कायम करने की इच्छा रखता है।

इस उद्देश्य से कई टीवी सीरियल तुर्की में बनाए गए। ये वहाँ प्रचलित भी हुए। एर्दोआँ और तुर्की का ये रवैया सऊदी अरब को बेहद नागवार गुजरा है। उधर इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान तुर्की का एक तरह से पिछलग्गू बन गया है। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के पाकिस्तान से नाराज होने की सबसे खास वजह यही है। पाकिस्तान से सऊदी अरब की नाराजगी का आलम ये है कि कुछ समय पहले उसने पाकिस्तान को दिए गए कर्जे के 2 खरब डॉलर वापस देने के लिए कहा।

इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात ने भी ऐसा ही किया। इन दोनों देशों ने पाकिस्तान को कर्जे पर तेल देने की सुविधा भी वापस ले ली। यहाँ तक कि जब पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल बाजवा उन्हें मनाने के लिए सऊदी अरब गए तो कोई छह घंटे इंतज़ार कराने के बाद शाहजादे मोहम्मद बिन सुलतान ने उनसे मुलाकात नहीं की। पिछले ही हफ़्ते संयुक्त अरब अमीरात में पाकिस्तान से आने वालों को कामकाज और पर्यटक वीजा देने पर भी रोक लगा दी है। 

स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि जो पाकिस्तानी संयुक्त अरब अमीरात में पहले से काम कर रहे हैं, उनकी भी तकलीफें काफी बढ़ गई हैं। खाड़ी देशों में काम करने वाले पाकिस्तानी हर साल कोई 9 खरब डॉलर कमाकर अपने देश भेजते हैं। इनमें थोड़ी भी कटौती पाकिस्तान की पहले से ही लड़खड़ा रही अर्थव्यवस्था के लिए ऐसी परेशानी बन जाएगी, जिसका घाटा पूरा करने के लिए उसे और क़र्ज़ लेना पड़ेगा। पाकिस्तान पहले से ही गर्दन तक क़र्ज़ में डूबा हुआ है और उसे इसकी ब्याज चुकाने में भी दिक्कत हो रही है।

सवाल है कि आखिर मोहम्मद बिल सुल्तान पाकिस्तान से इतने नाराज क्यों हुए ? देखा जाए तो करीब 14 महीने पहले तक दोनों देशों के सम्बन्ध बेहद मधुर थे। यहाँ तक कि सितम्बर 2019 में जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान संयुक्त राष्ट्र महासभा की 74 वीं बैठक को सम्बोधित करने के लिए न्यूयॉर्क गए थे तो शाहजादे ने अपना निजी विमान उन्हें यात्रा के लिए बड़े आग्रह के साथ दिया था। उससे पहले फरवरी 2019 में जब शाहजादे पाकिस्तान गए थे तो इमरान खान हवाई अड्डे से खुद उनकी कार चला कर ले गए थे।

अर्थात, संयुक्त राष्ट्र महासभा में इमरान खान का भाषण होने तक स्थितियाँ बहुत अच्छी थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान इमरान खान ने खुद को ऐसे पेश किया मानो वे इस्लामी दुनिया का नेतृत्व स्वयं करना चाहते हैं। इस्लामोफोबिया पर भी उन्होने बड़े बोल बोले थे। अपनी इसी यात्रा के दौरान इमरान खान ने तुर्की और मलेशिया के साथ मिलकर एक अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक टीवी चैनल शुरू करने की घोषणा कर दी थी।

उनके भाषण और टीवी चैनल की घोषणा से मोहम्मद बिन सुल्तान बहुत नाराज हो गए। यहाँ तक कि न्यूयॉर्क से अपने निजी जहाज को उन्होंने बीच हवा से ही वापस बुला लिया था। इमरान खान उस समय उसमें बैठ कर पाकिस्तान रवाना हो चुके थे। बाद में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को एक कमर्शियल फ्लाइट से वापस लौटना पड़ा था। इसके जरिए सऊदी अरब ने पाकिस्तान को एक संकेत देने की कोशिश की थी।

लेकिन, इमरान खान ने संभवत इसे अपना व्यक्तिगत अपमान मान लिया। वे अंग्रेजी की उस कहावत को भूल गए, जिसमें कहा गया है  कि ‘माँगने वाले ऊँचे ख्वाब नहीं संजोया करते अथवा भिखारियों की महत्वाकांक्षाएँ नहीं हुआ करतीं।’ फिर तो एक के बाद एक इमरान ने कई कदम ऐसे उठाए, जो उन्होंने उन्हें तुर्की के और करीब ले जाते गए। उन्होंने पाकिस्तान में तुर्की में ऑटोमन साम्राज्य को महिमामंडित करने वाले सीरियल्स को दिखाना शुरू किया।

व्यक्तिगत तौर पर उन्होंने इसका खूब उल्लेख किया। उन्होंने तुर्की और मलेशिया के साथ मिलकर ओआईसी के खिलाफ एक संगठन बनाने की असफल कोशिश भी की। हद तो तब हुई, जब इसी अगस्त में पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह अहमद कुरैशी ने सरेआम कश्मीर के मामले को लेकर सऊदी की सार्वजनिक निंदा कर दी। इसे सऊदी अरब ने पाकिस्तान की बड़ी हिकामत माना। कुल मिला कर इन सब से सऊदी अरब की नाराजगी तुर्की और पाकिस्तान से लगातार बढ़ती ही चली गई।

यों भी पश्चिम एशिया में सऊदी अरब की तुर्की से प्रतिद्वंद्विता जग जाहिर है। इसी तरह ईरान के साथ भी सऊदी अरब के संबंध बेहद तल्ख हैं। ईरान एक शिया देश है तो सऊदी अरब सुन्नी देश। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सऊदी अरब, इजरायल और अमेरिका तीनों ही एक बड़ा खतरा मानते हैं। इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने से पहले उनका देश तुर्की, सऊदी अरब और ईरान तीनों के बीच एक संतुलन बनाकर चलने की कोशिश करता था।

यह उसकी विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ था। इमरान खान ने अपनी मूर्खताजनित महत्वाकांक्षा और अहंकार में बरसों से बनाए इस नाज़ुक संतुलन को तोड़ दिया। इसी बीच भारत ने खाड़ी के देशों और इजरायल के साथ अपने संबंधों को और बेहतर बनाया। साथ ही इन देशों को ये भी बताया कि पाकिस्तान संचालित आतंकवाद खुद इन इस्लामी देशों के लिए भी कैसे गंभीर खतरा बन सकता है। अब आलम यह है कि पाकिस्तान की स्थिति साँप-छछूंदर जैसी हो गई है।

इमरान खान की हरकतों ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा है। अपने भारत विरोध में वे पश्चिम एशिया के उन देशों से भी दूर होते जा रहे हैं, जो इस्लामी देश होने के नाते परंपरागत तौर पर पाकिस्तान के बेहद करीब थे। इजरायल और सऊदी अरब के साथ आने के संकेत बिल्कुल स्पष्ट और साफ हैं। इजराइल और सऊदी अरब एक साथ अमेरिका से मिलकर तुर्की की नई पैदा हुई महत्वाकांक्षाओं को उसकी जगह दिखाना चाहते हैं, जिसका असर पाकिस्तान पर भी पड़ना तय है।

साथ ही वे ईरान के भी पंख कुतरना चाहते हैं। मगर इससे ऐसा लगता है कि पाकिस्तान पर जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा हो। पहले से ही राजनीतिक और आर्थिक रूप से बदहाल पाकिस्तान इन नई परिस्थितियों के लिए तैयार नहीं है। अब उसके पास पूरी तरह से चीन का एक क्लाइंट स्टेट बन जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। आने वाले समय में पाकिस्तान के लिए स्थिति बद से बदतर हो सकती है। ठीक ही कहते हैं कि ‘ना खुदा ही मिला न विसाले सनम, ना इधर के रहे ना उधर के रहे।’

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