सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मंगलवार (5 नवंबर 2024) को कहा कि अनुच्छेद 39(B) के तहत सभी निजी संपत्तियों को ‘सामुदायिक संसाधन’ नहीं माना जा सकता, जिसे सरकार जब चाहे ‘सामान्य भलाई’ के लिए ले ले। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक संसाधन के लिए किसी निजी संपत्ति को सार्वजनिक उपयोग योग्य बनाने के लिए पहले उसे कुछ परीक्षणों को पूरा करना होगा।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली जस्टिस हृषिकेश रॉय, बीवी नागरत्ना, सुधांशु धूलिया, जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, राजेश बिंदल, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह वाली संविधान पीठ ने इस पर फैसला सुनाया। इस मामले में कुल तीन फैसले लिखे गए हैं, जिसमें CJI चंद्रचूड़ ने 6 अन्य न्यायाधीशों के साथ बहुमत से यह फैसला सुनाया।
वहीं, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने बहुमत से आंशिक रूप से सहमति व्यक्त की और जस्टिस धूलिया ने इस पर अपनी असहमति जताई। CJI चंद्रचूड़ की बहुमत वाली पीठ पीठ ने कहा, “हम मानते हैं कि किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाले प्रत्येक संसाधन को केवल इसलिए समुदायिक संसाधन नहीं माना जा सकता, क्योंकि वह भौतिक आवश्यकताओं की शर्त को पूरा करता है।”
कोर्ट ने कहा, “अनुच्छेद 39(बी) के अंतर्गत आने वाले संसाधन के बारे में जाँच विवाद-विशिष्ट होनी चाहिए और संसाधन की प्रकृति, विशेषताओं, समुदाय की भलाई पर संसाधन के प्रभाव, संसाधन की कमी और निजी खिलाड़ियों के हाथों में ऐसे संसाधन के केंद्रित होने के परिणामों जैसे कारकों की एक गैर-संपूर्ण सूची होनी चाहिए। इस न्यायालय द्वारा विकसित सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत भी उन संसाधनों की पहचान करने में मदद कर सकता है, जो समुदाय के भौतिक संसाधन के दायरे में आते हैं।”
वहीं, अपना फैसला पढ़ते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि उन्होंने कुछ मुद्दों पर सीजेआई के नेतृत्व वाले बहुमत से सहमति जताई थी और जस्टिस धूलिया के फैसले के जवाब में कुछ राय लिखी। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “निजी स्वामित्व वाले भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण वाले संसाधनों को सामुदायिक संसाधनों में किस तरह बदला जाए, जिससे आम लोगों की भलाई के लिए सर्वोत्तम तरीके से किया जा सके, यही मेरे फैसले का सार है।”
फैसले पर असहमति जताते हुए जस्टिस धूलिया ने कहा कि भौतिक संसाधनों को कैसे नियंत्रित एवं वितरित किया जाए, यह देखना संसद का विशेषाधिकार है। बता दें कि 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने 2 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दरअसल, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए दो विरोधी विचारों के संदर्भ में उत्पन्न हुआ।
क्या है मामला?
इस मामले में मुख्य याचिका मुंबई स्थित संपत्ति स्वामियों के संघ (POA) द्वारा 1992 में दायर की गई थी। पीओए ने महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) अधिनियम के अध्याय VIII-A का विरोध किया था। यह कानून सरकार को उन भवनों और जमीन, जिस पर वे निर्मित हैं, उसे अधिग्रहित करने का अधिकार देता है, यदि उसमें रहने वाले 70% लोग जीर्णोद्धार के लिए ऐसा अनुरोध करते हैं।
अध्याय VIIIA में सरकार को संबंधित परिसर के लिए मासिक किराए के सौ गुना के बराबर दर पर भुगतान की आवश्यकता होती है। अधिनियम की धारा 1A में कहा गया है कि इसे संविधान के अनुच्छेद 39(बी) को लागू करने के लिए बनाया गया है। अधिनियम। की धारा 1A को 1986 के संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया है। इसमें पूरा संदर्भ संविधान के अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या से संंबंधित था।
कर्नाटक राज्य बनाम रंगनाथ रेड्डी एवं अन्य (1978) में दो निर्णय दिए गए थे। न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर द्वारा दिए गए निर्णय में कहा गया था कि समुदाय के भौतिक संसाधनों में सभी संसाधन शामिल हैं – प्राकृतिक और मानव निर्मित, सार्वजनिक और निजी स्वामित्व वाले। न्यायमूर्ति उंटवालिया द्वारा दिए गए दूसरे निर्णय में अनुच्छेद 39(बी) के संबंध में कोई राय व्यक्त करना आवश्यक नहीं समझा गया।
हालाँकि, निर्णय में कहा गया कि अधिकांश जज न्यायमूर्ति अय्यर द्वारा अनुच्छेद 39(बी) के संबंध में लिए गए दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं। न्यायमूर्ति अय्यर द्वारा लिए गए दृष्टिकोण की पुष्टि संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (1982) के मामले में संविधान पीठ ने की थी। मफतलाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम भारत संघ के मामले में एक निर्णय द्वारा भी इसकी पुष्टि की गई थी।
वर्तमान मामले में सात न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 39(बी) की इस व्याख्या पर इसे नौ जजों की पीठ के पास पुनर्विचार किए भेज दिया। पीठ ने कहा- “हमें इस व्यापक दृष्टिकोण को साझा करने में कुछ कठिनाई है कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत समुदाय के भौतिक संसाधन निजी स्वामित्व वाली चीज़ों को कवर करते हैं।” तदनुसार, मामले को 2002 में नौ न्यायाधीशों की पीठ को भेजा गया था।
अपीलकर्ताओं का तर्क
अपीलकर्ताओं का तर्क यह था कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत ‘भौतिक संसाधन’ शब्द की व्याख्या किसी भी ऐसे संसाधन के रूप में की जानी चाहिए जो समुदाय की व्यापक भलाई के लिए वस्तुओं या सेवाओं के माध्यम से धन पैदा करने में सक्षम हो। यदि कानून का उद्देश्य ‘भौतिक संसाधनों’ के अर्थ में निजी संसाधनों को शामिल करना था तो मसौदा तैयार करने वाले ने भविष्य में किसी भी संभावित गलत व्याख्या से बचने के लिए ऐसा किया होता।
वहीं, भारत सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या निरंतर विस्तारित हो रहे संवैधानिक सिद्धांतों के दृष्टिकोण से होनी चाहिए, न कि किसी विचारधारा से। संसाधन को समझने के संदर्भ में केंद्र सरकार ने आग्रह किया कि यह समुदाय की गतिशील क्रिया है, जो ‘भौतिक संसाधन’ के अर्थ को आकार देती हैं।
केंद्र ने कहा कि एक समुदाय में अलग-अलग व्यक्तियों के बीच अलग-अलग अंतःक्रियाएँ और व्यापारिक लेन-देन होते हैं। यह एक समुदाय की कुल संपत्ति का योग बनाता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने आर्थिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से योगदान देता है। इस प्रकार अनुच्छेद 39बी के तहत ‘संसाधन’ का अर्थ एक सामान्य आर्थिक आधार है।
संविधान के अनुच्छेद 39(B) को लेकर असमंजस
इससे संबंधित याचिकाएँ सबसे पहले 1992 में आई थीं। इसके बाद साल 2002 में इसे नौ जजों की पीठ के पास भेज दिया गया था। लगभग 22 साल बाद इस पर फैसला आया है। इसमें तय किया जाने वाला मुख्य प्रश्न यह है कि क्या अनुच्छेद 39(बी) (राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में से एक) में कही गई बातों को लेकर है।
राज्य के नीति निर्देश सिद्धांतों से जुड़ी संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) में कहा गया है कि सरकार को सामुदायिक संसाधनों को सामान्य हित यानी सार्वजनिक हित के लिए निष्पक्ष रूप से साझा करने के लिए नीतियाँ बनानी चाहिए। इसमें इस पर सवाल था कि समुदाय के भौतिक संसाधन में निजी स्वामित्व वाले संसाधन शामिल हैं और क्या सरकार किसी भी निजी संपत्ति को सार्वजनिक हित के नाम पर ले सकती है?
अनुच्छेद 39(बी) में इस प्रकार लिखा है: “राज्य, विशेष रूप से, अपनी नीति को इस प्रकार निर्देशित करेगा कि – (बी) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित किया जाए कि यह सामान्य भलाई के लिए सर्वोत्तम हो।”