तमाम कयासों-अटकलों और हाँ-ना के बाद आखिरकार आज अभिनेत्री जयाप्रदा भाजपा में शामिल हो ही गईं। काफी समय से यह कयास लगाए जा रहे थे कि वे ऐसा कर सकतीं हैं। संकेत तभी ही मिल गए थे जब जयाप्रदा के राजनीतिक गुरु और सपा के पूर्व क्षत्रिय क्षत्रप अमर सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी के ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान के तहत अपने ट्विटर हैण्डल पर ‘चौकीदार’ अपने नाम में जोड़ा था। दरअसल अपने पूरे राजनीतिक कैरियर में जयाप्रदा अपने गुरु अमर सिंह की ही लकीर पर चलती आईं हैं- जब अमर सिंह को सपा की आतंरिक कलह ने किनारे कर दिया था तो जयाप्रदा को भी पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया।
एनटीआर लाए राजनीति में
आज जयाप्रदा की राजनीतिक निष्ठा यद्यपि अमर सिंह के साथ मानी जाती है पर एक समय एनटी रामा राव उन्हें तेदेपा (तेलुगु देशम पार्टी) में काफी आग्रह के बाद लाए थे। तेदेपा ने ही जयाप्रदा को 1996 में राज्यसभा भी भेजा। पर फिर जयाप्रदा और तेदेपा सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू के राजनीतिक मत नहीं मिले और जयाप्रदा ने तेदेपा से इस्तीफा दे दिया।
सपा में पारी
समाजवादी पार्टी में शामिल होने के बाद जयाप्रदा ने रामपुर लोकसभा सीट 85000 मतों से जीती। पर यहाँ उनके राजनीतिक गुरु बने अमर सिंह की रामपुर के ‘किंग’ आजम खां से नहीं बनती थी, इसलिए जयाप्रदा के भी रिश्ते आजम खां से कभी सहज नहीं रहे।
2010 में जब अमर सिंह को पार्टी के महासचिव रहते हुए भी अन्दर के ‘सपोर्ट’ की आवश्यकता पड़ी तो जयाप्रदा उनके पक्ष में खुल कर उतर आईं- और पार्टी-विरोधी गतिविधियों के आरोप में उन्हें भी सपा सुप्रीमो ने निष्कासित कर दिया।
2014 में उन्होंने रालोद का झंडा थामा और बिजनौर का लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा के कुँवर भारतेन्द्र सिंह से पार न पा सकीं।
आजम खां से अदावत
आजम खां और जयाप्रदा की तू-तू-मैं-मैं सपा के भीतर की ‘अर्बन लेजेंड’ है। 2004 में 85000 मतों से बाजी मारने वालीं जयाप्रदा की जीत का अंतर 2009 में गिरकर 30000 बचा। इसके पीछे भी आजम खां का ‘हाथ’ हटा लेना कारण माना गया।
आमतौर पर जयाप्रदा आजम खां को ‘भैया’ कहतीं हैं, पर विवादित फिल्म पद्मावत जब रिलीज हुई तो उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि फिल्म के खलनायक अलाउद्दीन खिलजी को देखकर उन्हें आजम खां याद आ गए। आजम खां भी जयाप्रदा को ‘नचनिया’ और ‘घुंघरू वाली’ कह चुके हैं।