कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार ने कन्नड़ लोगों को प्राइवेट नौकरियों में 50 से 75% तक का आरक्षण देने वाला बिल भले ही IT कंपनी संगठन NASSCOM के विरोध के बाद रोक दिया हो, लेकिन इस बीच कर्नाटक सरकार के फैसले से एक नई बहस छिड़ गई है। इसका मूल यही है कि आखिर अगर ये बिल लागू हो जाता तो इसके परिणाम क्या होते और कैसे इसका असर गैर कन्नड़ लोगों पर पड़ता। इस बहस में तमाम सोशल मीडिया यूजर्स अपने तर्क दे रहे हैं और इसी बीच एक महिला की आईडी से उसका पोस्ट वायरल हुआ है जिसमें उसने बेंगलुरु में काम करने का अनुभव साझा किया है।
ये पोस्ट बताता है कि कैसे एक हिंदी भाषी राज्य से गैर हिंदी भाषी राज्य में जाने पर लोगों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जिस महिला की बात हो रही है उसका यूजर नेम @shaaninani है। पोस्ट के अनुसार महिला बताती हैं कि वो बेंगलुरु में काम करती थीं और उनकी शादी पंजाब में हुई थी। नॉर्थ इंडिया के रीति-रिवाजों के अनुसार उन्हें 1 साल तक चूड़ा पहनना था। उन्होंने ऐसा किया भी। मगर जब वो बेंगलुरु में इसे पहनकर गईं और ऑटो में सफर किया तो वहाँ उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा।
@shaaninani ने अपने पोस्ट में बताया , “मैं बेगलुरु में डेढ़ साल से काम कर रही थी। शादी पंजाब में हुई थी तो मुझे चूड़ा एक साल तक पहनना था क्योंकि वो मेरी संस्कृति का हिस्सा था और इससे ये साफ था कि मैं नॉर्थ इंडिया से हूँ।” आगे उन्होंने बताया कि उन्हें फ्लैट से ऑफिस और ऑफिस से फ्लैट के बीच में बहुत कुछ झेलना पड़ता था। बेंगलुरु में लोकल ऑटो ड्राइवर उनसे पूछते थे, “तुम जब नॉर्थ की हो तो फिर बेंगलुरु में काम क्यों करती हो, क्या कन्नड़ सीख रही हो, क्या मौसम के अलावा कुछ और अच्छा लगता है, पैसे ज्यादा माँगते थे क्योंकि मैं नवविवाहिता थी और ऐसे दर्शाते थे जैसे वो हिंदी-अंग्रेजी का एक शब्द भी नहीं समझ पा रहे।”
शानी ने लिखा कि उनका स्थानीय लोगों के साथ बहुत बुरा अनुभव रहा है। इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया कि एक बार उन्होंने पावर कट की शिकायत करने के लिए BESCOM को फोन किया, लेकिन वहाँ कॉल उठाने वाले व्यक्ति ने कॉल ये कहकर काट दिया, “नो हिंदी, नो इंगलिश, सिर्फ कन्नड़।” महिला के अनुसार, वहाँ लोगों को सिर्फ कन्नड़ भाषी लोगों की चिंता है।
इसके बाद महिला ने बताया कि उनके आसपास बहुत नकारात्मकता थी। उन्होंने कहा कि उन्हें वहाँ का मौसम भी नहीं पसंद था। हमेशा बारिश होती थी। बाहर नहीं जा सकते थे। अगर चले जाओ तो कैब नहीं मिलती थी। अगर कैब मिल गई तो कहीं जाने में घंटों लग जाते थे। महिला बताती हैं कि उन्होंने इन्हीं सब वजहों के बाद अपनी जॉब छोड़ दी थी। उन्हें घर की याद आने लगी थी। आगे महिला ने ये भी लिखा कि गुड़गाँव आने के बाद उनके एनर्जी लेवल में बहुत बदलाव आया। अब वो लंबी लंबी वॉक पर जाती हैं, अच्छा खाना खाती है, जहाँ मन हो घूमती हैं। कोई ऑटोड्राइवर उनसे बेतुके सवाल नहीं करता है।
नोट- ये खबर सोशल मीडिया पर वायरल होते @shaaninani के पोस्ट पर आधारित है।