ईरान ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान में उसका प्रभाव है और वो भारत के लिए उस प्रभाव का इस्तेमाल करने के लिए तैयार है। ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने अपने भारत दौरे के दौरान बताया कि उनका देश भारत और तालिबान के बीच बातचीत शुरू करा सकता है। ईरानी विदेश मंत्री ने रायसीना डायलॉग को भी सम्बोधित किया और कई भारतीय नेताओं से भी मुलाक़ात किया। पिछले सप्ताह ईरान के एक प्रतिनिधि-मंडल ने तालिबान के नेताओं से मुलाकात की थी। ईरान भी भारत की तरह ही अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है लेकिन उसने तालिबान के एक धड़े से बातचीत शुरू कर दी है।
ईरानी विदेश मंत्री ने कहा की अफ़ग़ानिस्तानी तालिबान में उनके कुछ प्रभाव हैं। उन्होंने कहा कि ईरानी सरकार अपने उस प्रभाव का इस्तेमाल अफ़ग़ानिस्तान के लिए करना चाहेगी लेकिन अगर भारत चाहता है तो उसके लिए भी ऐसा करने में उन्हें ख़ुशी मिलेगी।
हलाँकि भारत द्वारा इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के कम ही आसार हैं। कई ख़बरों में कहा गया है कि इस मामले में भारत हमेशा अफ़ग़ानिस्तान सरकार की तरफ ही है और तालिबान से किसी भी तरह की बातचीत अभी नही की जाएगी। विश्लेषकों का ये भी मानना है की भारत ने पिछले 17 सालों में तालिबान में कुछ सम्पर्क बनाए हैं लेकिन वो सम्पर्क कितने गहरे हैं, इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है।
ज्ञात हो कि अमेरिका द्वारा अफ़ग़ानिस्तान में अपनी उपस्थिति घटाने और वहाँ स्थित अपने सेना के जवानों की संख्या कम करने की ख़बरों के बाद वहाँ कई तालिबान लड़ाके वापस आ गए हैं और उन्होंने फिर से अपने पाँव पसारने शुरू कर दिए हैं जिस से भारत जैसे देशों की चिंता बढ़ गई है। भारत अफ़ग़ानिस्तान में वहाँ के लोगों के लिए कई तरह के जन-कल्याणकारी योजनाएँ चला रहा है और शांति स्थापना की प्रक्रिया में अफ़ग़ानिस्तान सरकार के साथ कदमताल कर काम कर रहा है।
अमेरिका ने ही तालिबान से बातचीत की प्रक्रिया शुरू कर दी है आज इसी सिलसिले में दोनों पक्षों के बीच चौथे दौर की बैठक होने वाली है। कुछ दिनों पहले पाकिस्तान की मध्यस्थता में दोनों पक्षों के बीच अबु-धाबी में दो दिनों तक बैठकों का दौर चला था। हलाँकि अब कई देश तालिबान से बातचीत कर रहे हैं या फिर उसके लिए तैयार हैं लेकिन भारत इस मामले में आशंकित है। भारत तालिबान के भीतर पाकिस्तान के बढ़ते दबदबे से ख़ासा चिंतित है और इसी कारण उसने तालिबान के साथ कई देश के हुए बैठक में अपने वरिष्ठ अधिकारीयों को नहीं भेजा था। उस बैठक में भारत ने गैर आधिकारिक तौर पर हिस्सा लिया था।
ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के रिश्ते पूर्व में काफी तल्ख़ रहे हैं क्योंकि ईरान अपने देश से सटे कुछ इलाके में तालिबान खिलाफ रहा है लेकिन पाकिस्तान और तलिबान के रिश्ते हमेशा से सही रहे हैं। तालिबान से अमेरिका से बातचीत करा कराने की प्रक्रिया में शामिल पाकिस्तान इसे अपनी कूटनीतिक जीत के तौर पर पेश करता है। भारत दौरे पर आए ईरानी मंत्री के इस प्रस्ताव के बाद अब कयास लगाने जाने लगे हैं कि क्या अब भारत आधिकारिक तौर पर तालिबान से बातचीत में शामिल होगा या नहीं?