Friday, November 22, 2024
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‘मुस्लिम कुरान और शरिया ही मानेंगे’: असम में विवाह-तलाक कानून रद्द करने पर बोले सपा सांसद हसन, कॉन्ग्रेस नेता बोले- यह मुस्लिमों का निजी कानून

कॉन्ग्रेस नेता अब्दुर राशिद मंडल ने सरकार के इस कदम को भेदभाव वाला बताया और कहा कि ये मुस्लिमों का निजी कानून है, इसे रद्द नहीं किया जा सकता। वहीं, AIUDF के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि काजी लोग भिखारी नहीं हैं। वे सरकार से एक रुपया नहीं ले रहे हैं।

असम ने वर्ष 1935 में बनाए गए मुस्लिम विवाह और तलाक रजिस्ट्रेशन अधिनियम (Muslim Marriages and Divorces Registration Act 1935) को रद्द कर दिया है। इसके साथ ही राज्य में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की दिशा में असम की हिमंता बिस्वा सरमा की सरकार ने एक कदम आगे बढ़ा दिया है। वहीं, मुस्लिम नेता इसके विरोध में उतर आए हैं और कहा कि मुस्लिमों के कुरान सबसे पहले है।

सीएम सरमा ने एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, “23 फरवरी, 2024 को असम कैबिनेट ने दशकों पुराने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को निरस्त करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। भले ही दूल्हा और दुल्हन की उम्र 18 और 21 ना हुई हो, जैसा कि कानूनन होना चाहिए, के विवाह का पंजीकरण भी इसके अंतर्गत हो रहा था। यह निर्णय असम में बाल विवाह पर रोक लगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”

इस कानून के रद्द करने के बाद अब असम में इस अधिनियम के जरिए मुस्लिम विवाह या तलाक का पंजीकरण नहीं हो सकेगा। असम सरकार में मंत्री जयंत मल्ला बरुआ ने कहा कि राज्य में एक विशेष विवाह अधिनियम है। इसलिए सरकार चाहती है कि सभी विवाह, विशेष विवाह अधिनियम के तहत हों।

राज्य सरकार के इस फैसले का कुछ मुस्लिम नेताओं ने विरोध किया है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता और पेशे से सर्जन एसटी हसन ने कहा कि मुस्लिम सिर्फ शरीयत और कुरान को ही मानेंगे। उन्होंने कहा कि इस कानून को निरस्त करने के साथ ‘हिंदू मतदाताओं के ध्रुवीकरण की कोशिश’ की जा रही है।

कानून को नजरअंदाज करते हुए उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने कहा, “सरकार चाहे जितना कानून बनाना चाहे, बना सकती है… मुस्लिम सिर्फ शरीयत और कुरान को ही फॉलो करेंगे। तमाम धर्मों की अपनी-अपनी मान्यताएँ हैं। लोग उन्हें हजारों सालों से फॉलो करते आ रहे हैं और आगे भी फॉलो किया जाता रहेगा।” 

वहीं, असम के ऑल इंडिया यूनाइटडेट डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि एक्ट को निरस्त करके मुस्लिमों को भड़काना चाहती है। मुस्लिम भड़केगा नहीं। इसके जरिए सरकार राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लाना चाहती है। अजमल ने कहा कि काजी लोग भिखारी नहीं हैं। वे सरकार से एक रुपया नहीं ले रहे हैं। उन्होंने चुनाव बाद विरोध करने की बात कही है।

कॉन्ग्रेस नेता अब्दुर राशिद मंडल ने सरकार के इस कदम को भेदभाव वाला बताया। उन्होंने कहा कि असम सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने और बहु-विवाह को रोक पाने में विफल रही है। राशिद ने कहा कि सरकार कह रही है कि ये ब्रिटिश राज का कानून है और चाइल्ड मैरिज की बात कर रही है। ये सच नहीं है। उन्होंने कहा, “ये मुस्लिमों का निजी कानून है, इसे रद्द नहीं किया जा सकता।”

बता दें कि यह अधिनियम वर्ष 1935 में अंग्रेजों द्वारा लाया गया था। यह असम के मुस्लिमों के लिए विवाह पंजीकरण और तलाक के नियम बनाता था। इसके अंतर्गत कोई भी मुस्लिम व्यक्ति, जिसे सरकार अधिकृत कर दे, मुस्लिम निकाह को पंजीकृत कर सकता था। इसी के साथ वह तलाक का पंजीकरण भी कर सकता था। इसके लिए वह एक शुल्क भी ले सकता था।

इस अधिनियम के तहत एक इलाके में दो मुस्लिम रजिस्ट्रार नियुक्त किए जाने थे, जिनमें से एक सुन्नी और एक शिया होता। वहीं, असम सरकार का मानना है कि इस नियम का लाभ उठा कर ऐसे निकाह भी पंजीकृत हो रहे थे, जो कि कानूनी मान्यता पूरी नहीं करते। चूंकि इस अधिनियम में निकाह की न्यूनतम आयु का जिक्र नहीं था, ऐसे में 18 वर्ष से कम की बच्चियों का निकाह भी हो रहा था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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