पर्यावरण को जीवन देने वाले, 8 साल की उम्र से पर्यावरण के प्रति समर्पित होने वाले, विश्वेश्वर दत्त सकलानी का 96 की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने अपना जीवन पर्यावरण को समर्पित कर दिया। जब वो आठ साल के थे, तब उन्होंने पहला पौधा लगाया था। अंतिम सांस लेने तक परिवार के मुताबिक उन्होंने करीब 50 लाख पौधे लगाए।
पर्यावरण के प्रति उनके समर्पण भाव को इस बात से समझा जा सकता है कि उनके परिवार में चार बेटे और पाँच बेटियाँ थीं, लेकिन उनके बेटे संतोष की मानें तो वो हमेशा कहा करते थे, “मेरे नौ बच्चे नहीं, 50 लाख बच्चे हैं, और मैं अब उन्हें जंगलों में तलाशा करूंगा।”
भाई और पत्नी की मृत्यु के बाद नहीं टूटे विश्वेश्वर
भाई और पत्नी के निधन के बाद विश्वेश्वर के लिए उनका दुख भूल पाना मुश्किल था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। मौत का दुख सहने के लिए पौधे लगाने लगे। और अंतिम साँस लेने तक उन्होंने पर्यावरण को सुरक्षित करना अपना ज़िम्मा समझा। विश्वेश्वर ने टिहरी-गढ़वाल में पर्यावरण की तस्वीर बदल दी और करीब 50 लाख पौधे लगाए। पत्नी की मृत्यु के बाद आई दूसरी पत्नी भी उनकी इस मुहीम में शामिल हो गईं और लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझाने लगीं।
1986 में प्रधानमंत्री ने किया सम्मानित
1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी उनके इस कार्य से प्रभावित हुए। तब विश्वेश्वर को इंदिरा प्रियदर्शिनी अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उनके बेट संतोष स्वरूप सकलानी कहते हैं, “उन्होंने करीब 10 साल पहले देखने की शक्ति खो दी थी। पौधे रोपने से धूल और कीचड़ आँखों में जाता था, जिससे उन्हें परेशानी होने लगी थी। पिता जी जब छोटे थे, तब से उन्होंने पौधे रोपना शुरू किया था।” संतोष कहते हैं, “1958 में माँ का निधन हो गया, इसके बाद वो पेड़-पौधों के और करीब हुए।”
विश्वेश्वर ने तैयार कर दिया एक घना जंगल
सकलानी का काम भले ही उत्तराखंड तक ही सीमित रहा हो, लेकिन अपने जिले में उन्होंने पर्यावरण को बचाने का काम बखूबी किया। सूरजगांव के आस-पास उन्होंने एक घना जंगल तैयार किया, हालाँकि अब वह तेज़ी से गायब हो रहा है। उनके बेट संतोष कहते हैं, “दुर्भाग्य से जंगल का बड़ा हिस्सा पिछले कुछ सालों में खत्म हो गया है क्योंकि लोगों को दूसरे कार्यों के लिए जगह चाहिए।”