बिहार में चुनाव के समय सोशल मीडिया पर लगातार चर्चा हो रही है कि रोजगार और बेरोजगारी बहुत बड़ा मुद्दा है। हालाँकि, जमीनी सच्चाई बताती है कि इस बार भी जातीय समीकरण काम करने वाला है।
लोग खुल कर बेरोजागारी पर बात कर तो जरूर रहे हैं लेकिन यह मसला चुनावों में हार जीत का फैसला करेगा, ऐसा दिख नहीं रहा।
कुछ लोग हैं, जो बिहार में कारखाने खोले जाने की बात पर संशय व्यक्त कर रहे हैं और भौगोलिक परिस्थितियों का हवाला देकर मजबूरी दर्शा रहे हैं। किंतु सच्चाई यह है कि बिहार में जो कारखाने पहले से थे, और जो स्थानीय लोगों को एक समय में रोजगार प्रदान करते थे, वह वर्तमान में बंद हो चुके हैं और उनके जीर्णोद्धार का कार्य आज तक भी नहीं हुआ।
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