आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने हिंदू धर्म से ईसाई बनने के बाद श्री ब्रम्हारंभ मल्लिकार्जुन स्वामी वरला देवस्थानम के एक कर्मचारी की सेवा समाप्त करने के फैसले को बरकरार रखा है। हाईकोर्ट ने कहा कि ईसाई धर्म अपनाने के बाद वह शख्स हिंदू नहीं रह गया था और यह धार्मिक संस्थान अधिनियम के खिलाफ था।
न्यायालय ने कहा कि सेवा की समाप्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 (5) और आंध्र प्रदेश धर्मार्थ एवं हिंदू धार्मिक संस्थानों और बंदोबस्ती अधिनियम के नियम 3 द्वारा दी गई वैधानिक शक्ति के अनुसार थी। सेवक सेवा नियम, 2000 (एपी नियम, 2000) के नियम 3 के अनुसार, किसी धार्मिक संस्थान या बंदोबस्ती का प्रत्येक पदाधिकारी और सेवक हिंदू धर्म मानने वाला व्यक्ति होना चाहिए।
मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति हरिनाथ एन की पीठ ने कहा, “यदि न्यायालय याचिकाकर्ता के इस तर्क पर विचार करता है कि उसने खुद को ईसाई बनाए बिना एक ईसाई लड़की से शादी की है तो यह शादी विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के तहत संपन्न किया जाना चाहिए। विवाह प्रमाण पत्र विशेष विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत जारी किया जाना चाहिए।”
न्यायाधीश ने आगे कहा, “याचिकाकर्ता के मामले में अब तक धारा 13 के तहत कोई प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया है। जहाँ तक विवाह का संबंध है तो यह इंगित करता है कि याचिकाकर्ता ने एपी चैरिटेबल और हिंदू धार्मिक संस्थानों और बंदोबस्ती कार्यालय धारकों और सेवक सेवा नियम, 2000 के नियम 3 से छुटकारा पाने के लिए यह याचिका दायर की है।”
पीठ ने आगे कहा, “जैसा कि उत्तरदाताओं द्वारा दायर होली क्रॉस कैथेड्रल, नांदयाल में विवाह के रजिस्टर में याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी का नाम और धर्म ईसाई लिखा हुआ है। याचिकाकर्ता ने उक्त रजिस्ट्रार में अपना हस्ताक्षर भी किया है।”
Verdictum की रिपोर्ट के मुताबिक, दरअसल याचिकाकर्ता को साल 2002 में अनुकंपा के आधार पर श्री ब्रह्मरांभ मल्लिकार्जुन स्वामी वरला देवस्थानम के कार्यालय में रिकॉर्ड सहायक के रूप में नियुक्त किया गया था। साल 2010 में उसने अपने पसंद की लड़की से शादी की और यह शादी कुरनूल जिले के नांदयाल में एक कैथेड्रल पास्टरेट चर्च में संपन्न हुई।
इसको लेकर लोकायुक्त के समक्ष एक शिकायत दायर की गई थी। इस शिकायत में आरोप लगाया गया था कि एपी चैरिटेबल और हिंदू धार्मिक संस्थानों और बंदोबस्ती कार्यालय धारकों और सेवक सेवा नियम, 2000 के नियम 3 का उल्लंघन किया गया है, क्योंकि याचिकाकर्ता ने अनुकंपा के आधार पर रोजगार पाने के समय अपना धर्म छुपाया था।
इसके बाद याचिकाकर्ता को रिकॉर्ड सहायक की सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने अपने स्पष्टीकरण में कहा कि उसने अपना धर्म नहीं छिपाया था और सक्षम अधिकारियों द्वारा जारी किए गए उसके जाति और स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र में उसकी जाति हिंदू के अनुसूचित जाति में आने वाले माला समुदाय बताई गई है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि ईसाई धर्म की लड़की से शादी करने पर यह नहीं माना जाना चाहिए कि याचिकाकर्ता ने ईसाई धर्म अपना लिया है। वह अभी भी हिंदू धर्म को मानता है। हालाँकि, पीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए किसी भी आधार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।