सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (11 नवंबर 2024) को भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा रिलायंस इन्वेस्टमेंट होल्डिंग्स, मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी और अन्य संस्थाओं के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया। साल 1994 में हुए लेेद-देन में SEBI ने नियमों के उल्लंघन को लेकर यह अपील दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जेबी पारदीवाला और न्यायाधीश आर महादेवन की पीठ ने इस मुद्दे की जाँच करने एवं निर्णय देने में देरी को लेकर SEBI की आलोचना भी की। पीठ ने SEBI से कहा, “आपने अपील 2023 में दायर की और अब नवंबर 2024 चल रहा है। यह लेन-देन भी साल 1994 का है। इसलिए इस मुद्दे को कहीं ना कहीं खत्म करने की जरूरत है।”
बता दें कि 10 दिसंबर 1992 को रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) के शेयरधारकों ने डटैचेबल वॉरंट के साथ गैर-परिवर्तनीय सुरक्षित प्रतिदेय डिबेंचर (NCD) जारी करने की मंजूरी दी थी। RIL ने 12 जनवरी 1994 को 3 करोड़ वॉरंट के साथ 50 रुपए मूल्य के 6 करोड़ NCD 34 संस्थाओं को आवंटित किए। प्रत्येक वॉरंट में धारकों को छह साल के भीतर 150 रुपए भुगतान करने पर RIL के दो इक्विटी शेयर हासिल करने की अनुमति दी।
ये वॉरंट ट्रेडिंग करने योग्य थे और साल 1994 में इन्हें स्टॉक एक्सचेंज में शामिल किया गया था। इसके बाद 7 जनवरी 2000 को RIL बोर्ड ने वॉरंट धारकों को 12 करोड़ इक्विटी शेयर आवंटित किए। नियमों के अनुसार, हर वॉरंट धारक को प्रत्येक 50 रुपए का भुगतान करने पर चार इक्विटी शेयर मिल सकते थे।
रिलायंस ने 28 अप्रैल 2000 को खुलासा किया कि इस आवंटन के कारण 31 मार्च 2000 तक प्रमोटरों और उनके सहयोगियों की शेयरधारिता 6.83 प्रतिशत बढ़ गई थी। SEBI ने शुरुआत में 20 अप्रैल 2000 को इस खुलासे को स्वीकार करते हुए कोई कार्रवाई नहीं की। हालाँकि, 2002 में उसे RIL के प्रमोटरों द्वारा SEBI के नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए एक शिकायत मिली।
SEBI ने लेन-देन की तारीख के 17 साल बाद 2011 में कारण बताओ नोटिस जारी किया। इसके बाद RIL और उसके प्रमोटरों को 5 अगस्त 2011 को मामला निपटाने के लिए एक सहमति पत्र दायर किया। हालाँकि, 18 मई 2020 को इसे सेबी ने खारिज कर दिया। सेबी ने इस मामले पर दोबारा गौर किया और साल 2021 में RIL पर 25 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया।
जुलाई 2021 में प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (SAT) ने इस आदेश को रद्द कर दिया। SAT ने जुर्माना लगाने में देरी के लिए सेबी की आलोचना की। सेबी ने कहा कि अपीलकर्ताओं ने SAST (शेयरों और अधिग्रहणों का पर्याप्त अधिग्रहण) नियमों का उल्लंघन नहीं किया है और सेबी के आदेश को रद्द कर दिया। इसके बाद सेबी को चार सप्ताह के भीतर 25 करोड़ रुपए वापस करने का आदेश दिया था ।