भारतीय सेना (Indian Army) ने हाल ही में एक ऑपरेशन को अंजाम दिया है। 25 से 29 जुलाई तक चले इस ऑपरेशन का नाम ‘स्काईलाइट (Skylight)’ रखा गया था। इस दौरान अंडमान और लक्षद्वीप से लेकर लद्दाख तक भारतीय सेना के सारे सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम्स एक्टिव थे। इसका मकसद सिस्टम की मजबूती परखना और विभिन्न परिस्थितियों में यह कितना कारगर है, यह परखना था।
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— ADG PI – INDIAN ARMY (@adgpi) August 5, 2022
Pan #IndianArmy Satellite Communication Exercise #ExSKYLIGHT was recently conducted. 100% satellite communication assets were activated to ensure operational readiness of hi-tech satellite systems and exercise various contingencies. #InStrideWithTheFuture pic.twitter.com/B7LEPLbQZC
जानकारी के मुताबिक इस ऑपरेशन के दौरान 280 सैटेलाइट प्लेटफॉर्म पर सेना ने अपने सभी उपग्रह संचार सैन्य संसाधनों को 100 प्रतिशत सक्रिय कर रखा था। इनमें स्टैटिक टर्मिनल, परिवहन योग्य वाहन माउंटेड टर्मिनल, मैन-पोर्टेबल और छोटे फार्म फैक्टर मैन-पैक संचार टर्मिनल शामिल हैं। सेना के साथ इसमें इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) और अंतरिक्ष तथा जमीनी क्षेत्रों में संचार प्रणालियों से जुड़ी कई एजेंसियों ने भी हिस्सा लिया।
इन टर्मिनल से सेना को सिक्योर वॉयस, वीडियो और डाटा कनेक्टिवेटी मिल सकती है। इन्हें एक जगह से दूसरी जगह आसानी से मूव किया जा सकता है और किसी भी तरह के इलाकों में इस्तेमाल किया जा सकता है।
भारत के लिए चीन से लगी उत्तरी सीमा हमेशा संवदेनशील रही है। जानकारी के मुताबिक इसके मद्देनजर उत्तरी सीमा के सैटेलाइट आधारित सैन्य संसाधनों की तैयारियों को विशेष रूप से परखा गया। इसके अलावा भारतीय सेना रूस-यूक्रेन युद्ध में सैटेलाइट से लेकर हाइटेक हथियारों के इस्तेमाल का भी अध्ययन कर रही है। रक्षा सूत्रों के अनुसार, उपग्रह संचार अभ्यास का मकसद भारतीय सेना की सैटेलाइट आधारित संचालन तैयारियों को परखना था। सेना ने सैटेलाइट संचार प्रणालियों को गतिशील कर अंतरिक्ष में सैन्य खतरों के कई आयामों को रखते हुए उनका मुकाबला करने की तकनीकी और ऑपरेशनल क्षमताओं का सफल परीक्षण किया।
बता दें कि वायुसेना और नौसेना की तरह टहल सेना के पास इस समय अपना सैटेलाइट नहीं है। फिलहाल वह नौसेना की जीसैट-7ए सैटेलाइट का ही इस्तेमाल करती है। दिसंबर 2025 तक सेना का मल्टीबैंड सेटेलाइट जीसैट-7बी लॉन्च हो जाएगा। इसी साल मार्च के महीने में रक्षा मंत्रालय ने थलसेना के लिए अलग से एक कम्युनिकेशन सैटेलाइट को मँजूरी दी थी। इस सैटेलाइट से न केवल अग्रिम मोर्चे पर तैनात सैनिकों के लिए सामरिक संचार की जरूरतें पूरी होंगी, बल्कि दूर से संचालित विमान, हथियारों और अन्य महत्वपूर्ण मिशनों में भी इसका फायदा मिलेगा।