विकिलीक्स के एक केबल को खँगालने से पता चलता है कि जवाहर लाल नेहरू की सिर्फ़ कश्मीर नीति ही नहीं, बल्कि सिक्किम को लेकर भी उनकी रणनीति अस्पष्ट थी। बता दें कि 15 अगस्त 1947 को जब भारत आज़ाद हुआ, तब सिक्किम भारतीय गणराज्य का हिस्सा नहीं था। सिक्किम को भारत के आज़ाद होने के 28 सालों बाद भारतीय गणराज्य में शामिल किया गया था जिसके बाद यह भारत का 22वाँ राज्य बना।
इसकी पूरी कहानी भी बहुत ही रोचक है। और जानने लायक बात यह भी है कि इस पूरी प्रक्रिया पर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका नज़र बनाए हुआ था। जैसा कि सब जानते हैं, अमेरिका का दुनिया के सभी देशों चल रहे महत्वपूर्ण घटनक्रमों पर अपनी नज़र बनाए रखने का पुराना इतिहास रहा है। दशकों से अपने-आप को विश्व में बिग-ब्रदर की तरह पेश करने वाले अमेरिका की भारतीय सिक्किम नीति पर भी पूरी तरह से नजर थी और इस बारे में वो पल-पल की जानकारी हासिल कर रहा था।
हम विकिलीक्स के जिस केबल की बात करने जा रहे हैं उससे पता चलता है कि दिल्ली, कोलकाता, हॉन्गकॉन्ग, लंदन, काठमांडू और न्यूयॉर्क में स्थित अमेरिकी प्रतिनिधिगण इस मामले को लेकर आपस में काफ़ी बातचीत कर रहे थे। अर्थात ये, कि इन घटनाक्रमों पर उनकी पैनी नजर थी और वो इस मामले से जुड़ी हर जानकारी आपस में साझा कर रहे थे।
शुरुआत में अमेरिकी अधिकारियों का मानना था कि सिक्किम हमेशा भारत द्वारा संरक्षित राज्य बना रहेगा और भारत कभी उसे अपने गणराज्य में शामिल करने की कोशिश नही करेगा। इस केबल से यह भी ख़ुलासा होता है कि अमेरिका इस बात पर विचार कर रहा था कि भारत द्वारा सिक्किम को अपना हिस्सा बनाने की प्रक्रिया पर सार्वजनिक तौर पर कोई बयान दिया जाए या नहीं, या फिर इस पर कोई एक्शन लिया जाए या नहीं।
नेहरू और पटेल: 3 साल बनाम 17 साल
जवाहर लाल नेहरू की कश्मीर नीति को लेकर अक्सर तरह-तरह की बातें होती रही है और कहा जाता रहा है कि कश्मीर मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले कर जाना नेहरू की बड़ी भूल थी। ये एक ऐसी भूल थी जिसकी सज़ा आज तक भारत भुगत रहा है। देश में कई सरकारें आईं और गईं लेकिन कश्मीर मसला ज्यों का त्यों बना रहा। वहीं, आज़ादी के बाद भारत के सैकड़ों रियासतों को एक करने वाले सरदार पटेल ने जिस भी मसले को अपने हाथ में लिया, उन्होंने उसे पूरा किया। सरदार पटेल ने जूनागढ़, त्रवनकोर और हैदराबाद सहित कई तत्कालीन रियासतों को भारत का अंग बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज ये सभी भारत के अभिन्न अंग हैं और कश्मीर जैसी समस्या भारत के किसी अन्य क्षेत्र में देखने को नहीं मिलती। बता दें कि अपने 17 सालों के प्रधानमंत्रीत्व में जवाहर लाल नेहरू ने विदेश मंत्रालय भी अपने पास ही रखा था।
सिक्किम की कहानी वैसे तो भारत की आजादी के बाद ही शुरू हो जाती है लेकिन इसे भारतीय गणराज्य में मिलाने की प्रक्रिया पर विचार-विमर्श 1962 में हुए युद्ध के बाद शुरू किया गया। भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत को मिली हार का एक कारण उत्तर-पूर्व में भारतीय सेना के पहुँचने में हो रही कठिनाइयों को भी माना गया। सिक्किम के राजा चोग्याल का चीन की तरफ ज्यादा झुकाव था और अपने विस्तारवादी चरित्र के कारण जाना जाने वाला ड्रैगन अपनी सीमा से सटे भारत के हर एक राज्य को हथियाना चाहता था। आज भी चीन की वही नीति है जिसके कारण अक्सर डोकलाम जैसे विवाद खड़े हो जाते हैं। इसे पंडित नेहरू की अदूरदर्शिता कहें या फिर उनके निर्णय लेने की क्षमता को सवालों के घेड़े में खड़ा किया जाए, उन्होंने अपनी उत्तर-पूर्व नीति अस्पष्ट रखी।
562 छोटी-बड़ी रियासतों को भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनाने वाले सरदार पटेल की दिसंबर 1950 में मृत्यु हो गई। आज़ादी के बाद सिर्फ साढ़े तीन सालों में उन्होंने देश के भूगोल को इस तरह से बदल दिया था जिस से भारत की एकता और अखंडता अनंतकाल तक बनी रहे। लेकिन कुछ ऐसे राज्य भी थे जिन्हे देश के प्रथम गृह मंत्री पटेल की मृत्यु के बाद भारत का हिस्सा बनाया गया। पुर्तग़ालियों के कब्ज़े वाला गोवा, फ्रांस के नियंत्रण वाले पुड्डूचेरी और चोग्याल शासित सिक्किम उन राज्यों में से एक थे। गोवा और पुड्डूचेरी समुद्र के किनारे स्थित थे और इनकी भौगोलिक स्थित ऐसी थी कि इन्हे अंततः भारत का अंग ही बनना था। लेकिन दूसरी तरफ अगर सिक्किम की बात करें तो उसका महत्व समझने के लिए हमें उसके भूगोल को समझना होगा।
सिक्किम और उत्तर-पूर्व में भारत की नाजुक भौगोलिक स्थिति
भारत का उत्तर उत्तर-पूर्वी हिस्सा सामरिक और रणनीतिक रूप से देश का एक महत्वपूर्ण अंग है। यहाँ अभी भारत के आठ राज्य स्थित हैं- अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय व सिक्किम। सिक्किम के उत्तर और उत्तर-पूर्व में तिब्बत स्थित है जिस पर चीन अपना कब्ज़ा जताता रहा है। राज्य के पूर्व में भूटान है जो भारत का मित्र राष्ट्र है लेकिन चीन उसे लुभाने की पूरी कोशिश करता रहा है। सिक्किम के पश्चिम में नेपाल है जहाँ के सत्ताधारियों का झुकाव समय के हिसाब से कभी भारत तो कभी चीन की तरफ रहता है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल की सीमा भी सिक्किम से लगती है। इस तरह से हम देखें तो सिक्किम की भौगोलिक स्थिति ऐसी है जिस पर अगर चीन का नियंत्रण होता तो भारत सामरिक रूप से दक्षिण एशिया में अलग-थलग पड़ चुका होता।
शेष भारत को उत्तर-पूर्वी भारत से जो हिस्सा जोड़ता है उसे हम सिल्लीगुड़ी नेक कहते हैं। सबसे संकीर्ण स्थिति में इसकी चौड़ाई सिर्फ 17 किलोमीटर रह जाती है। भारत जैसे एक बड़े देश के लिए ये एक बहुत ही छोटा क्षेत्र है और इसे संभालना उस से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है। सिल्लीगुड़ी नेक को ‘चिकेन्स नेक’ भी कहते हैं। सिक्किम के चीन की तरफ झुकाव और भारतीय गणराज्य का हिस्सा न होने कारण चुम्बी घाटी के पश्चिम में भारत की स्थिति काफ़ी कमज़ोर थी जिसका परिणाम उसे 1965 के भारत-चीन युद्ध में भगतना पड़ा।
इसके बाद ही जवाहर लाल नेहरू नीत केंद्र सरकार को इसका महत्व समझ में आया और उन्होंने सिक्किम के भारत में विलय पर विचार-विमर्श शुरू किया। लेकिन अब काफ़ी देर हो चुकी थी और युद्ध में हार के कारण देश को ख़ासा नुकसान भी उठाना पड़ा था। प्रधानमंत्री नेहरू ने इस पर सोचा तो ज़रूर लेकिन वो अपनी ज़िंदगी में सिक्किम को भारतीय गणराज्य का हिस्सा नहीं बना पाए।
नेहरू ने ठुकराई पटेल की सलाह?
अब सवाल ये उठता है कि क्या पंडित नेहरू ने सिक्किम के लोगों के मनोभाव के अनुसार निर्णय न ले कर राज्य को भारत को विलय कराने का मौक़ा गँवा दिया? ये सवाल ही हमें विकिलीक्स के उस ख़ुलासे की तरफ ले जाता है जिसकी बात हम यहाँ करने वाले हैं। गुप्त सूचनाओं को सार्वजनिक कर उसका खुलासा करने वाली NGO विकिलीक्स विश्व की एक प्रसिद्ध संस्था है जिसके खुलासों के कारण अमेरिका तक में भी राजैनितक उथल-पुथल मच चुकी है। विकिलीक्स के इस केबल के अनुसार भारत में स्थित अमेरिकी राजनयिकों ने USA के स्टेट डिपार्टमेंट को भेजी गई एक जानकारी में कहा कि अगर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सरदार पटेल की बात मान ली होती हो सिक्किम 25 साल पहले ही भारत का अंग बन चुका होता।
कम से कम अमेरिका का तो यही मानना है कि अगर नेहरू ने, भावना के अनुकूल, सरदार पटेल के कहे अनुसार सिक्किम को विशेष राज्य का दर्जा दे दिया होता तो सिक्किम 1975 की बजाय 1950 में ही भारत का अंग बन चुका होता। ये भी संभावना थी कि अगर 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान सिक्किम भारत का हिस्सा होता तो शायद तस्वीर कुछ और भी हो सकती थी।
इसके अलावा अमेरिका का ये भी मानना था कि भारत ने सिक्किम के विलय (annexation) के लिए कुछ ख़ास नहीं किया बल्कि वो तो सिक्किम की जनता थी जिसने उचित निर्णय लिया और भारत ने सिर्फ ‘परिस्थिति’ का फायदा उठाया। ये सूचनाएँ भारत में स्थित अमेरिकी राजनयिकों द्वारा अपने देश में तब भेजी गई थी जब इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में भारत सरकार ने ये फ़ैसला ले लिया था कि सिक्किम में सेना भेजी जाएगी। ये पूरा घटनाक्रम भी काफ़ी रोचक है और इसमें कई ट्विस्ट्स और टर्न्स हैं।
उत्तर-पूर्वी भारत के लिए नेहरू के ढुलमुल रवैये को लेकर सरदार पटेल ने उन्हें कई बार आगाह किया था। दूरदर्शी पटेल ने नवंबर 7, 1950 को नेहरू को लिखे पत्र में कहा था;
“आइए हम संभावित उपद्रवी सीमा की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा करें। हमारे उत्तरी और उत्तर-पूर्वी दृष्टिकोण में नेपाल, भूटान, सिक्किम, दार्जिलिंग और असम के आदिवासी क्षेत्र शामिल हैं। संचार की दृष्टि से ये एक बहुत ही कमजोर स्पॉट है। यहाँ निरंतर रक्षात्मक पंक्ति उपस्थित नहीं है। घुसपैठ की भी असीमित गुंजाइश है।”
अपने इस पत्र में सरदार पटेल ने उत्तर-पूर्वी सीमा के लिए “potentially troublesome” शब्द का प्रयोग किया है जिस से यह पता चलता है कि उन्हें कहीं न कहीं इस बात का अंदाज़ा था कि इस सीमा पर आगे चल कर मुश्किलें खड़ी हो सकती है। साथ ही उन्होंने वहाँ संचार व्यवस्था तगड़ी करने की भी सलाह दी थी। इस से पता चलता है कि पटेल उस क्षेत्र में सड़कों और इंफ़्रास्ट्रक्चर का विकास करना चाहते थे ताकि उत्तर-पूर्व के राज्य शेष भारत से कटे नहीं रहें और सुरक्षाबलों को भी आवागमन में किसी भी प्रकार की मुश्किलों का सामना न करना पड़े।
सरदार पटेल ने इस पत्र में उस क्षेत्र में कम्युनिकेशन को मजबूत करने की सलाह दी थी। सरदार पटेल ने जिस घुसपैठ का डर इस पत्र में जताया था, उसके परिणाम हमें डोकालाम के रूप में देखने को मिले। तभी देश के तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि सरदार पटेल को इस बात का 1950 में ही अंदाज़ा लग गया था कि इस सीमा पर आगे चल कर कुछ गड़बड़ हो सकती है। पटेल जैसे अनुभवी, दूरदर्शी और क्षमतावान नेता का ये डर जायज़ भी था।
सिक्किम के बौद्ध शासक चोग्याल ने एक अमरीकी महिला से शादी की थी जो अपने रहस्यमयी व्यवहार के कारण जानी जाती थी। वो काफ़ी महत्वाकांक्षी थीं और चोग्याल ने उनके प्रभाव में आकर ही भारत से दूरी बनानी शुरू कर दी थी। 70 के दशक के शुरूआती दौर में ही सिक्किम में वहाँ के शासकों के ख़िलाफ़ चल रहे विरोध प्रदर्शनों की गति काफ़ी तेज हो गई थी जिसके बाद राज्य की लोकतंत्र समर्थक पार्टियों ने भारत से हस्तक्षेप की माँग की। आख़िरकार अप्रैल 1975 में भारतीय सेना ने चोग्याल के राजमहल पर दस्तक दी और भारत सरकार ने सिक्किम में एक जनमत संग्रह कराया जिसमे 97.5 प्रतिशत लोगों ने भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनने के लिए हामी भरी। अगले ही महीने सिक्किम औपचारिक रूप से भारत का 22वाँ राज्य बन गया।