Sunday, November 3, 2024
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कभी था हिंदू बहुल गाँव, अब स्वस्तिक चिह्न वाले घर पर 786 का निशान: भारत के उस पार भी डेमोग्राफी चेंज, नेपाल में घुसते ही मस्जिद, मदरसा और इस्लाम – OpIndia Ground Report

नेपाल के दांग जिले में प्रवेश करते ही आपको मुस्लिम ग्राम प्रधान मिलते हैं। पता चलता है कि हिंदू चुनाव में खड़े तक नहीं होते। उन हिंदुओं के वीरान घर दिखते हैं जो माओवादी हिंसा के दौर में भागने को मजबूर हुए।

हाल में कई रिपोर्टें आई हैं जो बताती हैं कि नेपाल से लगी भारत की सीमा पर तेजी से डेमोग्राफी में बदलाव हो रहा है। मस्जिद-मदरसों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए 20 से 27 अगस्त 2022 तक ऑपइंडिया की टीम ने भारत से लगे नेपाल के इलाकों का दौरा किया। हमने जो कुछ देखा, वह सिलसिलेवार तरीके से आपको बता रहे हैं। इस कड़ी की पहली रिपोर्ट;

दांग नेपाल का एक जिला है। लुम्बिनी प्रदेश का हिस्सा है। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले की जरवा सीमा से हमने दांग में प्रवेश किया। गाड़ियों को सीमा पार करने की इजाजत नहीं थी। करीब डेढ़ किलोमीटर पैदल चल हम दांग की सीमा में पहुँचे।

यह रिपोर्ट एक सीरीज के तौर पर है। इस पूरी सीरीज को एक साथ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

इस दौरान हमें सशस्त्र सीमा बल (SSB) और नेपाल पुलिस के सुरक्षा जाँच से होकर गुजरना पड़ा। यह बॉर्डर घने जंगलों से होकर जाता है। हमारा पहला पड़ाव दांग जिले का कोईलाबास गाँव था।

नेपाल के पहले ही गाँव का मुस्लिम प्रधान

कोईलाबास के ग्राम प्रधान अब्दुल खालिक हैं। स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि चुनाव में कोई हिंदू प्रत्याशी खड़ा तक नहीं हुआ था। खालिक के अनुसार गाँव में लगभग 1100 वोटर हैं। वे कहते हैं, “पिछली बार सद्दाम चुनाव जीते थे। वे माओवादी पार्टी से हैं। यहाँ हिन्दुओं के बराबर मुस्लिमों की आबादी है।”

नेपाली गाँव कोईलाबास

मदरसों को सरकारी अनुदान

खालिक के मुताबिक नेपाल सरकार उनके गाँव में मौजूद मदरसे को अनुदान देती है। वे कहते हैं, “सामान्य कोर्स के अलावा मज़हबी तालीम भी जरूरी है आखिरियत को बनाने के लिए।” उन्होंने बताया की गाँव के मदरसे में टीचरों की नियुक्ति स्थानीय लोग करते हैं। उनका खर्च सरकार उठाती है।

मदरसों में भारतीय मौलवी

ग्राम प्रधान अब्दुल खालिक ने हमें बताया कि उनके गाँव के इस्लामिया मदरसे में बच्चों को पढ़ाने के लिए भारत के 2 मौलवी हैं। वे कहते हैं, “यहाँ से मजहबी तालीम हासिल कर कई मौलवी भारत में गए हैं। नेपाल में भी मौलवी हैं, लेकिन हमें भारतीय मौलवी सस्ते में मिल जाते हैं। उन्हें भी भारत से बेहतर सैलरी यहाँ मिलती है। दांग जिले के ही गढ़वा और लमही इलाके में तमाम मौलवी हैं। इन जगहों पर मदरसे और मस्जिदें भी हैं। नेपाल के अधिकतर मौलाना और मौलवी कई तरह के व्यापार में भी शामिल हैं।”

भारत से भी मदरसों में आते हैं बच्चे

कोईलाबास के प्रधान अब्दुल खालिक के मुताबिक नेपाली मदरसों में पढ़ने के लिए भारत से भी बच्चे आते हैं। खासकर, बिहार और पश्चिम बंगाल से। इनमें लड़कियाँ भी होती हैं। उनका रहना-खाना फ्री होता है।

कोईलाबास के प्रधान अब्दुल खालिक

खालिक के अनुसार सीमावर्ती इलाकों में ही नहीं, नेपाल के भीतरी हिस्सों में भी कई ग्राम प्रधान, विधायक मुस्लिम समुदाय से हैं। उदहारण के तौर पर उन्होंने लुम्बिनी प्रदेश के वर्तमान शिक्षा मंत्री नसरुद्दीन खान का नाम लिया। मोहम्मद लालबाबू राऊत गद्दी, फौजिया नसीम और मोहम्मद याकूब अंसारी लुम्बिनी प्रदेश के प्रमुख राजनैतिक चेहरे हैं।

योजनाओं का लाभ भी अधिकतर मुस्लिमों को

दांग जिले में सरकारी योजनाओं का लाभ पाने वालों का एक बोर्ड सरकार ने लगवाया है। उस बोर्ड के मुताबिक सरकार द्वारा चलाई गई ‘जलवायु उतथाशील योजना’ में गढ़वा क्षेत्र में कुल 839 लोगों को लाभान्वित किया गया है। इन 839 कुल लोगों में से लाभ पाने वाले मुस्लिमों की संख्या 602 है। इसके अलावा जनजाति वर्ग के 39 व अन्य की संख्या महज 198 है।

योजना के लाभार्थियों का विवरण वाला बोर्ड

100 साल पुरानी जामिया मस्जिद

दांग की सीमा शुरू होने के करीब 1 किलोमीटर बाद हमें एक बड़ी सी मस्जिद सड़क से सटी हुई दिखी। यह मस्जिद दांग के सबसे चर्चित पर्यटन स्थल झुलंगी पुल के ठीक बगल में है। स्थानीय निवासी अब्दुल अहद ने हमें बताया कि यह मस्जिद 100 साल से भी पुरानी है। अहद ने यह भी बताया कि कोईलाबास में कुछ और मस्जिद और मदरसा हाल ही में बने हैं।

कोईलाबास की जामिया मस्जिद

मस्जिद के बाहर अरबी में कुछ शब्द लिखे थे। अब्दुल अहद ने इसे मस्जिद में घुसने से पहले पढ़ी जाने वाली दुआ बताई। अब्दुल अहद के साथ उनके रिश्तेदार तौसीफ भी थे। इसी मस्जिद से कुछ आगे जाने के बाद हमें रात के अँधेरे में एक और इबादतगाह दिखी। वहाँ एक बल्ब जल रही थी। इबादतगाह मुख्य मार्ग से थोड़ी दूर स्थित थी। आसपास मुस्लिम बहुल बस्ती भी थी, जिसमें बकरियाँ और मुर्गियाँ घूमती दिखाई दे रहीं थी।

मज़ारनुमा इबादतगाह

अधिकतर दुकानदार मुस्लिम

कोईलाबास में अधिकतर दुकानें मुस्लिमों की है। झुलंगी पुल के ठीक बगल नियामत अली की चाय और कोल्ड ड्रिंक की दुकान है। अब्दुल अहद कपड़े का काम करते हैं। मुख्य हाइवे पर अब्दुल वकील की चिप्स और पान-मसाले की दुकान दिखी। दुकान चला रहीं अब्दुल वकील की बीवी ने बताया कि कोईलाबास की 2 मस्जिदों में एक अहले हदीस वालों की है। दूसरी सुन्नी मत वालों की।

कुछ आगे चलने पर मोहम्मद कमाल और मोहम्मद सद्दाम मिले। दोनों ने बताया कि वे मोबाइल का काम करते हैं। उनके अनुसार नेपाली टेलिकॉम कम्पनी ‘नमस्ते’ का सिम सबसे अधिक बिकता है।

वीरान पड़े शुभ-लाभ लिखे घर

दांग जिले में हमें कई वीरान और खंडहर हो चुके घर मिले। कभी यहीं रहने वाले बब्बू कसौधन ने बताया, “कभी कोईलाबास हिन्दू बहुल था। 1995 के बाद माओवादी हिंसा के कारण हमारे कारोबार को काफी नुकसान हुआ। जब व्यापार और काम-धंधे खत्म हो गए तो हम लोग भारत आ गए। हिंदू पूरे परिवार के साथ इलाका छोड़ कर भारत में बस गए। वहीं मुस्लिमों घरों के एकाध सदस्य ही परिवार को छोड़ बाहर कमाने गए। इसी वजह से अब वो क्षेत्र मुस्लिम बहुल हो चुका है। राम जानकी मंदिर की गली वाले क्षेत्र में एक लाइन से जितने भी खाली घर हैं, वे सब हिंदुओं के ही हैं।”

खाली पड़े घरों में अरबी के शब्द

हमें एक घर ऐसा भी दिखाई दिया जिस पर स्वस्तिक का चिन्ह बना था। शुभ-लाभ लिखा था। लेकिन उसी घर पर अरबी भाषा में कुछ लाइनें दीवाल को कुरेद कर भी लिख दी गईं थीं। दरवाजे पर लिखे हिन्दू नाम के ऊपर कालिख पोत दी गई थी। इसको लेकर बब्बू बताते हैं, “पिछले 3-4 बार से लगातार कोईलाबास का प्रधान मुस्लिम हो रहा है। अब जब वहाँ हिन्दू बचे ही नहीं तो उनके घरों पर कोई क्या लिख रहा किसे पता हो।”

NRC का डर

बब्बू कसौधन के मुताबिक हिन्दू समाज के कई लोगो को NRC का डर दिखाया गया और उन्हें बताया गया कि नेपाल में जमीन होने की वजह से उन्हें भारत में नहीं रहने दिया जाएगा। बब्बू के मुताबिक नेपाल से जमीनें बेच कर भारत आने वालों की एक बड़ी वजह ये भी रही।

माओवादी हिंसा के निशान

हमें एक पुलिस थाना खंडहर जैसी स्थिति में दिखा। वहाँ से गुजर रहे लोगों ने बताया कि 2002 में माओवादियों ने इस पुलिस पोस्ट पर बम फेंक दिया था। 6 पुलिसकर्मी मारे गए थे। तब से ये पोस्ट वीरान पड़ा है। हालाँकि खंडहर हो चुके पोस्ट पर नेपाल पुलिस के खुकरी का निशान अभी भी बना हुआ है।

माओवादी हमले के बाद वीरान पड़ा पुलिस पोस्ट

फोटो मत खींचो, हमारे इस्लाम में मना है

यात्रा के दौरान सड़क पर 2 युवक बैठे थे। वे हमसे कैमरा बंद करने को कहने लगे। उनमें से एक आसिफ सिद्दीकी ने कहा, “हम इस्लामिक स्टेट से हैं। हमारे यहाँ फोटो और वीडियो हराम है। आज तक मैंने एक भी फोटो या वीडियो नहीं खिंचवाई है। मैंने क्लास 8 तक मदरसे में पढ़ाई की है। नेपाल में सरकारी नौकरी मिलनी नहीं है, इसलिए मैं विदेश जाने की तैयारी में हूँ।”

कवरेज से हमें रोकने की कोशिश केवल कुछ स्थानीय मुस्लिमों ने ही नहीं की। नेपाल की पुलिस ने भी वीडियो और फोटोग्राफी से मना किया। ‘गौतम सर’ कहकर संबोधित किए जा रहे एक पुलिस अधिकारी ने हमसे किसी भी प्रकार की कवरेज न करने को कहा।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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