विश्व में सबसे अधिक धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशक गीताप्रेस ने सोशल मीडिया पर कुछ भ्रामक सूचनाओं को रोकने के लिए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी किया है। जिसके अनुसार प्रेस ने आर्थिक संकट के चलते लोगों से चंदा माँगने वाले दावे को खारिज कर दिया है। प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि गीताप्रेस का काम पहले की ही तरह पूरी कुशलता से चल रहा है।
मानवमात्रके लिए समाज सुधार एवं चरित्र निर्माण सम्बन्धी साहित्य प्रकाशनमें सन् १९२३ से सेवारत् pic.twitter.com/j3afLAHbJk
— गीताप्रेस , गोरखपुर (@GitaPress) September 3, 2020
दरअसल, सोशल मीडिया पर चल रही फर्जी अफवाहों का खंडन करते हुए गीताप्रेस प्रबंधन ने भी बुधवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी किया है। ट्विटर सहित सभी सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए प्रेसनोट में बताया गया, “कुछ संगठित क्षेत्र के लोग सोशल मीडिया पर आर्थिक संकट के कारण गीताप्रेस के बंद होने की अफवाह फैला रहे हैं। गीताप्रेस की मदद के नाम पर लोगों से ठगी की जा रही है। गीताप्रेस ने कई बार सोशल मीडिया / प्रिंट मीडिया के माध्यम से इसका खंडन किया है, फिर भी गीताप्रेस के शुभचिंतक भी सही जानकारी के अभाव में इसे गीताप्रेस के हित मे जानकर ऐसी झूठी खबर को फारवर्ड कर देते हैं। गीताप्रेस का काम के सुचारु रूप से चल रहा है। संस्था किसी से भी किसी प्रकार का अनुदान नहीं लेती है।”
गीताप्रेस प्रबंधन ने लोगों से निवेदन किया, “इस बात को ध्यान में रखते हुए गीताप्रेस की इस प्रामाणिक सूचना का इतना प्रचार प्रसार करें कि गीताप्रेस के विषय मे इस तरह के भ्रामक प्रचार करने वालों के निहित स्वार्थ की कोशिश नाकाम हो जाए।”
वहीं संस्थान की तरफ से सोशल मीडिया पर चंदा माँगने वाली अफवाहों का ट्रस्टी देवीदयाल अग्रवाल ने भी खंडन किया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन की वजह से गीताप्रेस का काम भी रुक गया था। जिसकी वजह से कल्याण पत्रिका के अप्रैल, मई और जून के अंक ही प्रकाशित हो पाए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इतने दिन चले लॉकडाउन की वजह से प्रेस में पुस्तकों का स्टाक लगभग खत्म हो चुका है। महामारी के भय से माँग के अनुसार पुस्तकों की छपाई नहीं हो पा रही हैं। साथ ही गीताप्रेस के संबंध में ट्वीटर पर चले अभियान के बाद ऑनलाइन पुस्तकों की डिमांड और बढ़ गई है।
गीताप्रेस लगभग 500 ऑनलाइन आर्डर की पुस्तकें पाठकों तक नहीं भेज पा रहा है। इतना ही नहीं महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक किताबें जैसे कि रामायण गीता आदि के भी स्टॉक 80 फीसद तक कम हो गए है। वहीं स्पेशल एडिशन मोटे अक्षरों वाली गीता व सुंदर कांड मूल की किताबें संस्थान में खत्म भी हो चुकी है। मिली जानकारी के अनुसार ऑनलाइन के अलावा दुकानदारों द्वारा आर्डर लगभग 2 लाख पुस्तकों की माँग की सप्लाई भी प्रेस नहीं कर पा रहा है। वहीं अगर रेलवे स्टेशन पर भी दुकानें खुल जाएगी तो यह संकट और भी बढ़ जाएगा।
गीताप्रेस के उत्पाद प्रबंधक लालमणि तिवारी ने दैनिक जागरण को जानकारी दी कि पुस्तकों की माँग लगातार आ रही है लेकिन हम आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। आर्डर लंबित पड़े हुए हैं। शनिवार की बंदी खत्म होने से उत्पादन लगभग 16 फीसद बढ़ जाएगा।