मद्रास हाई कोर्ट ने अपने एक हालिया निर्णय में कहा है कि एक मुस्लिम मर्द का दूसरा निकाह करना अपनी पहली बीवी से ‘मानसिक क्रूरता’ जैसा है। हालाँकि मुस्लिम पसर्नल लॉ के कारण अदालत ने माना कि उसे दूसरा निकाह करने से रोका नहीं जा सकता। इसी मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने शरिया काउंसिल को कानूनी अधिकार नहीं होने की बात कहते हुए कहा था कि वह तलाक का प्रमाण-पत्र जारी नहीं कर सकती है।
इस मामले में शौहर ने ही हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की थी। उसने निचली अदालत के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उसे पहली बीवी को गुजारा-भत्ता देने का आदेश दिया गया था। शौहर का कहना था कि दूसरे निकाह से पहले ही उसका पहला निकाह टूट गया था।
Muslim man entering into second marriage is cruelty to first wife: Madras High Court orders ₹5 lakh compensation to wife
— Bar and Bench (@barandbench) November 6, 2024
report by @ummar_jamal https://t.co/hKRcDNTPcv
इसे साबित करने के लिए उसने शरिया काउंसिल द्वारा तलाक का जारी किया गया सर्टिफिकेट भी लगाया था। लेकिन हाई कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि जब तक अदालत आदेश नहीं देती पहला निकाह भी मान्य रहेगा। इसी आधार पर उसे पहली बीवी को 5 लाख रुपया मुआवजा और नाबालिग बच्चे के भरण-पोषण के लिए हर महीने 25 हजार रुपए देने का आदेश दिया है।
फैसला सुनाते हुए जस्टिस न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने कहा कि शौहर के दोबारा निकाह के कारण पहली बीवी को भावनात्मक तौर पर बेहद दुख और दर्द हुआ है। उन्होंने कहा, “मुस्लिम होने के नाते याचिकाकर्ता दूसरा निकाह करने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन उसे इसका भुगतान करना होगा। उसके दूसरे निकाह से पहली बीवी को काफी दुख हुआ होगा। लिहाजा यह मानसिक क्रूरता है।”
निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए हाई कोर्ट ने माना कि मुस्लिमों को कानूनी तौर पर चार निकाह करने की इजाजत है। लेकिन यह कानूनी अधिकार या स्वतंत्रता उसकी बीवी के अधिकारों को सीमित नहीं करती। भले बीवी उसे दूसरा निकाह करने से नहीं रोक सकती, लेकिन भरण-पोषण का खर्च माँगना उसका अधिकार है। इसे देने से शौहर इनकार नहीं कर सकता।