2 मीनारों वाली मस्जिदें लोकल, 1 मीनार वाली अरबी पैसे से… लगभग हर गाँव में मदरसे: नेपाल बॉर्डर के मौलाना ने बताया इसमें कमीशन का खेल – OpIndia Ground Report

भारत नेपाल सीमा के निवासी मौलाना बरकतुल्लाह के मुताबिक सीमा पर बढ़ी हैं मस्जिद व मदरसे

हाल में कई रिपोर्टें आई हैं जो बताती हैं कि नेपाल-भारत सीमा पर तेजी से डेमोग्राफी में बदलाव हो रहा है। मस्जिद-मदरसों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए 20 से 27 अगस्त 2022 तक ऑपइंडिया की टीम ने सीमा से सटे इलाकों का दौरा किया। हमने जो कुछ देखा, वह सिलसिलेवार तरीके से आपको बता रहे हैं। इस कड़ी की नौवीं रिपोर्ट:

नेपाल के दांग जिले से भारत के बलरामपुर शहर वापस आते समय हमें जारवा थाने से कुछ ही आगे बालापुर इलाके में एक व्यक्ति मौलाना जैसी शक्ल की दिखाई दिए। वो किसी वाहन का इंतज़ार कर रहे थे। हमने उन्हें अपनी कार में लिफ्ट दी और थोड़ी ही देर बाद उनसे हमारी बॉर्डर से जुड़े स्थानीय मुद्दों पर बात होने लगी। इस दौरान मौलाना ने अपना नाम बरकतउल्लाह खान और अपना गाँव बलरामपुर जिले के तुलसीपुर इलाके में आने वाला बसंतपुर बताया। उनकी उम्र 60 वर्ष से अधिक थी।

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‘मेरे बचपन में नहीं थे इतने मदरसे’

जब हमने बरकतुल्लाह से उनकी बचपन में हुई पढ़ाई के बारे में पूछा तो उन्होंने खुद को बलरामपुर शहर के सरकारी स्कूल में पढ़ा बताया। ये जगह उनके घर से लगभग 30 किलोमीटर दूर थी तो हमने उनसे नजदीकी मदरसे में पढ़ाई न करने की वजह पूछी।

हमारे सवाल के जवाब में मौलाना बरकतउल्लाह खान ने बताया कि उनके बचपन में इतने मदरसे नहीं थे जितने अब हो गए हैं और तब गिनी चुनी जगहों पर भी मदरसे हुआ करते थे। बरकतुल्लाह ने खुद को अहले सुन्नत विचारधारा वाला बताया।

2 मीनारों वाली मस्जिद लोकल, 1 मीनार वाली अरबी पैसे से

बरकतउल्लाह ने हमें बताया कि नेपाल सीमा पर भारत की तरफ से बनी तमाम मस्जिदों के लिए सऊदी अरब द्वारा पैसे भेजे गए हैं। उन्होंने मस्जिदों के प्रकार बताते हुए कहा कि जिस मस्जिद में 2 मीनार बनी है, वो भारत के मुस्लिमों के पैसों से बनी है जबकि जिसमें 1 मीनार है, उसके लिए पैसा सऊदी अरब से आया है।

मौलाना बरकतउल्लाह खान ने सीमा क्षेत्र में बनी मस्जिदों को अहले सुन्नत और अन्य फिरकों से जुड़ा बताया। रास्ते में पड़े गिरधरडीह गाँव में 2 मस्जिदें दिखने के बाद बरकतुल्लाह ने कहा कि वहाँ के लोग गरीब हैं लेकिन जो लोग बाहर कमाने गए हैं, उनके ही भेजे पैसे से ये मस्जिदें बनी हैं।

चंदे से चल रहे मदरसे

इलाके के बेहतरीन मदरसे के बारे में सवाल किए जाने पर बरकतुल्लाह ने शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर से थोड़ी ही दूर पर मौजूद एक मदरसे का नाम लिया, जो तुलसीपुर बाजार के इटवा चौराहे पर स्थित है। उन्होंने बताया कि उस मदरसे को सरकारी इमदाद (अनुदान) मिलता है।

इसी के साथ उन्होंने इसके अलावा भी कई अन्य संचलित मदरसों का नाम लिया, जिन्हे चंदे पर चलाया जा रहा है। रास्ते में पड़े एक लौकी गाँव की तरफ इशारा करते हुए बरकतुल्लाह ने कहा कि लगभग हर गाँव में बच्चों को पढ़ाने के लिए मदरसा चल रहा है, भले ही वो आपसी चंदे से क्यों न संचालित हो।

सड़क के पास जमीनें 15 लाख रुपए/बीघे

मौलाना बरकतुल्लाह से हमने जब सड़क के किनारे बनी मस्जिद और मदरसों के लिए जमीन की खरीद के रेट की जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि सड़क के किनारे जमीन का रेट लगभग 15 लाख रुपए बीघा है। वहीं उनके मुताबिक सड़क से दूर गाँवों में जमीन लगभग 3 लाख रुपए बीघा के रेट से बिकती है।

जब हमने मौलाना बरकतुल्लाह से सवाल किया कि क्या सिर्फ खाड़ी देशों में कमाने वाले ही नेपाल सीमा पर बन रही इबादतगाहों के लिए पैसे भेजते हैं तो उन्होंने बताया कि मुंबई और अन्य शहरों में भी कमा रहे लोग इसमें मदद करते हैं। शेखों की शान में कसीदे गढ़ते हुए बरकतुल्लाह ने बताया कि वो रमज़ान के महीने में बोरे में नोट भर कर उड़ाते हैं और उनसे माँगने वाले यहाँ से भी बहुत लोग जाते हैं।।

इबादतगाहों के निर्माण में कमीशन का खेल

मौलाना बरकतुल्लाह ने बेहद फ़िक्र जताते हुए कहा कि जो भी मस्जिद, मदरसे या मज़ारें बनाई जा रही हैं, उनमें कमीशन का मोटा खेल चल रहा है। उनके मुताबिक सीमेंट, ईंट, सरिया और बालू आदि के फिक्स दुकानदार हैं, जिनसे सामान खरीदने वालों को उसके एवज में कमीशन मिलता है। बरकतुल्लाह के मुताबिक ऐसे सामान बेचने वाले सभी धर्मों के हैं और उनसे सामान खरीदना ही पड़ता है।

मज़ारों पर आने वाले हिन्दू ज्यादा मुस्लिम कम

इस बातचीत दौरान हम बॉर्डर से लगभग 20 किलोमीटर दूर तुलसीपुर बाजार पहुँच गए थे। बाजार की शुरुआत में ही दिखी एक मज़ार को दिखाते हुए मौलाना बरकतउल्लाह ने बताया कि यहाँ पर मुस्लिमों के मुकाबले हिन्दू ज्यादा आते हैं।

मौलाना बरकतुल्लाह के मुताबिक मज़ारें पैसे लूटने का जुगाड़ हैं और जिसे भी पैसे कमाने होते हैं, वो अपनी जमीनों में वो काम करने लगते हैं। बरकतुल्लाह ने ये भी बताया कि कई पढ़े-लिखे लोग भी ईमान ला चुके हैं। (ईमान लाने का मतलब मुस्लिम बन जाने से है)।

कई गाँव मुस्लिम बाहुल्य

हमारे साथ कार में बैठे मौलाना बरकतुल्लाह भी इस बात से सहमत थे कि बॉर्डर के कई गाँव मुस्लिम बाहुल्य हैं। उन्होंने अपनी तरफ से सेमरी, चैनपुर, सिवली, जीवली और बसंतपुर जैसे कुछ गाँवों का नाम भी लिया। बरकतुल्लाह के मुताबिक इन गाँवों में मस्जिद और मदरसे भी हैं, जहाँ रहना और खाना फ्री है और उन मदरसों में उर्दू और अरबी की पढ़ाई होती है। रास्ते में मदरहवा गाँव में सड़क के किनारे दिखे एक मदरसे को बरकतुल्लाह ने प्राइवेट मदरसा बताया।

कागजों में शिया या सुन्नी, अंदर कई फिरके

मौलाना बरकतउल्लाह ने हमसे बताया कि सरकार के कागजों में वो शिया या सुन्नी के रूप में जाने जाते हैं लेकिन अंदर ही अंदर कई फिरके बँटे हुए हैं। उनके मुताबिक इसी में अहले हदीस, वहाबी और कई अन्य फिरके शामिल हैं और उनकी मस्जिदें भी उसी तरह से बाँट दी गई हैं।

मस्जिदों में लाउडस्पीकर बंद करवा मंदिरों में बजवाते हैं नगाड़े

बरकतुल्लाह योगी सरकार से खासे नाराज दिखे। उनके हिसाब से नई सरकार में महंगाई बढ़ी और सड़कों पर बहुत से जानवर दिखाई देते हैं। हमसे बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि योगी की सरकार बनने के बाद उनकी मस्जिदों से अज़ान के समय लाउडस्पीकर उतार लिए गए।

उन्होंने यह भी बताया कि सीएम योगी के गोरखपीठ से तुलसीपुर स्थित देवीपाटन मंदिर में हर दिन सुबह की शुरुआत नगाड़े बजा कर होती है। मौलाना बरकतुल्लाह को मंदिर नगाड़े बजने की शुरुआत से बंद होने का समय भी याद था। बरकतुल्लाह के मुताबिक कुछ मस्जिदों में अभी भी आवाज कम करने की परमिशन पर लाउडस्पीकर लगे हुए हैं।

कोयलाबास (नेपाल) में मुस्लिमों की मनिहार बिरादरी ज्यादा

भारत की सीमा के उस पास नेपाल के पहले गाँव और बाजार कोयलाबास में मुस्लिम ग्राम प्रधान होने की जानकारी बरकतुल्लाह ने भी दी। उन्होंने बताया कि भारत के उस पार नेपाल के कोयलाबास में मुस्लिमों की मनिहार बिरादरी अधिक है।

इसी के साथ उन्होंने कोयलाबास के मुस्लिमों को कारोबार में सफल बताया। बरकतुल्लाह ने बताया कि ये कारोबारी भले ही सीमा पर न दिखते हों पर नेपाल में और अंदर जाने पर दिखेंगे। इसी के साथ उन्होंने कहा कि जल्द ही कोयलाबास फिर से आबाद होने वाला है।

लगभग आधे घंटे मौलाना बरकतुल्लाह हमारे साथ हमारी कार में बैठे रहे। रास्ते में तुलसीपुर बाजार में ही उनका घर आ गया और वो हमसे खुदा हाफिज बोल कर उतर गए।

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राहुल पाण्डेय: धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।