Saturday, November 23, 2024
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केरल के मंदिर की परंपरा में दखल दे रहा था सरकारी बोर्ड, हाई कोर्ट ने रोका: कहा- मुख्य पुजारी की सहमति के बिना नहीं हो सकता बदलाव

इस मामले में प्रबंध समिति ने तर्क दिया कि अम्मानूर परिवार के सदस्यों द्वारा प्रदर्शन वर्ष में कुछ ही दिनों तक सीमित रहता है। इसके कारण कुथम्बलम लंबे समय तक निष्क्रिय रहता है। इससे इसका खराब रख-रखाव होता है और परिणामस्वरूप इसका पतन होता है। यह लकड़ी से बनी एक विरासत संरचना है। केंद्र की सहायता से इसकी मरम्मत और जीर्णोद्धार किया गया था।

केरल हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी मंदिर की प्रचलित धार्मिक प्रथा में परिवर्तन केवल तंत्री (मुख्य पुजारी) की सहमति से ही किया जा सकता है। कोर्ट ने कूडलमाणिक्यम देवस्वोम प्रबंध समिति के उस निर्णय को रद्द कर दिया, जिसमें अम्मनूर परिवार के सदस्यों के अलावा अन्य हिंदू कलाकारों को त्रिशूर के इरिन्जालाकुडा में मंदिर के कूथम्बलम में कूथु और कूडियाट्टम नृत्य करने की अनुमति दी गई थी।

दरअसल, अम्मनूर परिवार के सदस्यों को कूडलमाणिक्यम मंदिर के कूथम्बलम में कूथु और कूडियाट्टम करने का वंशानुगत अधिकार प्राप्त है। हाई कोर्ट ने कहा कि कुथु और कूडियाट्टम जैसे मंदिर नृत्य धार्मिक और अनुष्ठानिक समारोह हैं। न्यायालय ने कहा कि देवस्वोम प्रबंध समिति तंत्रियों की सहमति के बिना कलाकारों की प्रकृति में बदलाव करने का निर्णय नहीं ले सकती।

न्यायाधीश अनिल के नरेंद्रन और न्यायाधीश पीजी अजितकुमार की खंडपीठ ने अम्मानूर परमेश्वरन चाक्यार द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश जारी किया। यह याचिका अम्मानूर परिवार के अलावा हिंदू कलाकारों के लिए कुथु और कूडियाट्टम प्रदर्शन के लिए कुथम्बलम खोलने के फैसले को चुनौती दी गई थी। अदालत ने कहा कि अम्मानूर परिवार के प्रथागत अधिकार में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।

न्यायाधीश ने कहा कि कुडलमाणिक्यम अधिनियम 2005 की धारा 10 के तहत प्रबंध समिति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह इस प्रथा को बिना किसी चूक के जारी रखे। अधिनियम की धारा 35 के प्रावधानों में तंत्रियों का निर्णय अंतिम है। न्यायाधीशों ने कहा कि इसकी अनदेखी करते हुए प्रबंध समिति ने 19 फरवरी 2022 को आयोजित बैठक में अन्य हिंदू कलाकारों को भी कुथम्बलम में प्रदर्शन की अनुमति दी।

इस मामले में प्रबंध समिति ने तर्क दिया कि अम्मानूर परिवार के सदस्यों द्वारा प्रदर्शन वर्ष में कुछ ही दिनों तक सीमित रहता है। इसके कारण कुथम्बलम लंबे समय तक निष्क्रिय रहता है। इससे इसका खराब रख-रखाव होता है और परिणामस्वरूप इसका पतन होता है। यह लकड़ी से बनी एक विरासत संरचना है। केंद्र की सहायता से इसकी मरम्मत और जीर्णोद्धार किया गया था।

इस पर अदालत ने कहा कि दर्शकों को कूथम्बलम के अंदर जाने की अनुमति देते समय मंदिर में पालन किए जाने वाले किसी भी धार्मिक और प्रथागत अनुष्ठान का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। इसके बाद केरल हाई कोर्ट ने मंदिर प्रबंध समिति के उस निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें अन्य हिंदू कलाकारों को प्रदर्शन की अनुमति दी गई थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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