“इन्साफ? आखिर कहाँ है इन्साफ?”, “तुम सब जिम्मेदार हो! क्या एक गरीब-मजलूम का न्याय पर कोई हक़ नहीं?” बाहर से तेज आवाजें आ रही थीं। वैसे तो यमपुरी में दफ्तर की सबसे ऊँची मंजिल का कोने वाला बड़ा केबिन यमराज को सदियों से मिला हुआ था, लेकिन सबसे नीचे के फ्लोर पर चल रही इस चीख-पुकार की आवाज, उनके ना चाहते हुए भी उनके कमरे तक आ ही जाती थी।
ऐसा लग रहा था कि दर्जन भर यमदूत किसी आत्मा से उठा पटक में लगे हुए हैं। बलशाली, दिव्य शक्तियों से लिसे उनके यमदूतों के लिए पापी से पापी, ज़ेवियर्स जैसी, खुद को संत घोषित करने वाली आत्माओं को भी नरक में पटकना चुटकियों का खेल था। फिर ये कौन था जो यमराज के दफ्तर में ही यमदूतों को धोबी-पछाड़ दिए जा रहा था?
चित्रगुप्त के भेजे डैशबोर्ड में जन्म-मृत्यु का हिसाब भी सही सेट नहीं हुआ था और यमराज पहले ही खीजे हुए थे। चिढ़े हुए यमराज अपने केबिन से बाहर निकले और दहाड़े, “क्या मजाक बना रखा है? ये दफ्तर है या कोई मछली बाजार?” चित्रगुप्त घबराए, मगर जब उन्हें दिखा कि ये डाँट उन्हें नहीं नीचे के किन्हीं कर्मचारियों को पड़ रही है, तो वो भी मौके का फायदा उठाकर अधिनस्तों पर धौंस जमाने यमराज के पीछे लपक लिए।
यमराज का पीछा करना बेचारे दुबले-पतले चित्रगुप्त के लिए कोई हँसी खेल न था। कोविड-19 के दौर में वर्क फ्रॉम होम करते जो वजन बढ़ गया था उसे नियंत्रित करने के लिए यमराज आजकल सीढ़ियों से चढ़ते उतरते थे।
पतले दुबले चित्रगुप्त को लगा कि उसके लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल जरूरी नहीं। फिर दौड़कर यमराज को पकड़ लेना भी कोई हँसी खेल नहीं था। सदियों में एकमात्र सावित्री ऐसा कर पाई थी, मगर वो तो स्त्री थी, वो कुछ भी कर सकती है, चित्रगुप्त ने सोचा और लिफ्ट में घुस लिए।
निचली मंजिल पर अफरा-तफरी मची थी। कई मेज-कुर्सियाँ उल्टी पड़ी थीं और एक लाल कमीज और कमर से खतरनाक स्तर तक फिसल चुकी जीन्स पहने कोई जवानी के बीते दिनों तक पहुँचा युवक, एक हाथ उठाए, आँखे बंद किए गला फाड़ कर चीख रहा था – “आजादीईईई! हमें क्या चैये – आजादी! अरे ले के रहेंगे – आजादीईईई” यमदूतों में कोई जमीन पर औंधा पड़ा था तो कोई इस उत्पाती आत्मा को बाँधने के लिए जैसे तैसे दिव्य शक्तियों के संधान में जुटा था।
लिफ्ट से भाग कर निकलते चित्रगुप्त और आँखें लाल किए, हाँफते हुए, सीढ़ियों से पहुँचे यमराज को देखकर यमदूतों को लगा बैकअप फ़ोर्स आई है। “कौन है ये जो इतना बवाल काट रहा है?” कहते कहते यमराज ने कमर पर टंगा यमपाश उतारा और शोर मचा रहे अधेड़ युवक की आत्मा को बाँधकर मेज से नीचे घसीट लिया। उसका गिरना था कि यमदूत उस पर टूट पड़े। दिव्य शक्तियों का संधान छोड़ जूते-चप्पल, लप्पड़-थप्पड़ जिसे जो मिला उसने उसी से मरम्मत शुरू कर दी। “बस करो मूर्खों, इधर लाओ उसे”, यम दोबारा चीखे।
हंगामा कुछ शांत हुआ और जब तक उसे यमराज के सामने पेश किया गया, तब तक किसी ने उसका मुँह मोबिल से काला कर डाला था। जोरदार पिटाई होते ही शौचालय में की जाने योग्य हरकतें भी उसने वहीं कर डाली थी। नाक सिकोड़ते हुए यमराज ने अपना उत्तरीय मुँह पर रखा और हिकारत भरी नजर से उसकी और भी नीचे फिसल गई गीली जीन्स को देखा।
चित्रगुप्त बोले, “आखिर कौन है ये दुष्ट और इसने उत्पात क्यों मचा रखा है।“ “उत्पात मचाने की इसकी शुरू से ही आदत रही है महाराज! धरती पर तो ये ‘टुकड़े होंगे’ के नारे लगाकर देश तोड़ने तक की बातें किया करता था”, एक यमदूत बोला। “ठीक है-ठीक है, मगर ये यमलोक में हंगामा क्यों खड़ा कर रहा है? कौन लाया है इसे?” “लाया नहीं गया महाराज, ये तो खुद ही घुसपैठ करके यमपुरी में प्रवेश कर रहा था, हम तो रोक रहे हैं इसे!” एक दूसरे यमदूत ने बताया।
“खुद ही घुसा चला आ रहा था!” चौंककर चित्रगुप्त ने यमराज की ओर देखा और बोले, “मैं अभी इसका बही-खाता देखता हूँ महाराज”, और कहते-कहते ही अपना टैब हवा में प्रकट कर लिया। पिटकर हलकान हुए व्यक्ति को अब कुछ होश आ रहा था और उसने इधर उधर देखना शुरू किया।
“ये तो एक पहुँचा हुआ नौटंकीबाज है महाराज!” चित्रगुप्त बही-खाते का हिसाब देखकर चीखे। “हस्तिनापुर जो कि अब दिल्ली-एनसीआर नाम से जानी जाती है, वहाँ के एक कंजड़ी ‘छोटा आदमी’ के बाद बेतुके बवाल करने में ये दूसरे नंबर पर था”, चित्रगुप्त ने आगे जोड़ा।
“काम के नाम पर ये ‘तैयारी’ किया करता था, और जिस उम्र में लोग मेहनत-मजदूरी से कमाने लगते हैं, उस उम्र में ये जनता के करों से बने हॉस्टल में पलता रहा। उसके बाद इसने एक आयातित विचारधारा के साथ चुनाव भी लड़ा था और फिर पार्टी को उस चुनाव में हुए खर्चे का हिसाब भी नहीं दिया। इसके मित्रों पर मृतकों के नाम पर चंदा वसूलकर दावतें उड़ाने के भी अभियोग रहे हैं।” चित्रगुप्त के पास उसके अपराधों की लम्बी लिस्ट थी।
“वो सब तो ठीक है, मगर ये यमपुरी कैसे पहुँचा? आयु कितनी है इसकी?” यमराज सीधे काम की बात पर आए। जितनी जल्दी ये बवाल निपटता वो घर की ओर निकल पाते, वैसे भी गृह-स्वामिनी ने आज मशरूम लेकर आने का आदेश दिया हुआ था। उसके साथ फ्रोजेन मटर ना ले जाने पर ‘तुम जरा सा भी दिमाग नहीं लगाते, क्या सिर्फ मशरूम की सब्जी बनेगी’, वाला भाषण सुनने का खतरा था, और जो लेकर जाते तो ‘पहले से ही फ्रिज में पड़ा था, अगर मुझे मँगाना होता तो वो भी व्हाट्स एप्प किया होता’ की डाँट पड़ सकती थी।
आगे कुआँ, पीछे खाई की स्थिति में फँसे यमराज इस घुसपैठिया आत्मा का का किस्सा जल्दी निपटाना चाहते थे। “आयु तो शेष है महाराज, उँगलियों पर हिसाब जोड़कर चित्रगुप्त ने कहा, जरूर ये आत्महत्या के प्रयास का मामला है!” उनकी बात पूरी ख़त्म भी नहीं हुई थी कि बंधे हुए युवक के अंग विशेष पर एक यमदूत ने लात जड़ दी। “कोई आत्महत्या के प्रयास का मामला नहीं महाराज”, वो चीखा!
“ये आत्मा इसी यमदूत के बीट एरिया की है महाराज, इससे अन्दर का मामला पता चल जाएगा”, चित्रगुप्त बोले। यमराज ने उसे आगे आने का इशारा दिया। “इसने जानबूझकर कम नशे की गोलियाँ खाई हैं महाराज”, यमदूत बोला। “ये पहले से ही नशे का अभ्यस्त है, पतली सिगरेट को वीड और मोटी सिगरेट को हैश बुलाने वाली ताड़का तो इसके पुराने हंगामों की ख़बरों में इसके बगल में ही दिख जाएगी!”
यमदूत के पास अपनी बात सिद्ध करने के लिए प्रयाप्त मात्रा में लिंक और स्क्रीनशॉट भी थे। “कितने नशे पर ये मरेगा नहीं, बीच में लटका रहेगा और आत्महत्या के प्रयास की सहानुभूति भी बटोर लेगा, ये इसे अच्छी तरह पता है। ये बीच में लटका था जब यमदूत सुट्टा ब्रेक पर गए और प्रहरियों के कम होते ही ये यमपुरी में घुसने का प्रयास करने लगा। इसे बीच में लटका देखकर ही मुझे इसकी नियत पर शक हुआ था, और मैंने मोशन सेंसर ऑन कर दिए थे, इसके घुसपैठ करते ही अलार्म बज गया और ये पकड़ा गया।” यमदूत ने अपनी बात पूरी की।
“ठीक है, मगर फिर भी एक बार इससे पूछ लेते हैं, हमें दूसरे पक्ष की बात भी सुननी चाहिए महाराज”, चित्रगुप्त ने निवेदन किया। “हम्म, कहो, तुम्हें अपने पक्ष में क्या कहना है?” यमराज ने कड़ककर कहा। उनके इशारे पर तब तक एक दूसरा यमदूत नरक की आग की आँच तेज करने में जुट गया था, कुछ दूसरे तलने वाला कड़ाह और तेल भी ले आए थे।
पिटाई से टूटा हुआ युवक तैयारियाँ देखकर सुबका, “वो मुझे बहुत पसंद थी यमराज!” पहले ही वाक्य में सबको समझ आ गया कि मामला एकतरफा प्रेम प्रसंग का है। सहानुभूति में चित्रगुप्त ने सर हिलाया और यमदूतों की पकड़ भी कुछ ढीली पड़ी। यमराज ने अपना पाश वापस खींच लिया। “मैं उसे रोजाना चिट्ठियाँ लिखा करता था”, उसने बताया।
“चिट्ठियां! #लाखोलपिला_क्वार्टर! व्हाट्स एप्प, और ईमेल के दौर में ये पढ़ा लिखा आदमी स्नेल-मेल भेज रहा था?” एक यमदूत बोल पड़ा। क्वार्टर कि बात सुनकर चित्रगुप्त ने आँखें तरेरी और यमराज की ओर आँखों से इशारा किया। यमदूत सकपका कर चुप हो गया।
“मगर जब दौर फ़ोन, मेसेज, व्हाट्स एप्प वगैरह का है ही तो तुम चिट्ठियाँ क्यों लिख रहे थे?” चित्रगुप्त ने जानना चाह। “वो क्या है कि मैं रोज व्हाट्स एप्प यूनिवर्सिटी कहकर देश की आम बहुसंख्यक आबादी का मजाक जो उड़ाता था! खुद ही व्हाट्स एप्प के जरिए प्रेम कैसे शुरू करता?” लाल कमीज वाले ने कहा।
“खैर, फिर क्या हुआ?” यमराज ने जल्दी किस्सा खत्म करवाने के लिए पूछा। “महाराज मैं चाँद-तारे तोड़कर लाने, गहने-जेवर दिलाने जैसे बुर्जुआ वादे भी नहीं करता था”, उसने बात जारी रखी। “बुर्जुआ”, नया शब्द सुनकर यम फुसफुसाए, “जाने दें महाराज, जुमला है, किस्सा सुन लें जल्दी”, चित्रगुप्त ने जवाब दिया। “कोने के ठेले की पापड़ी चाट, नत्थू हलवाई के समोसे-जलेबी से लेकर चुनमुन के खोमचे के गोलगप्पे तक के वादे किए थे मैंने”, वो बोलता रहा।
“फिर क्या हुआ?” चित्रगुप्त ने उकसाया। “होना क्या था, जो चिट्ठियाँ पहुँचाने जाता था, उसने चिट्ठियां खोलकर पढ़ने की आजादी ले ली!” उसने जीन्स को वापस थोड़ा ऊपर खींचते हुए कहा। “मैं आज जो चिट्ठी में वादा करता, अगले ही दिन वो कासिद वही चीज़ चिट्ठी के साथ लिए पहुँच जाता”। अब सुनने वालों को अंदाजा हो चला कि क्या हुआ होगा।
“मतलब तुम्हारी चिट्ठियाँ पहुँचाते-पहुँचाते डाकिए ने ही तुम्हारी माशूका फँसा ली! यही ना?” चित्रगुप्त ने पटाक्षेप किया। चित्रगुप्त की बात सुनते ही दोनों हाथ ऊपर उठाकर उसने दारुण स्वर में विलाप किया और पछाड़ मारकर जमीन पर लोटने लगा।
“अब आप ही फैसला कीजिए महाराज”, चित्रगुप्त बोले। युवक की मूर्खता पर अब यमदूतों को भी हँसी आ रही थी। “अरे मूर्ख, तूने बस वादे किए, उन्हें पूरा तो वो डाकिया करता रहा। ऐसे में लड़की चिट्ठियों के साथ चाट-समोसे पहुँचाने वाले के साथ नहीं जाती तो क्या तेरे झूठे वादे पढ़ती रहती?” यमराज ने सर पीटते हुए कहा।
“इस मूर्ख उत्पाती को अब कड़ाहे में तल देते हैं महाराज”, अब तक यमदूतों ने तेल भी खौला लिया था। “यमलोक की मामूली सजाएँ इस गधे के लिए प्रयाप्त नहीं होंगी। जरूर किसी क्लेरिकल एरर की वजह से इसे उल्लू-गधे के बदले मानवीय शरीर मिल गया है”, यमराज ने चित्रगुप्त की तरफ देखकर पूछा।
खुद को मामले में फँसता देखकर चित्रगुप्त ने जल्दी मामला निपटाना चाहा, “इसे वापस दिल्ली में फेंक देते हैं महाराज। मैं टिकट पाने वालों की पार्टी की पहली लिस्ट से इसका नाम काट देता हूँ। धरती पर जाकर ये दूसरे सिर्फ वादा करने वालों को सत्ता का इन्तजार करते और फासीवादी कहलाने वालों को वादे पूरे करके सत्ता का सुख भोगते देखकर जलेगा। कड़ाहे में तलना इसके लिए प्रयाप्त नहीं”, चित्रगुप्त ने जल्दी जल्दी कहा।
“हाँ, वैसे भी अपनी माशूका को किसी और की बाहों में देखकर जलने जैसा दर्द हमारे नरक में भी नहीं दिया जा सकता”, यमराज ने उसे वापस दिल्ली में फेंकने का इशारा करते हुए कहा और मुड़कर वापस सीढ़ियों की तरफ चल पड़े।
उत्पाती युवक को पता था कि नीचे उन्हीं की सरकार है जिन्हें कोसने में उसने पिछले 5 साल बिताए हैं। अगले कई वर्षों तक भी यही व्यवस्था रहने वाली थी, ये भी उसे मालूम था। कठिन दंड से घबराकर उसने छूटना चाहा मगर अब तक यमदूत संभल चुके थे। छटपटाते जीव को वापस दिल्ली में पड़े उसके शरीर में फेंक दिया गया।