अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों से इस मंदिर में 22 जंववरी 2024 को मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जानी है। इस बीच बलिदानी कारसेवकों को याद करके दुनिया भर के हिन्दू उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। हालाँकि समाजवादी पार्टी के कई नेता सन 1990 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश पर हुए रामभक्तों के नरसंहार को सही ठहरा रहे हैं। इस मौके पर ऑपइंडिया की टीम अयोध्या में मौजूद है। हमने सन 1990 के एक ऐसे कारसेवक को खोज निकाला, जो 2 गोलियाँ लगने के बाद भी अब तक जीवित हैं। इनका नाम शिव दयाल मिश्रा है। शिवदयाल ने हमें सन 1990 की भयावहता को एक चश्मदीद के तौर पर बताया।
सरकारी टीचर होने के बावजूद उतरे कारसेवा में
सन 1990 नरसंहार के चश्मदीद और भुक्तभोगी कारसेवक शिव दयाल मिश्रा मूल रूप से गोंडा जिले के थानाक्षेत्र वजीरगंज के निवासी हैं। उनके गाँव का नाम पूरे बसंती है। 1990 में शिवदयाल गोंडा के ही एक प्राइमरी स्कूल में सहायक अध्यापक थे। साल 2009 में वो हेड मास्टर बन कर रिटायर हुए। 77 साल के हो चुके शिव दयाल 1990 में लगभग 45 वर्ष के थे। उनके परिवार में एक बेटा है। फ़िलहाल वो गौ सेवा और खेती आदि करके समय व्यतीत कर रहे हैं।
उनके बाएँ पैर के घुटने में आज भी गहरा घाव देखा जा सकता है। इसी जगह पैरामिलिट्री द्वारा चलाई गई गोली उनके टखने को तोड़ कर निकल गई थी। दाएँ पैर के पंजों में भी एक गोली लगी थी, जो रगड़ते हुए निकल गई थी। उस जगह खरोंच के निशान आज भी मौजूद हैं।
शिव दयाल बताते हैं कि दोनों घावों में आज भी कभी-कभार दर्द उठ जाता है। हालाँकि वो इस उठने वाले दर्द में भी राम के नाम पर किए गए त्याग को याद करते हुए संतोष महसूस करते हैं। शिवदयाल का कहना है कि अगर उनके प्राण भी निकल जाते तो कोई गम नहीं होता।
जोश था राम के नाम पर प्राण भी देने का
जब हमने शिव दयाल से पूछा कि सरकारी नौकरी में रह कर भी उन्होंने कारसेवा का रास्ता क्यों चुना तो उन्होंने कहा, “राम के आगे क्या नौकरी और क्या परिवार?” शिवदयाल ने हमें आगे बताया कि उनके गाँव से होकर देश के विभिन्न हिस्सों के कारसेवक गुजर रहे थे। ये कारसेवक रामभक्ति के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने को तैयार थे। जब शिवदयाल ने इन कारसेवकों को देखा तो उन्होंने भी अपने गाँव और आसपास के लोगों का जत्था तैयार किया। इसी बीच उन्होंने बाहर से आए रामभक्तों के आराम करने और खाने-पीने का इंतजाम करवाया।
पानी भरे खेतों और काँटों भरे रास्तों से निकले कारसेवक
शिवदयाल ने 30 अक्टूबर 1990 का दिन याद किया। उनके घर से अयोध्या की एरियल दूरी लगभग 25 किलोमीटर है। उन्होंने बताया कि भोर में ही वो अपने जत्थे के साथ अयोध्या की तरफ निकले। मुख्य मार्गों पर तब पेड़ों को काट कर गिरा दिया गया था। छोटे सहायक रास्तों पर पुलिस के वाहन गश्त कर रहे थे, जो अयोध्या जा रहे रामभक्तों को अज्ञात जगहों पर ले जा रही थी। बाहरी रामभक्तों को साथ लेकर शिव दयाल खेतों के रास्ते आगे बढ़े। उन्होंने बताया कि तब कई खेतों में घुटने तक पानी भरा था। कई जगहों पर कारसेवकों के पैरों में काटें चुभे और जोंक तक चिपक गई।
बावजूद इसके रामभक्त छिपते-छिपाते आगे बढ़ते गए। शिवदयाल मिश्रा का कहना है कि उन्हें और उनके साथियों का लक्ष्य अयोध्या ठीक वैसे ही थी, जैसे कभी अर्जुन के लिए चिड़िया की आँख। जब भी पुलिस के सायरन सुनाई देते थे या वाहनों की घरघरहट, तब रामभक्त खुद को पानी और खेतों में छिपा लेते थे। ये तमाम मुसीबतें रामभक्तों के हौसलों को डिगा नहीं पाईं और आखिरकार दोपहर के समय शिवदयाल अपने जत्थे के साथ सरयू नदी के तट पर पहुँच गए। नदी पार करते ही अयोध्या शुरू हो जाती।
सरयू पुल को पार करना मतलब मौत का सफर
शिवदयाल ने बताया कि भले ही वो अपने साथियों के साथ अयोध्या की सीमा पर पहुँच गए थे लेकिन वहाँ से आगे का सफर मौत का रास्ता पार करने जैसा था। अक्टूबर का महीना था और बरसात का सीजन हाल ही में खत्म हुआ था। तब सरयू नदी पूरे उफान पर थी, जिसकी धाराओं को भेद पाना किसी अच्छे तैराक के लिए भी असम्भव जैसा था।
अगर कोई हिम्मत कर भी लेता तो नदी के तट पर खड़ा कोई सशत्र पुलिसकर्मी उसे गोली नहीं मार देगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं थी। बकौल शिवदयाल अयोध्या में घुसने का एकमात्र रास्ता सरयू पुल से हो कर जाता था लेकिन उस रास्ते पर इतनी फ़ोर्स तैनात थी कि शायद मच्छर भी उसे पार न कर पाता। कारसेवकों ने इसी को मुलायम सिंह द्वारा ‘परिंदा भी पर न मार पाने’ वाला चैलेन्ज बताया।
पुल पर रखा पहला कदम और बिछ गईं लाशें
जिस जगह शिवदयाल अपने जत्थे के साथ थे, वहाँ से रामजन्मभूमि लगभग 3 किलोमीटर दूर थी। अयोध्या में इंट्री का एकमात्र रास्ता पुल था, जिस पर भारी फोर्स तैनात थी। पुल पार करने के लिए कारसेवक आगे बढ़े, तभी पहली पंक्ति में खड़े पुलिस के जवानों ने उनको पीछे हटने के लिए कहा।
रामधुन गा रहे रामभक्तों ने पीछे हटने से मना कर दिया और पुल की तरफ बढ़ते रहे। इसी बीच पुलिस के जवानों के पीछे से एक दूसरी टुकड़ी आई। उस टुकड़ी के पास अत्याधुनिक हथियार थे। शिवदयाल को आशंका है कि वो पैरामिलिट्री फ़ोर्स थी।
शिवदयाल के मुताबिक पीछे से आई टुकड़ी ने बिना किसी चेतावनी के गोलियाँ बरसानी शुरू कर दीं। गोलियाँ कारसेवकों के सिर, पैरों और छातियों में लगी। लगभग 5 मिनट चली अंधाधुंध फायरिंग में कई कारसेवकों की मौत मौके पर ही हो गई।
उसके बाद का दृश्य देख कर ऐसा लगा मानो पुलिस के वाहन पहले ही नरसंहार की तैयारी कर के आए थे। फटाफट लाशों को वाहनों में लादा गया। इस दौरान गोलीबारी से डर कर अस्थाई कैम्पों में बिठाए गए डॉक्टर भी भाग खड़े हुए।
दावा किया जा रहा है कि डॉक्टरों की गैर मौजूदगी में कई ऐसे कारसेवकों को भी लाश मान कर वाहनों में भर लिया गया, जो तब जिन्दा थे। शिवदयाल का मानना है कि मारे गए लोगों को बाद में किसी ने नहीं देखा। आशंका है कि उनके शवों को भी नदी आदि में फेंक कर ठिकाने लगा दिया गया।
2 गोलियाँ लगने के बावजूद घिसटते हुए जिन्दा बच गए शिवदयाल
शिवदयाल मिश्रा के मुताबिक अंधाधुंध गोलीबारी के बीच उन्हें अपने दोनों पैरों में तेज दर्द का एहसास हुआ। जब उन्होंने नीचे झाँक कर देखा तो दोनों पैरों से खून निकल रहा था। बाएँ पैर के घुटने और दूसरे के तलवे में गोली लग चुकी थी।
कारसेवक शिवदयाल ने बताया कि अगर वो नीचे गिरे होते तो उनको भी लाशों के बीच जिन्दा ही समेट कर नदी में फेंक दिया गया होता। ऐसे में उन्होंने खुद को हिम्मत दी। उनके साथ जिन्दा बचे साथी कारसेवकों ने भी शिवदयाल को सहारा दिया। आखिरकार फिर उन्हीं काँटों भरी राह और पानी भरे खेतों से होते हुए शिवदयाल वापस लौटे।
जब शिवदयाल को स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, तब वहाँ के डॉक्टरों ने इलाज में खुद को अक्षम बताया। आखिरकार फिर जैसे-तैसे आगे चल कर शिवदयाल को बाकी रामभक्तों ने बेहतर अस्पताल में भर्ती करवाया। यहाँ उनके घुटने में घुसी गोली निकाली गई। इस गोली को स्थानीय प्रशासन ने आकर अपने कब्ज़े में ले लिया। दूसरे पैर के घाव को डॉक्टरों ने खतरे से बाहर बताया।
जानकारी मिलते ही कारसेवक शिवदयाल के परिजन अस्पताल पहुँचे। आखिरकार लगभग 6 महीने तक शिवदयाल बिस्तर पर पड़े रहे। इस पूरे इलाज का खर्च आदि खुद शिवदयाल ने अपनी जेब से उठाया। बीच में कई बार ऐसा भी लगा कि कारसेवक का पैर काटना पड़ सकता है। हालाँकि ऐसी नौबत न आना शिवदयाल भगवान राम का आशीर्वाद मानते हैं।
सब्ज़ी बेचने वाला रज़्ज़ाक दिखाता था आँखें
शिवदयाल मिश्रा ने बताया कि लगभग 6 माह तक बिस्तर पर रहने के बाद सबसे पहले उन्होंने अपनी टीचर की नौकरी नियमित रूप से करनी शुरू की। आसपास के इलाकों में उनके कारसेवा में गोली लगने की खबर फ़ैल चुकी थी। जब कभी शिवदयाल पास की वजीरगंज बाजार जाते थे, तब वहाँ सब्जी बेचने वाला रज्जाक खान उनको आँखें दिखाता था।
एक दिन बहस करते हुए रज़्ज़ाक खान ने शिवदयाल को ‘गद्दारी वाला काम’ करने वाला भी कह डाला था। हालाँकि शिवदयाल ने कारसेवा को अपनी रामभक्ति बताया। उन्होंने रज्जाक से कहा कि उन्हें अपने काम पर गर्व है। हालाँकि शिवदयाल का यह भी कहना था कि हिन्दू समाज के साथ तब हिंदूवादी सोच रखने वाले तमाम अधिकारियों ने भी उन्हें कारसेवक होने के नाते काफी सम्मान दिया था।
आज भी शिवदयाल और उनका परिवार भगवान राम की भक्ति में लीन है। शिवदयाल का यह भी कहना है कि भले ही आज उनकी उम्र 77 वर्ष के आसपास है लेकिन अगर अभी भी रामकाज करने का मौका मिला तो वो अपने प्राणों का मोह नहीं करेंगे।
अपने दिवंगत साथियों को याद कर के भावुक हो गए शिवदयाल ने बताया कि आज भी उनके कानों में वो तड़तड़ाती गोलियाँ कभी-कभार गूँज जाती हैं। अपनी आँखों के आगे राम मंदिर बनना शिवदयाल अपने जीवन को धन्य होना और अपनी मेहनत का सार्थक होना मानते हैं। उन्होंने मोदी और योगी की भी खुल कर तारीफ की।