लंबे समय के इंतज़ार के बाद चिनूक हेलिकॉप्टर को भारतीय वायु सेना में शामिल कर लिया गया है। इससे भारतीय वायु सेना को और अधिक मज़बूती मिल गई है। चंडीगढ़ में एयर फोर्स चीफ बीएस धनोआ की मौजूदगी में आज 4 चिनूक हेलिकॉप्टर के पहले यूनिट को वायु सेना में शामिल किया गया। इस चिनूक का नाम CH-47 एफ है।
इस मौक़े पर धनोआ ने कहा कि देश इस वक्त सुरक्षा के स्तर पर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। विभिन्न क्षेत्रों में हमें इसके लिए अलग-अलग क्षमता से भरपूर उपकरणों की ज़रूरत है। चिनूक को कुछ विशेष क्षमताओं से लैस किया गया है। यह राष्ट्र के लिए धरोहर है। इसके साथ ही चिनूक हेलिकॉप्टर की ताक़त और उपयोगिता को बताते हुए वायु सेना प्रमुख ने कहा कि चिनूक हेलिकॉप्टर सैन्य अभियानों में प्रयोग किया जा सकता है। इसका प्रयोग सिर्फ़ दिन में ही नहीं बल्कि रात में भी हो सकता है। इसकी दूसरी यूनिट पूर्व में दिनजान (असम) में होगी। चिनूक को वायु सेना में शामिल करना ठीक वैसे ही गेमचेंजर साबित होगा, जैसे फाइटर क्षेत्र में राफ़ेल को शामिल करना।
Air Chief Marshal BS Dhanoa: Chinook helicopter can carry out military operations, not only in day but during night too; another unit will be created for the East in Dinjan (Assam). Induction of Chinook will be a game changer the way Rafale is going to be in the fighter fleet. pic.twitter.com/TxJgJt8h5P
— ANI (@ANI) 25 March 2019
बता दें कि चिनूक एक मल्टीमिशन श्रेणी का हेलिकॉप्टर है। जिसका इस्तेमाल सैनिकों, हथियारों, उपकरण और ईंधन ढोने में किया जाता है। यह 9.6 टन वज़न उठा सकता है, जिसकी वजह से यह भारी मशीनरी, तोप और बख्तरबंद गाड़ियाँ लाने-ले जाने में सक्षम है। इसका उपयोग मानवीय और आपदा राहत अभियानों में भी किया जाता है। राहत सामग्री पहुँचाने और बड़ी संख्या में लोगों को बचाने में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। भारतीय वायु सेना के बेड़े में अब तक रूसी मूल के भारी वजन उठाने वाले हेलिकॉप्टर ही रहे हैं, लेकिन पहली बार वायु सेना को अमेरिका निर्मित हेलिकॉप्टर मिले हैं।
ग़ौरतलब है कि भारत ने सितंबर 2015 में विमान निर्माता कंपनी बोइंग से 15 ‘CH-47 एफ’ चिनूक हेलिकॉप्टर ख़रीदने के सौदे को अंतिम रूप दिया था। इसके साथ ही भारतीय वायु सेना के हेलिकॉप्टर के पायलटों को पिछले साल अक्टूबर में अमेरिका के डेलावर में चिनूक हेलिकॉप्टरों को उड़ाने का प्रशिक्षण लेने के लिए भी भेजा गया था।