Friday, November 22, 2024
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फ़ोटो फ़ीचर: भारतीय संस्कृति की थाती समेटे ‘संस्कृति ग्राम’ व ‘संस्कृति कुम्भ’ का वर्चुअल टूर

16 फरवरी 2019 तक चलने वाले कार्यक्रम में भारत सहित 12 देशों के कलाकार अपने देशों की शैलियों में रामलीला का मंचन करेंगे।

कुम्भ की महिमा का गान और सनातन संस्कृति का बखान करने के लिए मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ द्वारा उद्घाटन के बाद से ही गंगा पार प्रयागराज का अरैल स्थित ‘संस्कृति ग्राम’ आगन्तुकों के स्वागत के लिए धर्म और संस्कृति से जुड़ी कई मनोरम झाँकियों के साथ तैयार है। आप यहाँ सनातन परम्परा और संस्कृति के साथ ही कुम्भ के इतिहास से भी परिचित होंगे। इतना ही नहीं लोक संस्कृति की मनोरम झाँकियाँ देखनी हो, लोकगीतों की ताल पर झूमना हो तो पधारिए ‘संस्कृति कुम्भ’ जो अपनी पूरी भव्यता के साथ प्राचीन से नवीन भारत की तमाम खूबियों को समेटे आपकी राह देख रहा है।

यू. पी. नहीं देखा तो क्या देखा! (तस्वीर – ज्ञान प्रकाश पाण्डेय)

चलिए ले चलता हूँ, आपको एक वर्चुअल टूर पर ‘संस्कृति ग्राम’ की छोटी सी झलक के साथ संस्कृति कुम्भ दिखाने –


यहाँ शास्त्रीय संगीत से लेकर विभिन्न लोक कलाओं की झलक देखने को मिलेगी।

केवट प्रसंग- प्रभु राम केवट को गले लगाते हुए (तस्वीर – ज्ञान प्रकाश पाण्डेय)

राम मर्यादा पुरुषोत्तम माने गए हैं। बेशक़ उलझी हो उनकी अपनी ही जन्म नगरी कोर्ट-कचहरी में, पर उनकी गाथा सबको आत्मसात कर, वंचितों और असहायों को सदैव विजय की प्रेरणा देती रहेगी।

राम वन गमन (तस्वीर – ज्ञान प्रकाश पाण्डेय)

जंगल का जीवन बहुत सुखदायी तो कभी नहीं रहा होगा। पर पिता के वचन रक्षार्थ 14 वर्ष का वनवास। संयम, साहस, जीवटता का प्रतीक।

चल रहा महाभारत का रण (तस्वीर – ज्ञान प्रकाश पाण्डेय)

महाभारत की कई घटनाएँ आपको महामानव कृष्ण की याद दिलाएँगी। जीवन की निस्सारता और ‘जो है वही है’ के रूप में गीता का सस्वर ज्ञान सुनाएँगी। रामायण और महाभारत हमारे दो ऐसे महाकाव्य हैं, जिसमें जीवन के हर संग्राम में यशस्वी होने के बीज सूत्र हैं।

काली दह में कालिया नाग का मान मर्दन करते हुए श्री कृष्ण (तस्वीर – ज्ञान प्रकाश पाण्डेय)

कृष्ण न सिर्फ़ लीलाधर थे बल्कि मानव जीवन की सम्पूर्णता का पर्याय भी

जनक नन्दनी सीता माँ (तस्वीर – ज्ञान प्रकाश पाण्डेय)

संस्कृति ग्राम में न सिर्फ़ रामायण-महाभारत के प्रसंग, बल्कि समुद्र मन्थन से लेकर, पाषाण काल, आदिमानव से आधुनिक मानव और उसकी सांस्कृतिक विकास यात्रा भी देखने को मिलेगी

जीवन को व्यस्थित करने का पहला प्रयास (तस्वीर – ज्ञान प्रकाश पाण्डेय)

कभी सोचिएगा कि आदिकाल में, पुरापाषाण काल में कैसा रहा होगा जीवन… आदिकाल की उन कठिनाइयों को उकेर कर कलाकृतियों के माध्यम से उस दौर के जीवन को बखूबी समझाने की कोशिश

मराठा शान के प्रतीक शिवाजी (तस्वीर – ज्ञान प्रकाश पाण्डेय)

…और भी थे जो लड़े सनातन संस्कृति की आन-बान-शान के लिए

सनातन परम्परा को शब्द संसार में बाँधकर मानवता को सौंप देने वाले महापुरुष
(तस्वीर – ज्ञान प्रकाश पाण्डेय)

तुलसी, बाल्मीकि से लेकर संस्कृति को अक्षुण्ण रखने वाले ऐसे ही कई और भी महापुरुषों की झाँकी

पूरा पाषाण काल (तस्वीर – ज्ञान प्रकाश पाण्डेय)

ये तो पूरी प्रदर्शनी की छोटी-सी झलक है। ‘संस्कृति ग्राम’ में सिंघु घाटी की सभ्यता, वैदिक काल की ऋचाएँ, रामायण युग, कृष्ण लीला, महाभारत काल की प्रमुख घटनाएँ, बुद्ध एवं महावीर के त्याग और ज्ञान की सांस्कृतिक विरासत, मौर्य काल, शुुंग एवं कुषाण काल, गुप्त काल, वर्धन साम्राज्य, भारत में मंदिर वास्तु का विस्तार, भक्ति काल, इंडो-इस्लामिक कला एवं स्थापत्य, मराठा साम्राज्य, 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, एवं सामाजिक जागरूकता से जुड़े आंदोलन तथा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी कुछ ऐसी कहानियाँ जो इस देश की सनातन, गौरवशाली परम्परा का प्रतिनिधित्व करती हैं, विभिन्न कलाकृतियों, पेंटिंग एवं जीवन्त कलाकारों के माध्यम से प्रदर्शित की गई हैं।

भारतीय लोक कला संस्कृति का अनूठा संगम संस्कृति कुम्भ

इतना ही नहीं, इस बार कला कुम्भ में देश-विदेश के नाट्य एवं लोक कलाकारों का जमावड़ा भी हो रहा है। ये कलाकार विभिन्न मंचों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। 16 फरवरी 2019 तक चलने वाले कार्यक्रम में भारत सहित 12 देशों के कलाकार अपने देशों की शैलियों में रामलीला का मंचन करेंगे। संस्कृति विभाग में अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक योगेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि इंडोनेशिया, त्रिनिदाद, थाईलैंड, रूस, मलेशिया, श्रीलंका, मॉरीशस, सूरीनाम, नेपाल, बांग्लादेश एवं न्यूजीलैंड के लोक कलाकार मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जीवनगाथा ‘रामलीला’ की प्रस्तुति देंगे

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रवि अग्रहरि
रवि अग्रहरि
अपने बारे में का बताएँ गुरु, बस बनारसी हूँ, इसी में महादेव की कृपा है! बाकी राजनीति, कला, इतिहास, संस्कृति, फ़िल्म, मनोविज्ञान से लेकर ज्ञान-विज्ञान की किसी भी नामचीन परम्परा का विशेषज्ञ नहीं हूँ!

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