तर्क १ – राहुल गाँधी शायद चुप हो जाएँ और ध्वनि प्रदूषण कम करें
एक समय था जब राहुल गाँधी जी अधिकतर समय ननिहाल वगैरह घूम लिया करते थे और साल में चार बार नज़र आते थे जब मनमोहन जी को उनकी औकात दिखाने की ज़रूरत दिखाई देती थी। पर अब उनको दिन में चार बार नज़र आना पड़ता है रफ़ाल-रफ़ाल जपने, ऊपर से जिस मज़दूर के मुँह पर पहले ऑर्डिनेंस फाड़ के फेंका करते थे, अब उसके बर्थडे पे जबरदस्ती मुँह में केक ठूसना पड़ता है। तीन-चार साल तो राहुल जी ने आलू की फैक्ट्री, मक्डोनल्ड का ढाबा, कोका कोला शिकंजी जैसी भसड़ मचा कर थोड़ा मनोरंजन भी किया, पर अब वो भी नहीं कर रहे।
राहुल जी अगर प्रधानमंत्री बन जाये तो उसका फ़ायदा ये भी है की आपको आपके खुदके शहर गाँव मोहल्ले में बना मोबाइल भी मिल जायेगा। हालाँकि, सुतिया गाँव के लोग शायद ‘MADE IN SUTIYA’ फ़ोन न चाहें। पर रिस्क यह भी है कि अगर राहुल जी ने हर गली में मोबाइल फ़ैक्ट्री नहीं दिए तो हम सबको खुद अपने फ़ोन पे “MADE IN SUTIYA” लेबल लगाना पड़ सकता है।
तर्क २ – अपनी विफलताओं के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराने का मौका फिर से मिल पाए
जब से मोदी जी आए हैं सरकार लूट खसोट छोड़ के काम में लग गई है। जब ससुरी सरकार अपना काम करने लगेगी तो आम आदमी के पास भी काम करने के आलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचता। अब आपकी बात तो मैं नहीं कर सकता पर मैं पुराने वक़्त ज़रूर याद करने लगा हूँ, जब सरकार इतनी निक्कम्मी थी कि किसी भी विषय के लिए उसको गालियाँ दी जा सकती थी। ऐसा करने पर कोई आपको शक की निगाहों से भी नहीं देखता था बल्कि सुनने वाले अपनी तरफ से चार गाली और जोड़ देते थे। सरकार ऐसी होनी चाहिए कि आम आदमी जब रात को थका-हारा घर आए तो कोई हो जिससे गाली दिया जा सके बे-रोकटोक। ये काम कांग्रेस 70 साल से कर रही है और भाजपा इसमें कॉन्ग्रेस को पछाड़ नहीं सकती।
तर्क ३ – लिबरल वामपंथी अख़बार में वही चार घिसी-पिटी ख़बरें बंद हों और नया मसाला आये
हिन्दू-मुस्लिम, दलित, रफ़ाल से मुक्ति मिले। पहले तो कुछ तैमूर बाबा की न्यूज़ फिर भी आ जाती थी मन बहलाने को, पर जैसे इलेक्शन पास आ रहें हैं तैमूर तक को बेरहम पत्रकारों ने अपने पन्नो से निकाल फेका है। मोदी जी जाएँ तो फिर कुछ वरायटी आए। सोनिया जी क्या खाती हैं, क्या पकाती हैं, किस मंत्री पर आक्रोशित हैं, आदि महत्वपूर्ण ख़बरों के बिना जीवन सूना-सूना हो चला है।
तर्क ४ – कुछ बड़े आतंकवादी हमले हों और पाकिस्तान को पकिस्तानियत दिखने का मौक़ा मिले
अगर जैसे चल रहा है वैसे चलता रहा तो जल्द पाकिस्तान खुद भूल जायेगा की उसके अस्तित्व का मक़सद क्या है। साँप का डसना, कुत्ते का भौंकना, केजरीवाल का पगलाना और पाकिस्तान का आतंकवाद करना प्रकृति का नियम है और इसमें अड़ंगा डालना पाप है। राहुल जी इस बात को समझते हैं। राहुल जी सत्ता में आएँगे तो उनका दिया हुआ मैसेज कि ‘हर हमले को हम रोक नहीं सकते’ पाकिस्तान को हौसला देगा की इस तरफ कोई है जो उसकी वेदना समझता है।
तर्क ५ – हम किसी लिस्ट में तो विश्व में अव्वल दर्जा पा सकें
मोदी जी चाहे जो कर ले, भारत कितनी भी तेज गति से अपनी अर्थ-व्यवस्था को आगे बढ़ा ले, कभी इथियोपिया जैसे छोटे देशों की गति से ज़्यादा तेज़ नहीं बढ़ेगा। हो सकता है इस साल भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था बन जाये पर फिर भी तीसरा ही रहेगा।
पर भारत दो लिस्टों में अव्वल आ सकता है, अगर मोदी जी जाएँ और कॉन्ग्रेस आ जाए।
अगर कॉन्ग्रेस वापस आ जाए तो वो इस्लामी देशों से आबादी भर-भर के भारत ला सकती है। इस से हम जल्द ही चीन को आबादी के मामले में पीछे छोड़ देंगे। अगर मोदी जी रहे तो रोहिंग्या, बांग्लादेशी तो वापस भेजे ही जाएँगे बल्कि हो सकता है, आबादी को काबू करने के लिए क़ानून भी ले आएँ। ऐसा हुआ तो भारत किसी चीज़ में अव्वल नहीं आ पाएगा। भारत को कम से कम एक जगह तो अव्वल लाने के लिए मोदी जी का जाना ज़रूरी है।
दूसरा लिस्ट जहाँ हम तुरंत एक नंबर पे हो सकते हैं, वो है घोटाला। कॉन्ग्रेस और सेक्युलर बंधुओं की घोटाला करने की क्षमता पे तो बस UNESCO की मोहर लगना बाकी है वरना भारतवासी तो नाज़ करते आएँ है इनकी इस कला पर 70 साल से।
लगे हाथों, एक और बोनस लिस्ट दिए देता हूँ जहाँ हमारी शान बढ़ जाये अगर मोदी जी जाएँ और राहुल जी आएँ।
ऐसा हुआ तो भारत दुनिया का पहला और एक मात्र देश होगा जिसके प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री बनने के पहले कभी कुछ करने में समय व्यर्थ नहीं किया, सीधा प्रधानमंत्री बने। अंग्रेज़ी में इसे ‘क्लैरिटी ऑफ़ पर्पस’ कहते हैं। मतलब पैदा होने के पहले से तय था कि देश हमारे बाप का ही है तो क्यों अपना और दूसरों का समय व्यर्थ करें कुछ काम करके! इस से पूरी दुनिया में मैसेज जायेगा की सोच में क्लैरिटी होनी चाहिए।
अगर अब भी आप सहमत नहीं होंगे कि मोदी जी को हटाना चाहिए तो आप ज़रूर घनघोर संघी मानसिकता से पीड़ित हैं। JNU जाकर इलाज कराइए। और जो सहमत हो गए उनको सलाम। और राहुल जी को वोट न करना हो तो NOTA ही दबा आएँ, कुल्हाड़ी पैर पर उतनी ही ज़ोर से पड़ेगी और न्यूट्रल का ठप्पा भी बरकरार रहेगा।
जय हिन्द! जय NOTA!