केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की नजर अब नक्सलियों के खात्मे पर है। नक्सल समस्या को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले महीने मीटिंग की। इस बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश से नक्सलवाद को खत्म करने के लिए नए सिरे से कदम बढ़ाने को कहा है। देश में माओवाद विरोधी अभियानों की गति पर असंतोष व्यक्त करते हुए, शाह ने पिछले महीने आयोजित एक समीक्षा बैठक में ‘क्या, क्यों और कहाँ समस्या है, यह पता लगाने के लिए एक सख्त ऑडिट’ के लिए कहा।
इस बात की जानकारी न्यूज 18 को एक अधिकारी ने दी है। रिपोर्ट के मुताबिक मीटिंग में अधिकारियों से उन बलों की जानकारी भी माँगी गई है, जो नक्सलवादियों के ठिकानों को खत्म नहीं कर पा रहे हैं। सीआरपीएफ (CRPF) के अधिकारी ने न्यूज 18 को बताया है कि बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र में अगली गर्मियों तक माओवादियों के मजबूत ठिकानों को खत्म करने का लक्ष्य दिया गया है।
शाह की समीक्षा बैठक के तुरंत बाद, सीपीआई माओवादी, दक्षिण उप जोनल ब्यूरो, बस्तर ने 2 नवंबर को एक बयान जारी किया और दावा किया कि प्रहार -3 नामक एक ऑपरेशन की योजना छत्तीसगढ़ में भी नवंबर 2020 से जून 2021 के बीच बनाई जा रही है।
बयान में कहा गया, “जनता आंदोलन दबाने के लिए बड़े पैमाने पर पुलिस बलों को तैनात करके युद्ध अभियान चलाने का फैसला किया है। ये अभियान नए तरीके का सल्वा जुडूम जैसा है।” इसमें आगे कहा गया है, “मोदी और भूपेश बघेल सरकार ने एक सैन्य अभियान के तहत हजारों केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को भेजा है। हेलीकॉप्टर, हथियार और गोला-बारूद हासिल करने के लिए करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं।”
केंद्रीय गृह मंत्रालय के वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार के विजय कुमार ने ऑपरेशन का नाम या समय की पुष्टि करने से इनकार कर दिया, लेकिन उन्होंने न्यूज 18 को बताया कि गृह मंत्री ने राज्यों और केंद्रीय बलों से कहा है कि वे नक्सल विरोधी रणनीति में कमजोर पहलू को खत्म करने के लिए तत्काल प्रभाव से बेहतर समन्वय के साथ काम करें। उन्होंने कहा, “गृह मंत्री ने राज्यों की मदद करने के लिए एक समीक्षा की। कौन प्रदर्शन नहीं कर रहा है, कौन सा राज्य पर्याप्त नहीं कर रहा है, राज्यों को आगे कैसे मदद की जा सकती है, इस पर चर्चा की गई।”
क्या है नक्सलवाद
नक्सलवाद देश की एक बड़ी समस्या है। सत्ता के खिलाफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल के सशस्त्र आंदोलन का नाम है नक्सलवाद। ये आंदोलन 1967 में पश्चिम बंगाल के गाँव नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ था। मजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बड़े प्रशंसकों में से एक थे और वो मानते थे कि भारतीय मजदूरों और किसानों की दुर्दशा के लिए सरकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं।
नक्सवाद के पीछे का मर्म
आमतौर पर नक्सल प्रभावित जिले को केंद्र और राज्य सरकार द्वारा इतना पैसा मुहैया करवाया जाता है कि अगर उस पूरे पैसे को ठीक तरह से खर्च किया जाए तो जिले और राज्य की तस्वीर बदल सकती है। मगर ऐसा हो नहीं पाता है। आपको जानकर हैरानी होगी की नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की अधिकांश आबादी बिना बिजली और शौचालय के रहती है। अगर कोई बीमार होता है तो उसके लिए पास में कोई ढंग का अस्पताल भी मयस्सर नहीं हैं। अगर अस्पताल होता है भी तो उसके लिए मरीजों को मीलों दूर चलकर जाना पड़ता है। इन क्षेत्रों के लिए आवंटित होने वाला पैसा कहाँ चला जाता है पता नहीं चलता है।