प्रयागराज में विश्व के सबसे बड़े धार्मिक मेले कुम्भ की सबसे बड़ी विशिष्टता इसमें शामिल होने वाले अखाड़े हैं। जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, उदासीन अखाड़ा और अब किन्नर अखाड़ा समेत कुल चौदह अखाड़े है। अखाड़ो की परंपरा अपनी विशिष्टता, भव्यता और रोचकता के कारण हमेशा से जनमानस में कौतूहल, जिज्ञासा का विषय रहे हैं।
इन अखाड़ों का मूल रूप ‘अखंड’ है इसी कारण आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा और धार्मिक परंपरा को अक्षुण्ण बनाने के लिए साधुओं के संघ को मिलाने का प्रयास किया था और अंततः अखाड़ों की स्थापना हुई। इन अखाड़ों की सबसे खास बात यह है कि ये शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत होते हैं। अखाड़ों का निर्माण सनातन धर्म की रक्षा और धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए किया गया।
जटा मुकुट की परम्परा
इसी सिलसिले में विमल श्रीवास्तव ने भिन्न-भिन्न अखाड़ों के कुछ महंतो से बात की। श्री महंत केशव नाथ जी (महंत, जूना अखाड़ा) ने कुम्भ में आने वाले महंतों और साधुओं की जटाओं पर बात करते हुए कहा, “अखाड़ों की परंपरा में सबसे अहम है जटा मुकुट की परम्परा। बड़ी मुश्किल से तैयार होती हैं ये जटाएँ और इनकी देख-रेख भी बहुत सम्हाल कर की जाती है। अखाड़ों के साधु इसे अपना आभूषण मानते हैं और उनका कहना है जटायुक्त साधु ‘दर्शनी साधु’ होते है। दर्शनी जटाएँ रस्सी की तरह बँटी हुई होती हैं। यानी जटा का मुकुट होता है।”
जटाओं की महत्ता पर महंत सहदेवानंद जी (महंत, जूना अखाड़ा) ने बताया, “एक साधु की पहचान उसकी जटाओं से होती है और उसे बड़ा करने में इन्हें कई साल लग जाते हैं। तब जा कर इनकी जटाएँ इनके कद से भी कहीं बड़ी हो जाती हैं। इन जटाओं को बड़ा करने के लिए ये साधु इन्हें कंडा की विभूति देते है। अखाड़ों की जटा परंपरा अनादि काल से चली आ रही है।”
इसी विषय पर नागा साधु दिगम्बर कृष्णा पूरी जी ने भी अपनी बात कही, “वैसे तो कुम्भ मेले में अखाड़ों की कई प्राचीन परंपराएँ देखने को मिल रही हैं, जैसे नागा बनने की परंपरा, अखाड़ों की शस्त्र परंपरा आदि लेकिन इन सब में जटा परंपरा अपने आप में अनोखी परम्परा मानी जाती है।”
कुम्भ 2019 से जुड़ी कुछ तस्वीरें आप यहाँ देख सकते हैं।