उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 16,000 से अधिक मदरसों की मान्यता रद्द कर दी है। यह निर्णय इलाहबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद लिया गया है। यह मदरसे अब तक मदरसा बोर्ड के अंतर्गत चलते थे, जिसे हाई कोर्ट ने असंवैधानिक करार दे दिया था। अब इनमें से पात्र मदरसों को किसी अन्य बोर्ड की मान्यता लेनी होगी, वरना यह बंद हो जाएँगे।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने इलाहबाद हाई कोर्ट के निर्णय का पालन करवाने के लिए निर्देश जारी किए गए हैं। यह निर्देश उत्तर प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को भेजा गए हैं। इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश में जो भी मदरसे अब तक मदरसा बोर्ड के अंतर्गत संचालित हो रहे थे, उनको किसी अन्य बोर्ड से मान्यता प्राप्त करनी होगी। यह मान्यता वही मदरसे प्राप्त कर सकेंगे, जो अन्य बोर्ड की अर्हताओं को पूरा करते हों। जिन मदरसों को इस मामले में पात्र नहीं पाया जाएगा, वह बंद हो जाएँगे।
मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को हितों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। जिन मदरसों को मान्यता मिल जाएगी, वहाँ पढ़ने वाले छात्रों को कोई समस्या नहीं होगी। उत्तर प्रदेश में जो मदरसे मान्यता ना पाने के कारण बंद होंगे, उनमें पढ़ने वाले बच्चों को आसपास के सरकारी स्कूलों में समायोजित किया जाएगा। यदि स्कूलों में क्षमता बढ़ाने या नए स्कूल खोलने की आवश्यकता पड़ती है तो यह भी किया जाएगा। राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने भी इस बात की पुष्टि की है।
गौरतलब है कि जिन 16,000 से अधिक मदरसों की मान्यता उत्तर प्रदेश में रद्द हो रही है, वह 2004 के मदरसा एक्ट के अंतर्गत संचालित होते थे। इनमें से 500 से अधिक मदरसों को सरकार से काफी अनुदान भी मिलता था। इन मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को भी सरकार पैसा देती थी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 22 मार्च, 2024 को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य मदरसा बोर्ड एक्ट को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। हाई कोर्ट ने इस मामले में कहा था कि मदरसे की शिक्षा सेक्युलरिज्म के सिद्धांतों के विरुद्ध है और सरकार को ये कार्यान्वित करना होगा कि मदरसों में मजहबी शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों को औपचारिक शिक्षा पद्धति में दाखिल करें। हाई कोर्ट ने इस दौरान पूछा था कि आखिर मदरसा बोर्ड को शिक्षा मंत्रालय की जगह अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा क्यों संचालित किया जाता है।
इलाहबाद हाई कोर्ट के मदरसा बोर्ड को असंवैधानिक घोषित करने के निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली गई है। इस पर शुक्रवार (5 अप्रैल, 2024) को सुनवाई होगी। यह सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच करेगी। उत्तर प्रदेश सरकार भी इस मामले में अपना पक्ष रखेगी।