पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को संत एगिडियो (Sant’Egidio) समुदाय के अध्यक्ष प्रोफेसर मार्को इम्पाग्लियाजो (Marco Impagliazzo) ने रोम में आयोजित होने वाले एक कार्यक्रम में कथिततौर पर आमंत्रित किया है। विश्व शांति व बंधुत्व पर होने वाला यह कार्यक्रम ‘Peoples as Brothers, Future for Earth’ रोम में 6-7 अक्टूबर को आयोजित होगा। इसमें पोप फ्रांसिस, जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल और मिस्र में अल अजहर के बड़े इमाम अहमद तैयब भी बुलाए गए हैं।
इस निमंत्रण के लिए पत्र 22 जुलाई को भेजा गया है। इसमें कथिततौर पर ममता बनर्जी को चुनावों में उनकी जीत, उनके सामाजिक कार्य, देश के विकास और शांति में उनके प्रयासों के लिए सराहा गया है। पत्र में यह भी लिखा गया कि ममता ये सब 10 सालों से करती आ रही हैं। इसके बाद ‘सबसे कमजोर और वंचित’ वर्ग के लिए लड़ाई में उनकी प्रतिबद्धता को लेकर ममता बनर्जी की वाह-वाही की गई है।
अब पूरे पत्र को लेकर थोड़ी अजीब बात ये है कि ये खबर सिर्फ भारतीय मीडिया कवर कर रहा है। अगर वाकई पोप फ्रांसिस और एंजेला मर्केल को निमंत्रण भेजा गया है तो इतनी उम्मीद तो कर सकते हैं न कि ये खबर पश्चिमी मीडिया में भी छाई होगी। इस मुद्दे पर सोच विचार करना अधिक आवश्यक इसलिए भी हो जाता है, क्योंकि ममता बनर्जी के वैश्विक अवार्डों को लेकर जनता के पुराने अनुभव ठीक नहीं हैं।
भारतीय मीडिया कह रहा है कि ममता बनर्जी आयोजन में शामिल नहीं होंगी, क्योंकि ये तारीखें बंगालियों के लिए बेहद खास माने जाने वाले पर्व महालय के उनके कार्यक्रम के साथ क्लैश होंगी। मुख्यमंत्री यह पर्व अपने लोगों के साथ मनाना चाहती हैं। खैर! अब थोड़ा उस संगठन के बारे में जानते हैं जिसने ममता बनर्जी को विश्व शांति कार्यक्रम में आमंत्रित किया है।
संत एगिडियो समुदाय: विश्व शांति कार्यक्रम में ममता बनर्जी को निमंत्रण देने वाला यह संगठन आखिर कौन है?
वेबसाइट के अनुसार, “Sant’Egidio एक ईसाई समुदाय है, जिसकी शुरुआत 1968 में दूसरे वेटिकन काउंसिल के ठीक बाद हुई थी। एंड्रिया रिकार्डी की पहल पर इसे रोम के केंद्र के एक माध्यमिक विद्यालय में बनाया गया था। आज कई दशक बाद इसका नेटवर्क दुनिया के 70 से अधिक देशों में है।”
इटली के पूर्व मंत्री एंड्रिया रिकार्डी एक इतिहासकार के साथ-साथ राजनेता, ऐक्टिविस्ट और प्रोफेसर भी हैं। वह 18 महीने तक सत्ता में रही मारियो मोंटी सरकार में एकीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मंत्री के रूप में कार्य किया था। यह समुदाय कथिततौर पर शरणार्थियों और प्रवासियों के कल्याण हेतु काम कर रहा है। इसके अलावा, यह बेघर और HIV/AIDS मरीजों के लिए भी काम करता है।
दिलचस्प बात ये है कि इस समुदाय से जुड़े विवाद भी कम नहीं हैं। संगठन से जुड़े लोगों के संस्मरणों में इसका उल्लेख मिलता है। संगठन की एक पूर्व सदस्या को लेकर बताया गया है कि कैसे उसके माता-पिता को इस बात से आपत्ति थी कि वह सैंट एगिडियो से जुड़कर परिवार को भूल गई। लड़की ने समुदाय से जुड़ने के बाद अपने परिवार को छोड़ दिया था और तन, मन से इसी समुदाय में जुट गई थी। इसके अलावा जो शादी ये समुदाय कराता था, उसमें बच्चे पैदा करने के लिए कुछ शर्तें होती थीं।
यह समुदाय वैश्विक राजनिति और कूटनीति के मामलों में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया है। साल 1996-1998 में अल्जीरिया में इटली के राजदूत फ्रेंको डी कर्टन ने इस समुदाय के राजनयिक प्रयासों की कठोर शब्दों में आलोचना की थी।
संस्मरण में उन्होंने लिखा कि कैसे अल्जीरिया के आर्कबिशप के पास जब वो एक दिन गए थे तो उन्होंने इस समुदाय समेत कुछ समूहों के बारे में कठोर शब्द कहे थे, जो आतंकवाद का लाभ उठाकर और चरमपंथियों के साथ बातचीत का प्रस्ताव देकर सत्ता में पदों पर बैठकर ऊपर उठना चाहते थे। आर्कबिशप ने उस किताब की निंदा भी की थी, जो अल्जीरिया के हालातों पर इस समुदाय के लोगों ने इटली में पब्लिश करवाई थी। उनका दावा था कि उसमें कई बातें झूठी थीं, जिनसे उनके साथियों को नुकसान हो सकता था।
कर्टन ने आगे संस्मरण में बताया है कि कैसे इस समुदाय से अल्जीरिया के लोगों को खतरा था। साथ ही रोम और अल्जीरिया में विवाद बढ़ने की भी आशंका थी। ये बात उन्हें खुद अल्जीरिया के विदेश मंत्रालय ने कही थी। वहाँ उनको राजदूत ने कहा था कि अगर रोम “संत एगिडियो समूह” को फिर से खोलने का इरादा रखता है तो वह ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन इससे दोनों देशों के बीच संकट आने की उम्मीद है।
उल्लेखनीय है कि इस समुदाय ने साल 2018 में अपनी 50वीं सालगिरह मनाई थी। इस दौरान कार्यक्रम की अध्यक्षता वेटिकन के राज्य सचिव और फ्रांसिस के सबसे वरिष्ठ सहयोगी इतालवी कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन ने की। उन्होंने अपने भाषण में संगठन की जमकर तारीफ की थी। पोप फ्रांसिस ने भी इसके हेडक्वार्टर का दौरा किया था।
अब, अगर ये सही बात है कि वाकई बंगाल मुख्यमंत्री को इस कार्यक्रम में बुलाने का न्योता आया है तो सवाल उठना लाजिमी है कि वो क्यों आया है। पोप फ्रांसिस और एंजेला मर्केल तो अपने देशों की प्रमुख हैं, लेकिन मुख्यमंत्री ममता इसमें कैसे फिट बैठती हैं। अगर इनके कदम से यह बात सामने आए कि चर्च भारत के राजनीतिक मुद्दों में भी हस्तक्षेप करना चाहता है तो यह हैरान करने वाली बात नहीं होगी।
वहीं, ऑपइंडिया ने इस निमंत्रण को लेकर पुष्टि करने का प्रयास किया है, लेकिन अभी हमें कोई जवाब नहीं आया है।