बीबीसी का वुसतुल्लाह ख़ान विश्व की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक पार्टी के मुखिया की तुलना 5 लाख लोगों के क़ातिल 'युगांडा के कसाई' से करता है। घृणा से ओत-प्रोत बीबीसी यह सपना देख रहा है कि सभी देश प्रवासी भारतीयों को भगा दें। लेकिन, ऐसा हो सकता है क्या?
"ये जरूरी है कि कश्मीर की असल तस्वीर लोगों के सामने पेश की जाए क्योंकि बहुत से पाकिस्तानी लड़के है जो सोशल मीडिया पर वायरल होती ऐसी स्टोरी को पढ़ रहे है, आतंकी संगठन ज्वाइन करने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं और फिर कश्मीर आकर परेशानी का कारण बन रहे हैं।"
बीबीसी से भी बात करते हुए विश्वजीत से साफ़-साफ़ कहा कि उन्हें आशीष की आत्महत्या का कारण नहीं पता। इसी ख़बर में पुलिस ने भी कहा कि आत्महत्या की मूल वजह का पता लगाया जा रहा है। मिलिंद खांडेकर और बीबीसी ने इसे 'ऑटो कंपनियों में हो रही छँटनी' से जोड़ कर अपना उल्लू सीधा किया।
मीडिया के इस ख़ास वर्ग का दर्द यह है कि इतना बड़ा ऐतिहासिक फैसला बिना किसी हिंसा और संघर्ष के इतने शानदार होम वर्क के साथ आखिर कैसे सम्भव हो गया? बुद्धिपीड़ितों को तो अभी भी यह उम्मीद है कि काश कहीं तो कुछ खूनखराबा हो, ताकि सरकार के निर्णय पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा सके।
बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में तो ट्वीट का सही अनुवाद किया है, लेकिन उनकी इस रिपोर्ट का उस तथ्य/वीडियो से कोई लेना-देना नहीं है, जिसमें BBC ने बहुत सारे लोगों के विरोध करने और सुरक्षाबलों द्वारा उन पर पेलेटगन इस्तेमाल करने का दावा किया था।
इन मीडिया संस्थानों से 'कश्मीर में 10000 लोगों का विरोध प्रदर्शन' वाली खबर को लेकर असली वीडियो माँगा गया था। लेकिन अभी तक ये वीडियो नहीं दे पाए हैं। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने पुष्टि करते हुए कहा कि सभी लोग बीबीसी उर्दू के वीडियो का जिक्र कर रहे हैं लेकिन...
गिरती लोकप्रियता के कारण BBC हाशमी दवाखाना के विज्ञापनों की तरह ही अपने होमपेज पर सेक्स ही सेक्स लिखते हुए घूम रहा है। हाशमी दवाखाना वालों के मार्केट पर इससे जरूर गहरी चोट लग सकती है।
गोधरा कांड मामले पर बीबीसी ने अपने अनेक झूठ को दो छोटे वाक्यों में समेट दिया। 2011 में बीबीसी ने खुद रिपोर्ट की थी कि इस्लामी भीड़ ने साबरमती एक्सप्रेस पर हमला किया था, जिसमें 31 लोग दोषी पाए गए थे। इन सभी 31 लोगों को कारसेवकों को जिंदा जलाने के आरोप में अपराधी पाया गया था। खास बात ये थी कि ये सभी समुदाय विशेष से थे।
इससे भी ज्यादा बीबीसी ने प्रियंका की तारीफ़ों के पुल बांधे हैं। प्रियंका ने आज तक अपनी लोकप्रियता साबित नहीं की है, एक भी चुनाव नहीं जीता है, अपनी देखरेख में पार्टी को भी एक भी चुनाव नहीं जितवाया है, फिर भी बीबीसी उन्हें चमत्कारिक और लोकप्रिय बताता है।