इससे पहले ईवीएम को लेकर उदित राज ने सुप्रीम कोर्ट पर ही धाँधली का आरोप लगा दिया था। उन्होंने कहा था कि चुनाव आयोग बिक चुका है। सुप्रीम कोर्ट के अलावा वह राष्ट्रपति पद पर भी टिप्पणी कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि भाजपा हमेशा गूँगे-बहरों को ही राष्ट्रपति बनाती है।
सिवन ने बताया कि हालाँकि ऑर्बिटर में काफी अतिरिक्त ईंधन मौजूद है। ऑर्बिटर लगभग 7-7.5 साल तक चन्द्रमा की परिक्रमा कर सकता है। विक्रम लैंडर से फ़िलहाल सम्पर्क टूटा हुआ है। अगले 14 दिनों में सम्पर्क फिर से स्थापित करने के प्रयास किए जाएँगे।
आईपी सिंह ने इससे पहले कहा था कि बेरोजगारी और भूखमरी से ध्यान हटाने के लिए भाजपा चंद्रयान-2 का इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने कहा था कि पीएम मोदी लोगों को चंद्रयान-2 की लैंडिंग देखने को इसलिए बोल रहे हैं ताकि कोई आर्थिक तबाही के बारे में सवाल न पूछे।
सिर्फ एक मीडिया हाउस के वीडियो पर हाहा रिएक्शन देने वाले लोगों के नाम देखिए। इनकी संख्या क़रीब हज़ार में है लेकिन 90% से भी ज्यादा लोगों की ख़ासियत यह है कि 'इनका कोई मज़हब नहीं है'।
इसरो चीफ के सिवन जब टूट रहे थे, तो उनके कंधों पर शाबासी की थपकी मिली किससे - खुद पीएम से। जब पीएम मोदी ने रोते हुए सिवन को गले लगाया तो उसमें यह संदेश छिपा था कि देश को आपकी सफलता पर गर्व है, जबकि आपकी विफलता पर वो आपके साथ और भी मजबूती के साथ खड़ा है।
"978 करोड़ रुपए के लागत वाले चंद्रयान-2 मिशन का सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है। मिशन को सिर्फ लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर का नुकसान हुआ है, जबकि अंतरिक्ष यान का तीसरा खंड ऑर्बिटर अब भी चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगा रहा है।"
चाँद की कक्षा में आने के बाद चंद्रयान-2 चाँद की चार कक्षाओं से होकर गुजरेगा, जिसके बाद यह चाँद की अंतिम कक्षा में दक्षिणी ध्रुव पर करीब 100 किमी ऊपर से गुजरेगा। इसी दौरान 2 सितंबर को यान का विक्रम लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा।
चंद्रयान-2 के लॉन्च होते ही, हमारी यह ऐतिहासिक यात्रा शुरू हो चुकी है। आज भारत विश्व पटल पर ऐसे मिशन को अंजाम देने वाले अग्रणी देशों की श्रेणी में आ गया है। भारत चंद्रयान-2 मिशन की लॉन्चिंग के साथ वैश्विक पटल पर चाँद पर ऐतिहासिक मिशन भेजने वालों में चौथा देश बन चुका है।
यह सही है कि विज्ञान प्रमाण और सबूतों पर आधारित होता है। आम तौर पर कहा जाता है कि मंदिर के अनुष्ठानों की प्रकृति के बारे में सबूत अपर्याप्त हैं। हो सकता है कि उनका ये कहना सही हो कि लॉन्च से पहले मंदिर में जाना एक 'अवैज्ञानिक परंपरा' है, लेकिन ऐसा करने में हर्ज ही क्या है? इससे इतने सारे लोग परेशान क्यों हैं?