संयुक्त राष्ट्र में देश के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने दावा किया कि संयुक्त राष्ट्र की आगामी 74वीं महासभा में हिंदुस्तान का अन्य देशों से ‘अभूतपूर्व’ तालमेल देखने को मिलेगा। साथ ही उन्होंने पाकिस्तान के कश्मीर मुद्दे के बहाने रंग में भंग करने के बारे में कहा कि पाकिस्तान इस मुद्दे पर जितना नीचे स्वयं को गिराता जाएगा, हिंदुस्तान अपने संवाद और कार्रवाई का स्तर उतना उठाएगा।
गौरतलब है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधन वाले दिन ही, यानी 27 सितंबर को, कश्मीर मुद्दा महासभा में उठाने की कसम खाई है। अकबरुद्दीन न्यू यॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र में हिंदुस्तान के स्थायी मिशन के मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
Syed Akbaruddin: There may be some who stoop low.Our response to them is we soar high.They may stoop low, we soar high. What they want to do is their call. We’ve seen them mainstream terrorism in the past. And what you’re now telling me is they may want to mainstream hate speech. https://t.co/md4XACVznb
— ANI (@ANI) September 19, 2019
द्विपक्षीय, बहुपक्षीय वार्ताओं में व्यस्त रहेंगे मोदी
सैयद अकबरुद्दीन ने केवल दार्शनिक जुमलेबाज़ी नहीं की। उन्होंने पाकिस्तान के मुकाबले हिंदुस्तान के अपना स्तर ऊँचा उठाने के मायने भी गिनाए। जिस समय पाकिस्तान हर मंच पर विफल हो रहे अपने कश्मीर प्रोपेगेंडा को एक और बार फैलाने की कोशिश में लगा होगा, उस समय हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना समय शिखर वार्ताओं में लगा रहे होंगे।
अपने एक हफ्ते के कार्यक्रम में मोदी के ट्रम्प के अलावा 20 अन्य नेताओं के साथ द्विपक्षीय वार्ताएँ करने की सूचना है। इसके अतिरिक्त बहुपक्षीय बैठकों, गाँधी जयंती कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र को हिन्दुस्तान द्वारा दिए गए सौर ऊर्जा पैनलों का उद्घाटन आदि तमाम कार्यक्रमों में भी पीएम मोदी को शिरकत करना है। इसके अलावा अगर विदेश मंत्री एस जयशंकर और विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन के कार्यक्रम को भी इसमें जोड़ लें तो हिंदुस्तान 75 देशों के राष्ट्राध्यक्षों और विदेश मंत्रियों के साथ वार्ता करेगा।
‘ज़हरीले शब्द ज़्यादा समय नहीं चलते’
सैयद अकबरुद्दीन ने मोदी की प्राथमिकताओं को गिनाने के बाद पाकिस्तान के बार में कहा, “वे क्या करना चाहते हैं, यह उनकी इच्छा है। हमने उन्हें आतंक को मुख्यधारा बनाते देखा है। और आप जो मुझे बता रहे हैं, उससे लगता है कि अब वे नफ़रत की भाषा (hate speech) को मुख्यधारा में इस्तेमाल करना चाहते हैं। यह उनकी इच्छा है, अगर वे यही करना चाहते हैं। ज़हरीले शब्द अधिक समय तक नहीं चलते।”