उच्चतम न्यायालय ने सोमवार (जनवरी 14, 2019) को भीमा कोरेगाँव हिंसा के मामले में संलिप्तता और प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साज़िश रचने के सिलसिले में पुणे पुलिस द्वारा दर्ज़ FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एस के कौल की एक खंडपीठ ने मामले में चल रही जाँच में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और आनंद तेलतुंबडे को ट्रायल कोर्ट से नियमित जमानत लेने का आदेश दिया। हालाँकि, शीर्ष अदालत ने तेलतुंबडे को चार हफ्तों के लिए गिरफ़्तारी से सुरक्षा दे दी है।
इससे पहले, बॉम्बे हाईकोर्ट ने 21 दिसंबर को तेलतुंबडे द्वारा दायर पुणे पुलिस के FIR को रद्द करने की याचिका ख़ारिज़ कर दी थी और उन्हें तीन सप्ताह के लिए गिरफ़्तारी से अंतरिम संरक्षण दिया था।
पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगाँव हिंसा के सिलसिले में स्वयंभू ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’ – गौतम नवलखा, पी वरवरा राव, वर्नोन गोंजाल्विस, अरुण परेरा, सुधा भारद्वाज, आनंद तेलतुम्बडे और स्टेन स्वामी – को गिरफ़्तार किया था। ये सभी पीएम मोदी की हत्या की साज़िश रचने के आरोपित हैं। गिरफ़्तार किए गए इन ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’ पर माओवादियों के नेटवर्क के साथ सम्बन्ध होने के पुख़्ता सबूत मिले थे।
गिरफ़्तारियाँ भीमा कोरेगाँव हिंसा के संबंध में थीं। इससे पहले, पुणे पुलिस ने इस मामले में रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत और सुधीर धवले को गिरफ़्तार किया था। अगस्त (2018) महीने के छापे में गिरफ़्तार किए गए ये आरोपित सर्वोच्च न्यायालय में चले गए थे और न्यायिक हिरासत के बजाय ‘हाउस अरेस्ट’ का अंतरिम आदेश प्राप्त किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगाँव हिंसा में कथित भूमिका के लिए पाँच नक्सलियों की गिरफ़्तारी के मामले में इतिहासकार रोमिला थापर द्वारा दायर एक समीक्षा याचिका की तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया था।
28 सितंबर को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय ने इन पाँच ‘अर्बन नक्सलियों’ की गिरफ़्तारी के मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था। साथ ही इनकी हाउस अरेस्ट की अवधि को बढ़ा दिया था। शीर्ष अदालत ने ये भी कहा था कि इन आरोपित कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी का विपरीत राजनीतिक विचारधारा या भिन्न विचार होने से कोई लेना-देना नहीं है।