जम्मू-कश्मीर में कट्टरपंथियों द्वारा सेना और सुरक्षबलों पर होने वाली पत्थरबाजी की घटनाओं में साल 2016 से लेकर साल 2020 तक 90% की गिरावट दर्ज की गई है। यह जानकारी खुद पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने मीडिया के साथ साझा की है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने कहा कि साल 2019 की तुलना में इस साल हुई पत्थरबाजी की घटनाओं में 87.13% की गिरावट हुई है। साल 2019 में, पत्थरबाजी की 1,999 घटनाएँ हुईं थीं, जिनमें से 1,193 बार यह पत्थरबाजी केंद्र सरकार द्वारा साल 2019 के अगस्त माह में जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने की घोषणा के बाद हुईं।
पुलिस महानिदेशक के अनुसार, “साल 2019 में हुई पत्थरबाजी की घटनाओं और वर्ष 2020 की तुलना में 87.13% की गिरावट दर्ज की गई। 2020 में 255 बार पत्थरबाजी की घटनाएँ हुई हैं।”
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 और 2017 में 1,458, और 1,412 बार पत्थरबाजी की घटनाएँ सामने आईं थीं। अधिकारियों के अनुसार, 2016 की तुलना में, 2020 में ऐसी घटनाओं में गिरावट 90% रही है।
वर्ष 2016 में, 2,653 पत्थरबाज़ी के मामलों की सूचना मिली थी। यह वही साल है जब आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के एक कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद पूरे कश्मीर में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे। जबकि, 2015 में, जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की 730 घटनाएँ हुईं थीं। सेना ने बताया था कि नोटबंदी के बाद भी पत्थरबाजी की घटनाओं में भारी कमी आई थी।
5 अगस्त, 2019 को केंद्र ने अनुच्छेद 370 को रद्द कर दिया, जिसके अंतर्गत जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा हासिल था। इस फैसले के साथ ही जम्मू-कश्मीर के विभाजन से 2 केंद्र शासित प्रदेश- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख बने हैं।
घाटी में उग्रवाद में गिरावट के बाद, विरोध प्रदर्शन के दौरान कट्टरपंथियों ने पत्थर को एक ‘लोकप्रिय’ हथियार का विकल्प बनाया है। पत्थरबाजी का हथियार जम्मू-कश्मीर में 2008 के अमरनाथ-भूमि आंदोलन के बाद से प्रचलित होती गई।
इसके बाद से देशभर के कई हिस्सों में समुदाय विशेष ने पत्थरबाजी को अपने विरोध का एक सुलभ जरिया बनाया है। यही नहीं, दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों में पत्थरों का भारी मात्रा में इस्तेमाल किया गया। पत्थरबाजी का यह चलन साल 2010, 2016 और 2019 में सबसे ज्यादा देखा गया।
डीजीपी दिलबाग सिंह ने कहा, “कानून और व्यवस्था की स्थिति नियंत्रण में है। 2021 के लिए हमारा संकल्प जम्मू और कश्मीर में शांति बनाए रखना और स्थिति को नियंत्रित एवं मजबूत करना है।”