कट्टरपंथी जमीयत नेता फजलुर रहमान ने सरकार के खिलाफ 27 अक्टूबर को मार्च का किया ऐलान। कहा, "यह जंग तब तक जारी रहेगी जब तक इमरान ख़ान की सरकार चली नहीं जाती। पूरे देश से लोगों का जनसैलाब मार्च में भाग लेने आ रहा है और फ़र्ज़ी शासक इसमें एक तिनके की तरह डूब जाएँगे।"
पोस्टरों पर नारा लिखा है, 'एलओसी तोड़ दो, बिखरा कश्मीर जोड़ दो।' गुलाम कश्मीर के लोगों को आगे कर सीमा पर बड़े पैमाने पर हिंसा की रची गई साजिश को देखते हुए भारत ने सीमा पर सुरक्षा के काफी पुख्ता प्रबंध किए हैं।
"जब तक दूसरी ओर शांति है वह एलओसी पार नहीं करेंगे, लेकिन अगर पाकिस्तान माहौल बिगाड़ने का प्रयास करता है या फिर उन आतंकियों को नियंत्रित करता है, जो उसके लिए प्रॉक्सी का काम करते हैं तो ज्यादा समय तक लुका-छिपी का खेल नहीं चलेगा, सेना को अगर सीमा पार जाना पड़ा, चाहे हवाई मार्ग से हो या थल मार्ग से तो सेना जाएगी।"
सब कुछ विश्लेषण करने के बाद अपनी ज़मीन वापस पाने के लिये 13 अप्रैल 1984 को बाकायदा ऑपरेशन मेघदूत चलाया गया जिसकी नायक थे लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हून और लेफ्टिनेंट कर्नल डी के खन्ना। तब से हमारी सेनाएँ सियाचिन की रखवाली कर रही हैं।